नदी की धार जीवन का आधार पर निबंध लिखिए।
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भारत में नदियां केवल जल ही नहीं, अपने साथ-साथ जीवन की ही धारा सहेजे हुए हैं। भारतीय जनजीवन में इनकी पैठ इतनी गहरी है कि नदियों के बिना यहां जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इन्हें स्वच्छ, पवित्र और इनके प्रवाह को निर्बाध बनाए रखना ही इनकी सच्ची पूजा होगी।
भारतीय जनजीवन में नदियों का योगदान इतना अधिक है कि इस विषय पर कितने ही ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक, पर्यटन, स्वास्थ्य, कृषि, शैक्षिक, औषधि और न जाने कितने क्षेत्र हैं जो हमारी नदियों से सीधे-सीधे जुडे हुए हैं। किसी भी अन्य सभ्यता से बहुत लंबे समय तक हमने नदियों को धर्म से जोड कर इन्हें स्वच्छ और पवित्र भी बनाए रखा। यह किसी उपलब्धि से कम नहीं है, लेकिन आधुनिकता के साथ शुरू हुई उपभोक्तावाद की अंधी दौड और उसमें बिना सोचे-समझे सभी के कूद पडने का नतीजा यह हुआ कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को स्वयं ही नष्ट करने पर तुल गए।
सदियों से भारत में नदियों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू जन नदियों को भगवान के स्वरूप मानते रहे हैं। कई नदियों को देवी मानकर उनकी पूजा की जाती रही है। नदियों की पूजा की यह परंपरा तो अभी भी चली आ रही है, लेकिन यह परंपरा शुरू होने के मूल में निहित भावना का लोप सा हो गया है। हमारे यहां लगभग सभी नदियों को आज भी मां के रूप में सम्मान दिया जाता है। गंगा ही नहीं, देश की दूसरी नदियों के प्रति भी हमारे मन में गहरा सम्मान है। चूंकि सम्मान का यह भाव हमें हमारी परंपरा से मिला है, इसीलिए इसे सीखने के लिए हमें किसी विश्वविद्यालय या संस्थान में जाने की जरूरत नहीं होती। किसी छोटे-बडे धक्के से यह सम्मान टूटता भी नहीं। क्योंकि यह हमारे संस्कार का हिस्सा बन चुका है।
इसी कारण से यहां माना जाता है कि गंगा में नहाने भर से इंसान शुद्ध हो जाता है। देश की दूसरी नदियों को भी हम गंगा से कम महत्वपपूर्ण नहीं मानते। ऐसा माना जाता है कि नर्मदा माता को देखने भर से इंसान शुद्ध हो जाता है। प्रत्येक नदी से कोई न कोई कथा जुडी हुई है। दुर्भाग्य यह रहा कि बाद के दिनों में वैज्ञानिक चेतना के नाम पर धर्म से जुडी मान्यताओं का उपहास उडाने की प्रवृत्ति पनपने लगी। इस क्रम में परंपरा के निहितार्थ को न तो तलाशने की ईमानदार कोशिश की गई और न लोगों तक उसके मूल तत्व को पहुंचाने की ही। इस तरह न तो वैज्ञानिक मान्यताओं को स्थापित किया जा सका और न कोई वैज्ञानिक चेतना ही जगाई जा सकी, हां अपनी परंपरा के उदात्त मूल्यों से लोगों को अलग जरूर कर दिया गया।
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नदीप्रकृति द्वारा विकसित एवं लगातार परिमार्जित मार्ग पर बहते पानी की अविरल धारा ही नदी है। बरसात उसे जन्म देती है। वह सामान्यतः ग्लेशियर, पहाड़ अथवा झरने से निकलकर सागर अथवा झील में समा जाती है। इस यात्रा में उसे अनेक सहायक नदियाँ मिलती हैं। नदी और उसकी सहायक नदियाँ मिलकर नदी तंत्र बनाती है। जिस इलाके का सारा पानी नदी तंत्र को मिलता है, वह इलाका जल निकास घाटी (वाटरशेड) कहलाता है। नदी, जल निकास घाटी पर बरसे पानी को इकट्ठा करती है। उसे प्रवाह में शामिल कर आगे बढ़ती है। वही उसके पानी की समृद्धि का आधार होता है।
नदी को अपनी यात्रा में बाढ़ के पानी के अलावा भूजल से सम्बन्धित दो प्रकार की परिस्थितियाँ मिलती हैं। पहली परिस्थिति जिसमें भूजल भण्डारों का पानी बाहर आकर नदी को मिलता है। दूसरी परिस्थिति जिसमें नदी में बहते प्रवाह का पूरा या कुछ हिस्सा, रिसकर भूजल भण्डारों को मिलता है। नदी, दोनों ही स्थितियों (Effluent– Gaining stage or influent– losing stage) का सामना करते हुए आगे बढ़ती है।