नये भारत की आशा युवावर्ग निबंध
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राष्ट्र का बाल एवम् युवा वर्ग राष्ट्र का भावी निर्माता है । वे भावी शासक, वैज्ञानिक, प्रबन्धक, चिकित्सक हैं । किन्तु आज के युवा वर्ग के अपराधों में लिप्त होने के समाचार “युवा एवम् अपराध” नामक शीर्षक से जब हम समाचार यदा – कदा पढ़ते हैं तो यह सोचने पर विवश कर देते हैं कि युवा वर्ग हमारे प्रचीन सांस्कृतिक चिंतनों से दूर क्यों होता जा रहा है । आज युवाओं का बड़ा वर्ग विभिन्न जघन्य अपराधों में शामिल क्यों है ? आज का युवा किसे आदर्श मान रहा है, किससे प्रेरित हो रहा है । भविष्य का मार्ग निश्चित करने के बारे में उसकी सोच क्या है ?
भारतीय सांस्कृतिक चिंतन से अनभिज्ञ युवा एवम् बाल वर्ग
भारत विश्व गुरू रहा है । यहाँ अनेक महान विचारकों ने जन्म लेकर विश्व का पथप्रदर्शन किया है । आज हमारे ही बच्चे पथभ्रष्ट हो रहे हैं, उन्हें नहीं पता कि वे किससे प्रेरणा लें । ऐसा क्यों हो गया एवम् हो रहा है ? इसके कारणों में से एक है अपनी मातृभाषा से अलग होना । भाषा का संस्कृति से अटूट सम्बन्ध है । भाषा संस्कृति की पोषक होती है । ब्रिटिश शासन काल के बाद से ही औद्योगिकीकरण, नगरीकरण तथा पाश्चात्य संस्कृति के प्रवेश ने भारतीय समाज के परंपरागत स्वरूप को बदल दिया । वर्तमान शिक्षा व्यवस्था ने भी भारतीय संस्कृति से बाल एवम् युवा वर्ग को अपरिचित रहने में सहयोग ही दिया । आज भारतीय समाज परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है । राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवम् आर्थिक परिवेश बदल रहे हैं ।
संस्कृति तथा भाषा में बड़ा गहरा संबन्ध है । ये दोनों एक दूसरे पर आश्रित हैं । अपनी भाषा का ज्ञान होने से ही संस्कृति का ज्ञान होगा । भाषा न जानने पर हम अपनी संस्कृति से कट जाते हैं । अंग्रेजों ने भारत से उसकी भाषा छीन ली । बिना अपनी भाषा के बुद्धि श्रेष्ठ उत्पादन कैसे दे सकती है । हमारे देश में अंग्रेजी भारत की सृजनात्मक तथा शोधात्मक प्रतिभा को अत्यधिक नुकसान पहुँचा रही है । यह समस्या अत्यन्त गंभीर है । अगर समय रहते उपाय न किये गये तो इसके दूरगामी और घातक परिणाम होंगे । हमें यह मानना होगा कि भारतीय संस्कृति, हिन्दी या किसी भारतीय भाषा में ही पनप सकती है ।
गाधीं जी ने कहा था –“ स्वतंत्रता के पश्चात चाहे अंग्रेज यहाँ रहें, किंतु अंग्रेजी एक भी दिन न रहे ।” अंग्रेजी ने हमें प्रौद्योगिकी और विज्ञान के क्षेत्र में न केवल पीछे किया है बल्कि हमारी संस्कृति को भी भ्रष्ट कर दिया है । पाश्चात्य संस्कृति हमें व्यक्तिवादी एवं भोगवादी बना रही है ।
चीन और इज़राइल जैसे देश जो 1947 में हमसे विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में बहुत पीछे थे अपनी मातृभाषा में शिक्षा के बल पर आज हमसे बहुत आगे निकल गए । जब अंग्रेजी का भारत पर पूरा वर्चस्व हो गया है तो अंग्रेजी ने हमें पिछड़ा क्यों बना दिया, यह प्रश्न उठता है । हमारा बाल एवम् युवा वर्ग वर्तमान समय में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है । युवा अपनी प्रतिभा व परिश्रम के बल पर वर्तमान दुनिया की मांगों के अनुसार स्वयं को तैयार कर सकता है । किन्तु जब हिन्दी को प्रोत्साहन नहीं मिलता है और युवा वर्ग अपनी संस्कृति से अनभिज्ञ रह जाता है, तो सोचना आवश्यक हो जाता है ।
हमारे युवा वर्ग के पास नित नए-नए प्रश्न हैं । वे समाधान खोज रहे हैं । नए समाज की रचना हो रही है । हर दिन ज्ञान विकसित हो रहा है । विकसित होते हुए ज्ञान को यदि हम अपनी भाषाओं में युवा वर्ग तक नहीं ले जाएँगे तो वह उस ज्ञान से वचिंत रह जाएगा ।
हमें संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर हिंदी की प्रगति में योगदान देना चाहिए । हिंदी में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को अभिव्यक्त करने की अपूर्व क्षमता है । और इस तरह विज्ञान के विद्यार्थियों पर अनावश्यक रुप से पड़ा हुआ भाषा का बोझ हट जाएगा । शिक्षा का माध्यम हर हाल में मातृभाषा ही होनी चाहिये । आर्नल्ड टायनवी ने भारत के विषय में भविष्यवाणी की थी कि – “भारत विश्व का आध्यात्म गुरू बनकर पाश्चात्य सभ्यता तले रौंदी जा रही मानवता को बचा सकेगा ।” यह भविष्यवाणी हिंदी के वर्चस्व से ही संभव हो सकती है क्योंकि हिंदी से ही हमारी संस्कृति अनुस्यूत है ।
Answer:
युवा पीढ़ी यानी हमारे देश के नौजवान समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है। हमारा आने वाला भविष्य हमारी युवा पीढ़ी की सोच और उनके प्रदर्शन पर निर्भर करती है। युवा वर्ग जिसे अंग्रेजी में youth, young जनरेशन कहा जाता है। युवा पीढ़ी में जोश और उमंग की कोई कमी नहीं होती है। वह हमेशा आसमान को छू लेना चाहते है अर्थात कामयाबी की शिखर तक पहुंचना चाहते है। युवा पीढ़ी में भरपूर जूनून होता है कुछ कर दिखाने का, कुछ बनने का। युवा वर्ग में अनोखी क़ाबलियत होती है कि वह पूरी दुनिया को बदल सके। युवा पीढ़ी पुरे कायनात को बदलने की शक्ति रखते है। युवा पीढ़ी के कन्धों पर कुछ जिम्मेदारियां होती है। युवा वर्ग अपने हौसले और जूनून को सही मार्ग पर ले जाए तो एक सकारत्मक समाज की रचना कर सकते है।
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