nibandh Dahej Ek kupratha
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जब तक रहेगी दहेज प्रथा बेटी रहेगी दुखी सदा।दहेज अर्थात महिलाओं का शोषण। दहेज समाज में एक बुरी बीमारी की तरह फैला हुआ है। जिसका इतने कानून के बावजूद कोई समाधान दिखाई नहीं दे रहा है। साधारण शब्दों में लड़की की शादी अपने बेटे से कराने के बदले दुल्हन के परिवार वालों से मांगा गया मुआवजा दहेज का रूप है। यह प्रथा पूरे समाज के द्वारा स्वीकार कर ली गई है। आज स्पष्ट शब्दों में यह पूछा जाता है कि कितने का रिश्ता है। पैसे के आगे लड़की की काबिलियत का कोई मोल नहीं समझा जाता।दहेज प्रणाली एक व्यापक शोषण की व्यवस्था बन गई है। इस बुराई की उत्पत्ति का पता शादी में दूल्हे के रिश्तेदारों को दिए जाने वाले उपहारों के रिवाज से लगाया जाता है। एक उदाहरण से बताना चाहूंगी। जैसे की लड़की की सगाई में लड़के वालों को दिए जाने वाली मिलनी 2100 की है मतलब मोटी पार्टी है लड़की वाले ,जैसी बातों का पिटारा समाज में खुल जाता है। आधुनिक समय में उपहार बनाने की व्यवस्था दूल्हे के परिवार द्वारा की जाने वाली अनिवार्य मांग शोषण की प्रणाली में परिवर्तित हो गई। यह सामाजिक बुराई केवल पवित्र बंधन का अपमान ही नहीं करती बल्कि औरत की गरिमा को भी कम करती है। 5 या 6 साल पहले की बात है जब मैं अविवाहिता थी तो हमारे पड़ोस के घर में एक लड़की की शादी हुई। बहुत ही धूमधाम से अंकल आंटी ने पूरे अरमानों के साथ अपनी इकलौती बेटी को विदा किया। मानो ऐसा लग रहा था जैसे अंकल आंटी की जीने की वजह उनसे दूर जा रही है उन्हें रोता देख कर मेरी आंखों में आंसू आ गए। यह सोचकर नहीं कि मुझे भी एक दिन अपने परिवार को छोड़कर इसी तरह चले जाना है अंकल आंटी की हालत को देख कर।कुछ ही दिनों बाद मैंने गरिमा को अंकल आंटी की बेटी जिन्होंने अपनी बेटी को बहुत धूमधाम से विदा किया था गाड़ी से ,बड़ी सी सूटकेस के साथ उतरते देखा एक पल दिल में आया दो कदम पर रहती है कितने दिनों के लिए आई है, जो इतना बड़ा सूटकेस लेकर आई है शायद बचपना बुद्धि थी। नासमझी में हालातों को न समझना और हर चीज मजाक में उड़ा देना बचपना ही कहलाएगा। समय बीतता चला गया 1 महीने 2 महीने। गरिमा अपने ससुराल वापस न लौटी।ना कोई उसके ससुराल से आता जाता, मिलता जुलता, दिखता। एक दिन गरिमा की माता जी हमारे घर आए और फूट फूट कर रोने लगी ।भगवान अगर बिटिया दे तो बिटिया को किस्मत भी दे ।बातों बातों में पता लगा कि गरिमा के जीवन में भी दहेज की मार थी । गरिमा के ससुराल वाले हर चीज में ताना देते क्या अपने मां के घर से लाई है पहले ला,फिर यहां कुछ मिलेगा जैसा कि दहेज के दुष्कर्म मारपीट यहां तक की गरिमा को जला देकर मारने की चरम सीमा पर पहुंच चुके थे। मानो यह सब सुनकर तो मेरी धरती सी हिल गई ।हो सकता है आपको यह बचपना बुद्धि लगे पर जैसे यह सोच, बदलाव मेरे दिल दिमाग में घर कर गया जो माय सिटी फॉर किड्स के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत करने में आज आपके सामने सक्षम हो रही हूं। जब हमारे समाज में नोटबंदी जैसे बड़े बड़े परिवर्तन हो सकते हैं तो क्या लड़की की विदाई की प्रथा में यह बदलाव संभव है दोस्तों?????????( 1 साल के 6 महीने लड़का भी लड़की के घर जाकर उसी अपने पन से रहे जिसकी उम्मीद एक लड़की से की जाती है बाकी के 6 महीने लड़की भी लड़के के परिवार के साथ जाकर अपने पन व सम्मान से रहे।)तो क्या परिस्थितियों में सुधार या बदलाव आ सकता है??अधिकांश लोग अपनी कन्याओं की उत्तम शिक्षा इसलिए नहीं दिलाते की लड़की की शादी के लिए दहेज की व्यवस्था भी करनी होती है पूरी पूंजी लड़की की शिक्षा में लगा देना उचित नहीं माना जाता ।इस प्रथा में बदलाव के बाद लाडली बिटिया को यातनाएं नहीं देनी पड़ेगी शायद इस प्रथा के बाद गृहणियों को शारीरिक व मानसिक बीमारियों का शिकार न होना पड़ेगा। शायद दहेज प्रथा में रोक लग जाए। जब एक लड़का लड़की दोनों एक दूसरे के घर जाकर परिवार के साथ बराबर समय के लिए रहेंगे तो दहेज कैसा शायद औरतों को खोया वजूद सम्मान वापस मिल सके।लड़कियों के पैदा होने पर भी वही सामान खुशियां मनाई जाएगी जो लड़के के पैदा होने पर बनाई जाती हैं। नवजात लड़कियों को लोग सड़क पर बोझ समझ कर फेंक कर नहीं जाएंगे ।किसी भी लड़की के मां को अपना कलेजा निकालकर अर्थात बेटी को अनजान परिवार में लोगों के हाथ जीवन भर के लिए सोपन नहीं पड़ेगा।भौतिकवादी युग में कन्या की सुंदरता सुशीलता और शिक्षा का स्थान धन यानी दहेज ने ले लिया है ।दहेज मांगना और देना दोनों निंदनीय कार्य हैं जहां वर और कन्या दोनों की शिक्षा-दीक्षा एक जैसी है दोनों रोजगार में लगे हुए हैं ,दोनों ही फिर भी दहेज की मांग ।क्यों? दहेज के कलंक और दहेज को केवल कानून के भरोसे नहीं रोका जा सकता। इसको रोकने के लिए लोगों की मानसिकता में बदलाव लाया जाना चाहिए।
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Article 370 acknowledges the special status of the state of Jammu and Kashmir in terms of autonomy and its ability to formulate laws for the state's permanent residents. In the 1954 Presidential order, among other things, the Fundamental Rights in the Indian Constitution were made applicable to Kashmir with exceptions.