Nibhad kasia ho shiskha
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शिक्षा का लक्ष्य विद्यार्थियों के अंदर अच्छे संस्कार पैदा करना तथा उन्हें आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाना है। स्कूल में दाखिला लेने के बाद एक विद्यार्थी अपने स्कूल की पुस्तकों से, शिक्षकों से, स्कूल के वातावरण तथा सहपाठियों से बहुत कुछ सीखता है।
शिक्षा का उद्देश्य दूसरों पर विचार थोपना या मतारोपण करना नहीं है और न ही शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को किसी प्रकार का आदेश देना है। शिक्षा का लक्ष्य किसी प्रकार का कष्ट अथवा दण्ड भी नहीं होना चाहिए। जब शिक्षा दण्ड बन जाती है तो छात्रों में अनुशासनहीनता पैदा होती है, जिसके फलस्वरूप छात्र आन्दोलन तथा हडतालें आदि करते हैं।
शिक्षा का उद्देश्य केवल किताबी कीड़े पैदा करना नहीं बल्कि देश के लिए भावी नागरिकों को श्रेष्ठ तथा स्वास्थ बनाना है। ऐसे ही नागरिक आगे चलकर हमारे राष्ट को उनन्त एवं समृद्ध बना सकते हैं।
वास्तविक शिक्षा वही है जो व्यक्ति को सभी प्रकार के अंधकारों और बंधनों से मुक्त करती है। इस प्रकार का लक्ष्य मनुष्य को अज्ञान-अंधकार तथा बंधनों से मुक्त कराना है।
वास्तविक शिक्षा वही है जो व्यक्ति को भी सभी प्रकार के अंधकारों और बंधनों सें मुक्त करती है। इस प्रकार शिक्षा का लक्ष्य मनुष्य को अज्ञान-अंधकार तथा बंधनों से मुक्त कराना है।
वास्तविक शिक्षा मनुष्य को असत्य और अपवित्रता से छुड़ा देती है। वह उसके विवेक को जागृत करके उसे बुद्धिवान बना देती है। गरीबी में मनुष्य को अपने जीवन में दुख और कष्ट प्राप्त होता है। शिक्षित होकर व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा होना सीख जाता है। उसे धन कमाकर अपनी और अपने परिवार की आजीविका चलाने की अक्ल आ जाती है। इस प्रकार शिक्षा मनुष्य को गरीबी से भी मुक्ति दिलाती है।
मनुष्य के मन में छाए हुए कई प्रकार के दुराग्रह और हठ शिक्षा के प्रभाव से मिट जाते हैं। दुर्बलता और बीमारियाँ–चाहे वे व्यक्ति के मन से सम्बन्धित हों या शरीर से संबंधित हों-शिक्षा के प्रभाव से मिट जाया करती हैं।
शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास करना है। शिक्षा आदमी को सामाजिक व्यवहार श्रेष्ठ तरीके से करना सिखलाती है। शिक्षित होकर ही व्यक्ति देश की मुख्य धारा से सही रूप से जुड़ता है तथा राजनीतिक क्षेत्र में अपनी भागीदारी निभाता है।
Answer:
शिक्षा का उद्देश्य
शिक्षा का लक्ष्य विद्यार्थियों के अंदर अच्छे संस्कार पैदा करना तथा उन्हें आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाना है। स्कूल में दाखिला लेने के बाद एक विद्यार्थी अपने स्कूल की पुस्तकों से, शिक्षकों से, स्कूल के वातावरण तथा सहपाठियों से बहुत कुछ सीखता है।
शिक्षा का उद्देश्य दूसरों पर विचार थोपना या मतारोपण करना नहीं है और न ही शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को किसी प्रकार का आदेश देना है। शिक्षा का लक्ष्य किसी प्रकार का कष्ट अथवा दण्ड भी नहीं होना चाहिए। जब शिक्षा दण्ड बन जाती है तो छात्रों में अनुशासनहीनता पैदा होती है, जिसके फलस्वरूप छात्र आन्दोलन तथा हडतालें आदि करते हैं।
शिक्षा का उद्देश्य केवल किताबी कीड़े पैदा करना नहीं बल्कि देश के लिए भावी नागरिकों को श्रेष्ठ तथा स्वास्थ बनाना है। ऐसे ही नागरिक आगे चलकर हमारे राष्ट को उनन्त एवं समृद्ध बना सकते हैं।
वास्तविक शिक्षा वही है जो व्यक्ति को सभी प्रकार के अंधकारों और बंधनों से मुक्त करती है। इस प्रकार का लक्ष्य मनुष्य को अज्ञान-अंधकार तथा बंधनों से मुक्त कराना है।
वास्तविक शिक्षा वही है जो व्यक्ति को भी सभी प्रकार के अंधकारों और बंधनों सें मुक्त करती है। इस प्रकार शिक्षा का लक्ष्य मनुष्य को अज्ञान-अंधकार तथा बंधनों से मुक्त कराना है।
वास्तविक शिक्षा मनुष्य को असत्य और अपवित्रता से छुड़ा देती है। वह उसके विवेक को जागृत करके उसे बुद्धिवान बना देती है। गरीबी में मनुष्य को अपने जीवन में दुख और कष्ट प्राप्त होता है। शिक्षित होकर व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा होना सीख जाता है। उसे धन कमाकर अपनी और अपने परिवार की आजीविका चलाने की अक्ल आ जाती है। इस प्रकार शिक्षा मनुष्य को गरीबी से भी मुक्ति दिलाती है।
मनुष्य के मन में छाए हुए कई प्रकार के दुराग्रह और हठ शिक्षा के प्रभाव से मिट जाते हैं। दुर्बलता और बीमारियाँ–चाहे वे व्यक्ति के मन से सम्बन्धित हों या शरीर से संबंधित हों-शिक्षा के प्रभाव से मिट जाया करती हैं।
शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास करना है। शिक्षा आदमी को सामाजिक व्यवहार श्रेष्ठ तरीके से करना सिखलाती है। शिक्षित होकर ही व्यक्ति देश की मुख्य धारा से सही रूप से जुड़ता है तथा राजनीतिक क्षेत्र में अपनी भागीदारी निभाता है।