Hindi, asked by Anonymous, 10 months ago

nibandh lekhan on
swadesh prem 200 words​

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Answered by dabhinav1234
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स्वदेश का अर्थ है अपना देश अर्थात अपनी मातृभूमि | यह वह स्थान होता है जहाँ हम पैदा होते है, पलते है और बड़े होते है | जननी तथा जन्मभूमि की महिमा का स्वर्ग से बढकर बताया गया है | जिस देश में हम जन्म लेते है तथा वहाँ का अन्न, जल, फल, फूल आदि खाकर हम बड़े होते है उसके ऋण से हम उऋण नही हो सकते है |स्वदेश प्रेम मानव में ही नही, पशु –पक्षियों तथा किट – पतंगो में भी निरन्तर तरंगित होता रहता है | पशु-पक्षी दिन भर दूर-दूर तक विचरण करने के बाद सांय को सूर्यास्त के बाद अपने – अपने स्थानों को लौट आटे है | विदेश में बैठे हुए व्यक्ति भी स्वदेश-प्रेम से पीड़ित रहते है | अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता और रक्षा के सामने व्यक्ति अपने प्राणों तक के महत्त्व को तुच्छ मान लेता है | वह अपनी सभी सुख – सुविधाएँ यहा तक कि अपने प्राण भी उस पर न्यौछावर कर देने से नही झिझकतास्वदेश प्रेम के कारण हँसते हँसते मृत्य का आलिंगन किया है | इसी स्वदेश प्रेम की भावना से प्रेरित होने पर महाराणा प्रताप ने अनेको कष्ट शे तथा शहीद भगतसिंह हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे पर झूल गे थे | देश की रक्षा के लिए अपने तन-मन को न्यौछावर कर देने वाले व्यक्ति अमर हो जाते है | इसी स्वदेश प्रेम के कारण राष्ट्रपिता गाँधीजी ने अनेको कष्ट सहे, जेलों में गए तथा अन्त में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए | पं. जवाहर लाल नेहरु जी ने भी इसी राष्ट्रप्रेम की भावना से ओत –प्रोत होकर अपने राजसी सुखो का त्याग कर दिया | इनके अतिरिक्त छत्रपति शिवाजी , रानी लक्ष्मीबाई , तांत्या टोपे, गुरु गोविन्दसिंह आदि वीरो ने भी हँसते- हँसते स्वदेश की रक्षा में अपने प्राण अर्पित कर दिए | जिस देश में ऐसे सच्चे देशभक्त होते है, उस देश का कोई बाल भी बांका कैसे कर सकता है ? हमारे देश की धरती अपने इन महान वीरो की स्मृति को अपने ह्रदय से छिपा कर रखेगी |

Answered by Anonymous
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