नयनार रे एवं अलवर में अंतर बताइए?
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Answer:
विष्णु भक्त संतो को के रूप में जाना है
Answer:
नयनार और अलवर तमिल कवि-संत थे। जबकि नयनार भगवान शिव और उनके अवतारों को समर्पित थे, अलवर भगवान विष्णु और उनके अवतारों को समर्पित थे।
Explanation:
उन्होंने मोक्ष के मार्ग के रूप में शिव या विष्णु के प्रेम का प्रचार किया । वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर गए और उन गांवों में प्रतिष्ठित देवताओं की स्तुति में सुंदर कविताओं की रचना की, जहां वे गए थे और उन्हें संगीत के लिए स्थापित किया था।
नयनार शैव (शिव) के प्रति समर्पित थे और अलवार विष्णु के प्रति समर्पित थे।। वे शिव तथा विष्णु के प्रति सच्चे प्रेम को मुक्ति का मार्ग। बताते थे। ये दोनों ही घुमक्कड़ साधु-सन्त थे।
आलवार संत स्वामी, पिता, सुहृद, प्रियतम तथा पुत्र के रूप में नारायण को ही भजते थे। और नारायण से ही प्रेम करते थे।
जब-जब भारत में विदेशियों के प्रभाव से धर्म के लिए खतरा उत्पन्न हुआ, तब-तब अनेक संतों की जमात ने लोक मानस में धर्म की पवित्र धारा बहाकर, उसकी रक्षा की। दक्षिण के आलवार संतों की भी यही भूमिका रही है। ‘आलवार’ का अर्थ है ‘जिसने अध्यात्म ज्ञान रूपी समुद्र में गोता लगाया हो।’ आलवार संत गीता की सजीव मूर्ति थे। वे उपनिषदों के उपदेश के जीते जागते नमूने थे।
आलवार संतों की संख्या बारह मानी गई है। उन्होंने भगवान नारायण, राम, कृष्ण आदि के गुणों का वर्णन करने वाले हजारों पद रचे। इन पदों को सुन-गाकर आज भी लोग भक्ति रस में डुबकी लगाते हैं। आलवार संत प्रचार और लोकप्रियता से दूर रहे। ये इतने सरल और सीधे स्वभाव के संत थे कि न तो किसी को दुख पहुंचाते न ही किसी से कुछ अपेक्षा करते।
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