Hindi, asked by anantrajusharma, 10 months ago

nibandh on the given topic
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Answered by shubhamdata7
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HERE IS YOUR ANSWER

Explanation:

हमारे समाज में सदियों से निरक्षरता का कोढ़ विद्यमान है और इसका कारण भी हमारी सामाजिक विकृतियाँ ही हैं। निरक्षरता की यह ज्वलंत समस्या दरअसल हमारी उस वर्ण-व्यवस्था का प्रतिफल है जिसके तहत समाज में कुछ वर्गों को पढ़ने-लिखने का अधिकार प्राप्त नहीं था। हमारा समाज मातृशक्ति की महिमा गाता है नारी को पूजनीया कहता है किंतु उसी मसाज ने महिलाओं के शिक्षित बनने में बाधाएँ खड़ी की। यदि नारी स्वयं शिक्षित होगी और शिक्षा का महत्व समझेगी तो निश्चय ही वह अपने बच्चों को भी सिक्षित करने का प्रयास करेगी। अशिक्षित नारी भावी पीढ़ी को जन्म तो दे सकती है किंतु पढ़ाई के लिए प्रेरित नहीं कर सकती।

हमारा देश भारत सदियों तक परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। विदेशी शासकों को तो इस देश पर शासन करना और इसे लूटना-खसोटना था। वे भला शिक्षा का प्रचार-प्रसार क्यों होने देते। वे तो हमारी भाषा और हमारे साहित्य को ही समाप्त कर देना चाहते थे। उन्होंने हमारे इतिहास तक को विकृत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वे समझते थे कि देश की जनता जितनी असिक्षित होगी उनका सासन भी उतना ही दीर्घस्थायी होगा।

बेशक अँरेजों ने अपना प्रशासनिक कार्य संपन्न करवान के उद्देश्य से इस ओर ध्यान दिया किंतु लॉर्ड मैकाले द्वारा आरोपित उस शिक्षा का मूल उद्देस्य सिर्फ चपरासी और क्लर्क पैदा करना तथा अपनी भारतीय संस्कृति धर्म और परंपरा के प्रति तिरस्कार का भाव उत्पन्न करवाना था। फिर अँगरेजों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा के लिए पर्याप्त वयवस्था भी नहीं थी। नगरों में ले-देकर कुल एक या दो विद्यालय होते थे जिनमें कतिपय संपन्न लोगों के बच्चे पढ़ने जाते थे।

इस निरक्षरता रूपी दानव के चलते देश में आदर्श नागरिकों का स्पष्ट अभाव परिलक्षित होता है तथा ऐसे व्यक्तियों का नितांत अभाव है जो राष्ट्र के कल्याण के विषय में चिंता करते हैं। यह निरक्षरता की ही विडंबना है कि भारतवासियों को राजनैतिक आर्थिक सामाजिक धार्मिक तथा वैयक्तिक संकटों से गुजरना पड़ता है। देशवासियों की अशिक्षा का लाभ उठाकर साहूकारों ने मजदूरों और किसानों का भरपूर दोहन और शोषण किया है।

बहरहाल देश के चंद पढ़ं-लिखे लोगों ने स्वतंत्रता की अलख जगाई। देशवासियों में जागृति पैदा की और स्वातंत्र्य समर का अपने-अपने ढंग से नेतृत्व करते हुए अंततः स्वतंत्रता-प्राप्त करने में सफल रहे। इन नेताओं ने स्वतंत्रता-प्राप्ति के साथ-साथ सिक्षाक महत्व का भी प्रचार-प्रसार किया। निरक्षरता के कोढ़ से मुक्ति पाने के लिए साक्षरता-आंदोलन का सूत्रपात हुआ।

भारत में राष्टर्य आंदोलन के फलस्वरूप सन् 1937 में प्रांतों में लोकप्रिय सरकारों की स्थापना की गई और देश की जनता को साक्षर बनाने का प्रयास शुरू हुआ। गाँव-गाँव में प्रौढ़-शिक्षा-केंद्र तथा रात्रिकालीन पाठशालाएँ स्थापित की गईं। पुस्तकालय और वाचनालय खोले गए। ग्रामीणओं को समझाया गया कि पुलिस पटवारी जमींदार और साहूकार उन्हें इसलिए लूटते हैं क्योंकि वे निरक्षर हैं। जैसे-तैसे चलता ही रहा।

15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया और देशकी सत्ता स्वदेशवासियों के हाथ में आ गई। तब साक्षरता-प्रसार-आंदोलन को अधिक व्यापक रूप देकर क्रियान्वित किया गया। गाँवों में अशिक्षित ग्रामीणों को शिक्षित करने के साथ-साथ उनके मनोरंजन उनकी स्वास्थ्य-रक्षा तथा ज्ञानवृद्धि के उपाय किए गए। इस प्रकार स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् इस ओर ध्यान दिया गया। अनेक कार्यक्रम चलाए गए पर वही ढाक के तीन पात समस्या अभी भी बनी हुई है-जस की तस। भारत की आधी से भी अधिक आबादी आज भी ज्ञान के प्रकाश से वंचित है निरक्षर है-काला अक्षर भैंस बराबर।

सवतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् हमने शासन का प्रजातांत्रिक रूप अपने लिए चुना और हम गणतंत्र हो गए किंतु निरक्षरता के कारण प्रजातंत्र का सफल होना संभव नहीं है। निरक्षर जनता को आसानी से दुष्प्रचार के द्वारा बरगलाया जा सकता है और वह राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समस्याओ के प्रति जागरूक नहीं हो पाते। उन्हें अपने मत (वोट) का मह्तव समझ में नहीं आता और अज्ञानता के कारण व-जाति धर्म और क्षुद्र स्वार्थों के चक्कर में फँसकर-अयोग्य प्रत्याशी को अपना मत दे देते हैं। कभी-कभी तो लालच में आकर अपना मत दे देते हैं। अज्ञानता के कारण वे आधुनिक साधनों को नहीं अपनाते और कूपमंडूक बने रहते हैं तथा पिछड़ जाते हैं। देश के विकास का लाभ उन वंचितों तक नहीं पहुँचता तथा विकास अधूरा रह जाता है।

निरक्षरता का कोढ़ राष्ट्र के मस्तक का कलंक तथा समाज और व्यक्ति के लिए एक अभिशाप है। सरकारी प्रयत्न निर्बाध रूप से जारी है। आंगनबाड़ी अभियान सर्व शिक्षा अबियान तथा साक्षरता अभियान चलाया जा रहा है। छह से चौदह वर्ष तक के लड़के-लड़कियों की शिक्षा अनिवार्य तथा निःशुल्क कर दी गई है। प्रौढ़-शिक्षा-कार्क्रम भी पूरे जोर-शोर से चलाए जा रहे हैं। कुछ एन.जी.ओ. भी इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। पर भारत में यह समस्या इतनी जटिल है कि इसके लिए भगीरथ प्रयत्न की आवश्यकता है। यहाँ जरूरत है इस बात की कि देश का हर पढ़ा-लिखा नागरिक चाहे वह स्वयं स्कूल में पढ़ने वाला बालक ही क्यों न हो-स्वेच्छा से इस मुहिम में जुटे और अपना योगदान दे। आइए हम प्रतिज्ञा करें कि हम अशिक्षा को देशनिकाला देकर रहेंगे।

Answered by fyrelord
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हमारे समाज में सदियों से निरक्षरता का कोढ़ विद्यमान है और इसका कारण भी हमारी सामाजिक विकृतियाँ ही हैं। निरक्षरता की यह ज्वलंत समस्या दरअसल हमारी उस वर्ण-व्यवस्था का प्रतिफल है जिसके तहत समाज में कुछ वर्गों को पढ़ने-लिखने का अधिकार प्राप्त नहीं था। हमारा समाज मातृशक्ति की महिमा गाता है नारी को पूजनीया कहता है किंतु उसी मसाज ने महिलाओं के शिक्षित बनने में बाधाएँ खड़ी की। यदि नारी स्वयं शिक्षित होगी और शिक्षा का महत्व समझेगी तो निश्चय ही वह अपने बच्चों को भी सिक्षित करने का प्रयास करेगी। अशिक्षित नारी भावी पीढ़ी को जन्म तो दे सकती है किंतु पढ़ाई के लिए प्रेरित नहीं कर सकती।

हमारा देश भारत सदियों तक परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। विदेशी शासकों को तो इस देश पर शासन करना और इसे लूटना-खसोटना था। वे भला शिक्षा का प्रचार-प्रसार क्यों होने देते। वे तो हमारी भाषा और हमारे साहित्य को ही समाप्त कर देना चाहते थे। उन्होंने हमारे इतिहास तक को विकृत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वे समझते थे कि देश की जनता जितनी असिक्षित होगी उनका सासन भी उतना ही दीर्घस्थायी होगा।

बेशक अँरेजों ने अपना प्रशासनिक कार्य संपन्न करवान के उद्देश्य से इस ओर ध्यान दिया किंतु लॉर्ड मैकाले द्वारा आरोपित उस शिक्षा का मूल उद्देस्य सिर्फ चपरासी और क्लर्क पैदा करना तथा अपनी भारतीय संस्कृति धर्म और परंपरा के प्रति तिरस्कार का भाव उत्पन्न करवाना था। फिर अँगरेजों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा के लिए पर्याप्त वयवस्था भी नहीं थी। नगरों में ले-देकर कुल एक या दो विद्यालय होते थे जिनमें कतिपय संपन्न लोगों के बच्चे पढ़ने जाते थे।

