नदिया शहरों में बिजली बनकर दौड़ती है इस कथन पर 100 शब्दों का एक अनुच्छेद लिखिए
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नदी एक बहुत ही महत्वपूर्ण शीतल जल स्रोत है। हमारा देश भारत प्राकृतिक रूप से कई नदियों से धन्य है।
नदी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कई सभ्यताओं का निवास स्थान है। कुछ देशों के लिए, नदी परिवहन का सबसे बड़ा मार्ग है। नदियाँ अक्सर मनोरंजक अवसर प्रदान करती हैं। खेती या कृषि इसके बिना बहुत प्रभावित होती है। आपको यह भी पता होना चाहिए कि नदियाँ कई पोषक तत्वों की महत्वपूर्ण वाहक हैं।
उद्योग अपने संचालन के लिए ताजा नदी के पानी पर निर्भर होते हैं। कृषि में भी ऐसा ही होता है। भारत एक कृषि पर निर्भर देश है। हमारे अधिकांश राज्यों में कृषि भूमि है, जिन्हें ताजे पानी की आपूर्ति की आवश्यकता है। नदियाँ शीतल जल का सबसे बड़ा स्रोत हैं। जिन राज्यों के पास खुद की नदियाँ हैं, वे वृक्षारोपण के लिए पानी का उपयोग करते हैं।
जैसे-जैसे समाजों का विकास होना शुरू हुआ, कृषि, खेती और व्यापार की आवश्यकता ने मानव को उपजाऊ नदी की भूमि पर जाने के लिए मजबूर किया। साथ ही, नदियाँ मछलियों की ताजा भोजन का स्रोत बन गईं। लोग मछलियों का व्यापार करने लगे। आज भी यूरोप के भीतर जलमार्ग बहुत प्रसिद्ध हैं।
विश्व अर्थव्यवस्था का उदय नदियों से कई तरीकों से संबंधित है। नदियाँ वन्यजीवों के लिए पीने के पानी के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। क्या आप जानते हैं नील नदी दुनिया की सबसे लंबी नदी है। यह अफ्रीका में है। जल निकासी व्यवस्था में नदियाँ बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा हैं क्योंकि वे भूमि के पानी को समुद्र में ले जाती हैं।
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सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक जीनदायिनी कही जाने वाली ये नदियां खुद खतरे में हैं। देश में 521 नदियों के पानी की मॉनिटरिंग करने वाले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक देश की 198 नदियां ही स्वच्छ हैं। इनमें अधिकांश छोटी नदियां हैं। जबकि, बड़ी नदियों का पानी भयंकर प्रदूषण की चपेट में है। जो 198 नदियां स्वच्छ पाई गईं, इनमें ज्यादातर दक्षिण-पूर्व भारत की हैं। नदियों की स्वच्छता के मामले में तो महाराष्ट्र का बहुत बुरा हाल है। यहां सिर्फ 7 नदियां ही स्वच्छ हैं, जबकि 45 नदियों का पानी प्रदूषित है। गंगा सफाई के लिए मिले डेढ़ हजार करोड़ खर्च ही नहीं हुए जिस कारण गंगा का हाल जस का तस बना हुआ है।
भारतीय जनजीवन में नदियों महत्व इसी से जाना जा सकता है कि धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक, पर्यटन, स्वास्थ्य, कृषि, शैक्षिक, औषधि, पर्यवरण और न जाने कितने क्षेत्र हैं जो हमारी नदियों से सीधे-सीधे जुडे हुए हैं। किसी भी अन्य सभ्यता से बहुत लंबे समय तक हमने नदियों को धर्म से जोड कर इन्हें स्वच्छ और पवित्र भी बनाए रखा।
नदियों का सामाजिक, आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व किसी प्रकार काम नही है। आध्यात्मिक स्तर पर यह माना जाता है कि पानी की स्वच्छ करने की शक्ति आंतरिक बाधाओं को दूर करने में सहायता करती है। जब हम नदी में डुबकी लगाते हैं तो पानी हमारे नकारात्मक विचारों को अवशोषित कर लेता है। जब ऋषि नदियों के किनारे तपस्या करते हैं तो नदी उन नकारात्मक विचारों से मुक्त हो जाती है और पानी पवित्र हो जाता है। नदी का पानी वह पवित्र मार्ग है जो पापियों को पवित्र पुरूषों और महिलाओं के साथ जोड़ता है और नदी के किनारे उन लोगों की आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाते हैं जो यहां ध्यान लगाते हैं। पत्थरों, बजरी, जड़ी-बूटियों और पौधों को छूकर बहते पानी के कारण नदी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण बढ़ जाते हैं। उदाहरण के लिए, गंगा नदी के निश्चित औषधीय गुण पहाड़ों की हिमालय श्रृंखला में पाई जाने वाली औषधीय जड़ी-बूटियों की उपस्थिति से बढ़ते हैं। इस तरह के पानी में लाभकारी रेडियोधर्मिता सूक्ष्म स्तर पर पाई जाती है। यह आवश्यक है कि नदी के पानी में उपस्थित भौतिक गुणों को पवित्र रखा जाए जिससे कि गहन आध्यात्मिक गुण प्रकट हो सकें।
