nature during pandemic paragraph in hindi
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कोरोना महामारी के इस महासंकट के दौर में जहां दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है, वहीं एक दुनिया ऐसी भी है जो कि खिलखिला रही है और स्वयं को मुक्त मान रही है। वह दुनिया कहीं और नहीं बल्कि इसी पृथ्वी पर है, जिसमें मनुष्यों की केवल एक प्रजाति के सिवा बाकी जीव जन्तुओं और पादपों की लाखों प्रजातियां आजादी का अनुभव कर रही है। लगता है कि इंसानों के घरों में कैद होने से धरती की नैसर्गिकता मुक्त हो रही है। नागरिकों पर लगी बंदिशों से जीव संसार को मिली आजादी और प्रकृति के पुनः मुस्कराने का संदेश स्पष्ट है कि इंसान अपनी सीमाओं में रहे अन्यथा एक दिन डायनासोर की ही तरह मनुष्य भी प्रागैतिहासिक इतिहास का विषय मात्र रह जाएगा।
आदमी के कैद होने से मुक्त हुई प्रकृति
गत् 25 मार्च से लेकर मात्र एक माह की ही अवधि में गंगा हरिद्वार से लेकर हुगली तक निर्मल होने लगी। नैनीताल झील की पारदर्शिता तीन गुनी बढ़ गई और जालंधर के लोगों को पहली बार लगभग 213 किमी दूर धौलाधार की बर्फीली पहाड़ियां नजर आने लगी है। नासा की एक रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन की इस अवधि में उत्तर भारत का वायु प्रदूषण पिछले 20 वर्षों की तुलना में सबसे निचले एयरोसॉल के स्तर तक पहुंच गया है, जिससे आसमान से विजिबिलिटी बढ़ गई है।
देश के कई हिस्सों में ऐसे नजारे देखने को मिले हैं जहां वन्य जीव सड़कों पर निकल आए। हाल ही में केरल की सड़क पर एक कस्तूरी बिलाव नजर आ गया। उच्च हिमालयी क्षेत्र का पक्षी मोनाल इन दिनों निचले क्षेत्रों में भी स्वच्छन्द उड़ता नजर आ रहा है। दुर्लभ हो रही यह नैसर्गिकता लॉकडाउन के कारण मनुष्य की आजादी छिनने के बाद संभव हो पाई। इसका स्पष्ट संदेश है कि अपनी सीमाएं लांघ चुके मनुष्य की उदंडता, उसके अहंकार और निरंकुशता पर अंकुश नहीं लगाया गया तो प्रकृति मानव अस्तित्व को मिटाने के लिए कोरोना जैसा महासंकट पैदा करती रहेंगी।
कोरोना महामारी के इस महासंकट के दौर में जहां दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है, वहीं एक दुनिया ऐसी भी है जो कि खिलखिला रही है और स्वयं को मुक्त मान रही है। वह दुनिया कहीं और नहीं बल्कि इसी पृथ्वी पर है, जिसमें मनुष्यों की केवल एक प्रजाति के सिवा बाकी जीव जन्तुओं और पादपों की लाखों प्रजातियां आजादी का अनुभव कर रही है। लगता है कि इंसानों के घरों में कैद होने से धरती की नैसर्गिकता मुक्त हो रही है। नागरिकों पर लगी बंदिशों से जीव संसार को मिली आजादी और प्रकृति के पुनः मुस्कराने का संदेश स्पष्ट है कि इंसान अपनी सीमाओं में रहे अन्यथा एक दिन डायनासोर की ही तरह मनुष्य भी प्रागैतिहासिक इतिहास का विषय मात्र रह जाएगा।
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