इस निरक्षरता रूपी दानव के चलते देश में आदर्श नागरिकों का स्पष्ट अभाव परिलक्षित होता है तथा ऐसे व्यक्तियों का नितांत अभाव है जो राष्ट्र के कल्याण के विषय में चिंता करते हैं। यह निरक्षरता की ही विडंबना है कि भारतवासियों को राजनैतिक आर्थिक सामाजिक धार्मिक तथा वैयक्तिक संकटों से गुजरना पड़ता है। देशवासियों की अशिक्षा का लाभ उठाकर साहूकारों ने मजदूरों और किसानों का भरपूर दोहन और शोषण किया है।

बहरहाल देश के चंद पढ़ं-लिखे लोगों ने स्वतंत्रता की अलख जगाई। देशवासियों में जागृति पैदा की और स्वातंत्र्य समर का अपने-अपने ढंग से नेतृत्व करते हुए अंततः स्वतंत्रता-प्राप्त करने में सफल रहे। इन नेताओं ने स्वतंत्रता-प्राप्ति के साथ-साथ सिक्षाक महत्व का भी प्रचार-प्रसार किया। निरक्षरता के कोढ़ से मुक्ति पाने के लिए साक्षरता-आंदोलन का सूत्रपात हुआ।

भारत में राष्टर्य आंदोलन के फलस्वरूप सन् 1937 में प्रांतों में लोकप्रिय सरकारों की स्थापना की गई और देश की जनता को साक्षर बनाने का प्रयास शुरू हुआ। गाँव-गाँव में प्रौढ़-शिक्षा-केंद्र तथा रात्रिकालीन पाठशालाएँ स्थापित की गईं। पुस्तकालय और वाचनालय खोले गए। ग्रामीणओं को समझाया गया कि पुलिस पटवारी जमींदार और साहूकार उन्हें इसलिए लूटते हैं क्योंकि वे निरक्षर हैं। जैसे-तैसे चलता ही रहा।

15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया और देशकी सत्ता स्वदेशवासियों के हाथ में आ गई। तब साक्षरता-प्रसार-आंदोलन को अधिक व्यापक रूप देकर क्रियान्वित किया गया। गाँवों में अशिक्षित ग्रामीणों को शिक्षित करने के साथ-साथ उनके मनोरंजन उनकी स्वास्थ्य-रक्षा तथा ज्ञानवृद्धि के उपाय किए गए। इस प्रकार स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् इस ओर ध्यान दिया गया। अनेक कार्यक्रम चलाए गए पर वही ढाक के तीन पात समस्या अभी भी बनी हुई है-जस की तस। भारत की आधी से भी अधिक आबादी आज भी ज्ञान के प्रकाश से वंचित है निरक्षर है-काला अक्षर भैंस बराबर।

सवतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् हमने शासन का प्रजातांत्रिक रूप अपने लिए चुना और हम गणतंत्र हो गए किंतु निरक्षरता के कारण प्रजातंत्र का सफल होना संभव नहीं है। निरक्षर जनता को आसानी से दुष्प्रचार के द्वारा बरगलाया जा सकता है और वह राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समस्याओ के प्रति जागरूक नहीं हो पाते। उन्हें अपने मत (वोट) का मह्तव समझ में नहीं आता और अज्ञानता के कारण व-जाति धर्म और क्षुद्र स्वार्थों के चक्कर में फँसकर-अयोग्य प्रत्याशी को अपना मत दे देते हैं। कभी-कभी तो लालच में आकर अपना मत दे देते हैं। अज्ञानता के कारण वे आधुनिक साधनों को नहीं अपनाते और कूपमंडूक बने रहते हैं तथा पिछड़ जाते हैं। देश के विकास का लाभ उन वंचितों तक नहीं पहुँचता तथा विकास अधूरा रह जाता है।

निरक्षरता का कोढ़ राष्ट्र के मस्तक का कलंक तथा समाज और व्यक्ति के लिए एक अभिशाप है। सरकारी प्रयत्न निर्बाध रूप से जारी है। आंगनबाड़ी अभियान सर्व शिक्षा अबियान तथा साक्षरता अभियान चलाया जा रहा है। छह से चौदह वर्ष तक के लड़के-लड़कियों की शिक्षा अनिवार्य तथा निःशुल्क कर दी गई है। प्रौढ़-शिक्षा-कार्क्रम भी पूरे जोर-शोर से चलाए जा रहे हैं। कुछ एन.जी.ओ. भी इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। पर भारत में यह समस्या इतनी जटिल है कि इसके लिए भगीरथ प्रयत्न की आवश्यकता है। यहाँ जरूरत है इस बात की कि देश का हर पढ़ा-लिखा नागरिक चाहे वह स्वयं स्कूल में पढ़ने वाला बालक ही क्यों न हो-स्वेच्छा से इस मुहिम में जुटे और अपना योगदान दे। आइए हम प्रतिज्ञा करें कि हम अशिक्षा को देशनिकाला देकर रहेंगे।

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