नदियों से जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक स्वच्छ जल प्राप्त होता है यही कारण है कि अधिकांश प्राचीन सभ्यताएं, जनजातियाँ नदियों के समीप ही विकसित हुईं। भारत की प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता सिंधु नदी के पास विकसित हुई। सम्पूर्ण विश्व के बहुत बड़े भाग में, पीने का पानी और घरेलू उपयोग के लिए पानी, नदियों के द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। आर्थिक दृष्टि से भी नदियां बहुत उपयोगी होती है क्योंकि उद्योगों के लिए आवश्यक जल नदियों से सरलता से प्राप्त किया जा सकता है। कृषि के लिए सिंचाई हेतु आवश्यक पानी नदियों द्वारा प्रदान किया जाता है। नदियाँ खेती के लिए लाभदायक उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का उत्तम स्त्रोत होती हैं। नदियां न केवल जल प्रदान करती है बल्कि घरेलू एवं उद्योगिक गंदे व अवशिष्ट पानी को अपने साथ बहकर ले भी जाती है। बड़ी नदियों का उपयोग जल परिवहन के रूप मे भी किया जा रहा है। नदियों में मत्स्य पालन से मछली के रूप मे खाद्य पदार्थ भी प्राप्त होते हैं। नदियों पर बांध बनाकर उनसे पन बिजलीघर बनने से बिजली प्राप्त होती है। पर्यटकों के लिए भी नदियों से कई मनोरंजन के साधन जैसे बोटिंग एवं रिवर राफ्टिंग आदि से पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलता है।
हमारे भारत देश में नदियों की पूजा करने की परंपरा अर्वाचीन रही है। नदियों को देवी देवताओं के समक्ष माना जाता रहा है। अनेक नदियों को देवी स्वरूप मानकर उनकी पूजा करना हमारी संस्कृति का की परंपरा रही है। आज भी लगभग सभी नदियों को मां के रूप में सम्मान दिया जाता है। गंगा ही नहीं, देश की दूसरी नदियों के प्रति भी हमारे मन में गहरी आस्था है। यह हमारे संस्कार का हिस्सा बन चुका है। देश की दूसरी नदियोँ को भी हम गंगा से कम महत्वपूर्ण नहीं मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि नर्मदा माता को देखने से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है। हर नदी की कोई न कोई अपनी गाथा है।
हिंदू धर्म में लोग जिस तरह आसमान में सप्त ऋषि के रूप में सात तारों को पूज्य मानते हैं, उसी तरह पृथ्वी पर सात नदियों को पवित्र मानते हैं। जिस प्रकार आसमान में ऋषि भारद्वाज, ऋषि वशिष्ठ, ऋषि विश्वामित्र, ऋषि गौतम, ऋषि अगत्स्य, ऋषि अत्रि एवं ऋषि जमदग्नि अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए विराजमान हैं, उसी तरह पृथ्वी पर सात नदियां गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, कावेरी, शिप्रा एवं गोदावरी अपने भक्तों की सुख एवं समृद्धि का प्रतीक मानी जाती हैं। गंगा नदी को स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर लाने के लिए राजा भगीरथ द्वारा भगवान महादेव के तप की पौराणिक कथा पूरे देश में लोकप्रिय है।
देश में नदियों के योगदान एवं महत्व का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वाराणसी आज विश्व के प्राचीनतम नगर एवं प्राचीनतम जीवित सभ्यता के रूप में जाना जाता है और वाराणसी गंगा के तट पर बसा हुआ है। आज वाराणसी विश्व में धार्मिक, शैक्षिक, पर्यटन, सांस्कृतिक एवं व्यापारिक नगर के रूप में प्रतिष्ठित है। इसके अलावा प्रयाग, अयोध्या, मथुरा, नासिक, उज्जैन, गुवाहाटी, गया, पटना आदि सभी प्रमुख प्राचीन शहर नदियों के किनारे ही बसे हुए हैं। इसी तरह दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, अहमदाबाद, सूरत, हैदराबाद, मैसूर, हुबली आदि आधुनिक नगर भी नदियों के तट पर ही बसे हुए हैं।