Nibandh on savdhani hati durghatna ghati in hindi
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यदि आज के हालातों को देखते हुए इसे लोह मृत्यु गामिनी कहें तो अतिश्यौैक्ति नहीं होगी। किसी को पता नहीं कि वह अगला स्टेशन देख पाये या नहीं। यदि हम अभी गत माह में कानपुर देहात के आस पास रेलवे की बढ़ी दुर्घटना, इंदौर-पटना एक्सप्रेस में 140 लोगों की जाने गई ही थी कि गत माह में उसी क्षेत्र में रुरा स्टेशन के समीप अजमेर सियालदह एक्सप्रेस की 15 बोगी पटरी से उतरने के साथ साथ 21 जनवरी 2017 को जगदल पुर से भुवनेश्वर जा रही हीराखंड एक्सप्रेस रेल गाड़ी जो गत दिवस दुर्घटनाग्रस्त हुई जिसमें 39 लोगों की जिंदगी कालग्रसित हो गई व अन्य 50 लोग घायल हुये। जिसका मुख्य कारण रेलवे के ड्राईवर को सही निर्देशन न देना या फिर पटरी का दुरुस्त न होना या फिर ड्राईवर की लापरवाही भी ही सकती है या फिर आतंकवादी गतिविधियों का पाया जाना, इस ओर इशारा करता है कि हमारा खूफिया तंत्र आज कितना कमजोर पड़ चुका है, और न जाने कितनी रेल दुर्घटनाएं इस भारत देश में वर्ष भर में होती होगी न जाने असंख्य लोगों के घर उजड़ते होंगे पर हमारी सरकार, शासन व प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ता वहीं पुराने वक्तव्य वही पुराना राग, पीडि़तों की पूर्ण सहायता की जायेगी, हम व्यक्तिगत रूप से हालातों पर नजर बनाये हुए है। यात्रियों को उनके गंतव्य स्थान पर पहुंचाने के लिए वैैकल्पिक व्यवस्था की गई है। फिर से हैल्प लाईन न. जारी कर दिया जाता है। या फिर से पीडि़त को दो चार लाख रुपये दे कर उसकी बोलती हमेशा के लिए बंद करा दी जाती है। बस फिर से दो चार नेता पक्ष हो या विपक्ष आपस में ब्यान बाजी द्वारा अपने आप को किसी अखबार या टीवी चैनल के मध्यम से महापुरूष सिद्ध करने की दौड़ में पीछे रहना नहीं चाहते। उनका उद्देश्य केवल दुर्घटना के आधार पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने के अलावा कुछ ओर नहीं होता कुछ दिनों के बाद मामला ठंडा हो जाने के बाद कोई नहीं जानता कि पीडि़त परिवार पर क्या बीती होगी?, शासन या प्रशासन या मौजूदा सरकारों को सत्ता के नशे में होश भी नहीं होता होगा कि पीडि़त को घोषणा के वक्त किया वादा पूरा किया होगा या नहीं बस फिर से भारतीय रेल उन्हीं जरजर पटरियों पर मौत का आगाज करते हुए छुक-छुक कर रोजाना की तरह फिर से दौडऩे लगती है। क्यों नहीं रेल की जरजर व्यवस्था को सुधारा जाता-? क्यों नहीं ट्रेनों में जरनल बोगियां बढ़ाई जाती -? जो लम्बे मार्ग की रेलगाडिय़ां होती है मात्र उन रेलगाडिय़ों में एक या दो जरनल बोगियां आगे एक दो बीच में या एक दो बोगी इंजन के साथ लगा दी जाती है। इन महापुरुषों से यदि कोई सवाल करे की क्या जरनल टिकट खरीदने वाला व्यक्ति अपनी यात्रा का भाड़ा पूरा नहीं देता-? क्यों नहीं जरनल डिब्बे लम्बे मार्ग की गाडिय़ों में बढ़ाये जाते -? वैसे ये महापुरुष बात करते है विदेशों की तर्ज पर रेलवे का ढांचा परिवर्तन करने की। प्रभु जी आप की रेलवे पहले ही खस्ता हाल मेें है पटरियों में आये दिन सर्वेक्षण के बाद भी कोई न कोई खामियां दुर्घटना के बाद उजागर हो ही जाती है। क्यों नहीं आप अपनी पटरियों को दुरुस्त करना चाहते हैं-? ऐसेे में विकसित भारत नहीं बनेगा, देश की जनता की सुरक्षा के लिए आप ने भी बलिदान देना होगा।
साइन इन | रजिस्टर
स्टॉक्स फंड्स एफ&ओ कमोडिटी
सावधानी हटी दुर्घटना घटी, भाग्य भरोसे सड़क सुरक्षा
14 अक्तूबर 2016, 06:52 PM
सावधानी हटी दुर्घटना घटी। लेकिन क्या सिर्फ आपकी सावधानी का मतलब ही सड़क सुरक्षा है। जी नहीं, हमारी सड़कों पर डार्विन की सरवाईवल ऑफ द फिटेस्ट थ्योरी नहीं चलती। यहां सबसे फिट नहीं बल्कि सबसे भाग्यवान ही सरवाइव कर पाता है। आखिर क्यों हमारे लिए सड़क हादसा एक ऐसा खतरा है जिससे कोई भी कभी भी सुरक्षित नहीं।
हमारी सड़कों पर हर घंटे 17 जानें जा रही हैं। विश्व स्वास्थ्य के मुताबिक सड़क हादसे में मरने वालों में करीब 55 फीसदी लोग 15-34 साल के उम्र के हैं। ये आंकड़े नहीं दर्द की अंतहीन दास्तान है। गुरुग्राम की माविस रसेल को मार्च 2011 की वो रात कभी नहीं भूलेगी। उस रात आई एक फोन कॉल ने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी।
#mufiii
plzzz mark brainliest