Nimnalikhit samast Pado Kavya kar samas ka naam likhiye - yathasamarth
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समास(Compound) की परिभाषा-
अनेक शब्दों को संक्षिप्त करके नए शब्द बनाने की प्रक्रिया समास कहलाती है।
दूसरे अर्थ में- कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट करना 'समास' कहलाता है।
अथवा,
दो या अधिक शब्दों (पदों) का परस्पर संबद्ध बतानेवाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधिक शब्दों से जो एक स्वतन्त्र शब्द बनता है, उस शब्द को सामासिक शब्द कहते है और उन दो या अधिक शब्दों का जो संयोग होता है, वह समास कहलाता है।
समास में कम-से-कम दो पदों का योग होता है।
वे दो या अधिक पद एक पद हो जाते है: 'एकपदीभावः समासः'।
समास में समस्त होनेवाले पदों का विभक्ति-प्रत्यय लुप्त हो जाता है।
समस्त पदों के बीच सन्धि की स्थिति होने पर सन्धि अवश्य होती है। यह नियम संस्कृत तत्सम में अत्यावश्यक है।
समास की प्रक्रिया से बनने वाले शब्द को समस्तपद कहते हैं; जैसे- देशभक्ति, मुरलीधर, राम-लक्ष्मण, चौराहा, महात्मा तथा रसोईघर आदि।
समस्तपद का विग्रह करके उसे पुनः पहले वाली स्थिति में लाने की प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं; जैसे- देश के लिए भक्ति; मुरली को धारण किया है जिसने; राम और लक्ष्मण; चार राहों का समूह; महान है जो आत्मा; रसोई के लिए घर आदि।
समस्तपद में मुख्यतः दो पद होते हैं- पूर्वपद तथा उत्तरपद।
पहले वाले पद को पूर्वपद कहा जाता है तथा बाद वाले पद को उत्तरपद; जैसे-
पूजाघर(समस्तपद) - पूजा(पूर्वपद) + घर(उत्तरपद) - पूजा के लिए घर (समास-विग्रह)
राजपुत्र(समस्तपद) - राजा(पूर्वपद) + पुत्र(उत्तरपद) - राजा का पुत्र (समास-विग्रह)
समास के भेद
समास के मुख्य सात भेद है:-
(1)तत्पुरुष समास ( Determinative Compound)
(2)कर्मधारय समास (Appositional Compound)
(3)द्विगु समास (Numeral Compound)
(4)बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)
(5)द्वन्द समास (Copulative Compound)
(6)अव्ययीभाव समास(Adverbial Compound)
(7)नञ समास
(1)तत्पुरुष समास :- जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक-चिह्न लुप्त हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते है।
जैसे-
तुलसीकृत= तुलसी से कृत
शराहत= शर से आहत
राहखर्च= राह के लिए खर्च
राजा का कुमार= राजकुमार
तत्पुरुष समास में अन्तिम पद प्रधान होता है। इस समास में साधारणतः प्रथम पद विशेषण और द्वितीय पद विशेष्य होता है। द्वितीय पद, अर्थात बादवाले पद के विशेष्य होने के कारण इस समास में उसकी प्रधानता रहती है।
तत्पुरुष समास के भेद
तत्पुरुष समास के छह भेद होते है-
(i)कर्म तत्पुरुष
(ii)करण तत्पुरुष
(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष
(iv)अपादान तत्पुरुष
(v)सम्बन्ध तत्पुरुष
(vi)अधिकरण तत्पुरुष
(i)कर्म तत्पुरुष या (द्वितीया तत्पुरुष)- जिसके पहले पद के साथ कर्म कारक के चिह्न (को) लगे हों। उसे कर्म तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-
समस्त-पदविग्रहस्वर्गप्राप्तस्वर्ग (को) प्राप्तकष्टापत्रकष्ट (को) आपत्र (प्राप्त)आशातीतआशा (को) अतीतगृहागतगृह (को) आगतसिरतोड़सिर (को) तोड़नेवालाचिड़ीमारचिड़ियों (को) मारनेवालासिरतोड़सिर (को) तोड़नेवालागगनचुंबीगगन को चूमने वालायशप्राप्तयश को प्राप्तग्रामगतग्राम को गया हुआरथचालकरथ को चलाने वालाजेबकतराजेब को कतरने वाला
(ii) करण तत्पुरुष या (तृतीया तत्पुरुष)- जिसके प्रथम पद के साथ करण कारक की विभक्ति (से/द्वारा) लगी हो। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-
समस्त-पदविग्रहवाग्युद्धवाक् (से) युद्धआचारकुशलआचार (से) कुशलतुलसीकृततुलसी (से) कृतकपड़छनाकपड़े (से) छना हुआमुँहमाँगामुँह (से) माँगारसभरारस (से) भराकरुणागतकरुणा से पूर्णभयाकुलभय से आकुलरेखांकितरेखा से अंकितशोकग्रस्तशोक से ग्रस्तमदांधमद से अंधामनचाहामन से चाहासूररचितसूर द्वारा रचित
(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष या (चतुर्थी तत्पुरुष)- जिसके प्रथम पद के साथ सम्प्रदान कारक के चिह्न (को/के लिए) लगे हों। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-
समस्त-पदविग्रहदेशभक्तिदेश (के लिए) भक्तिविद्यालयविद्या (के लिए) आलयरसोईघररसोई (के लिए) घरहथकड़ीहाथ (के लिए) कड़ीराहखर्चराह (के लिए) खर्चपुत्रशोकपुत्र (के लिए) शोकस्नानघरस्नान के लिए घरयज्ञशालायज्ञ के लिए शालाडाकगाड़ीडाक के लिए गाड़ीगौशालागौ के लिए शालासभाभवनसभा के लिए भवनलोकहितकारीलोक के लिए हितकारीदेवालयदेव के लिए आलय
(iv)अपादान तत्पुरुष या (पंचमी तत्पुरुष)- जिसका प्रथम पद अपादान के चिह्न (से) युक्त हो। उसे अपादान तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-
समस्त-पदविग्रहदूरागतदूर से आगतजन्मान्धजन्म से अन्धरणविमुखरण से विमुखदेशनिकालादेश से निकालाकामचोरकाम से जी चुरानेवालानेत्रहीननेत्र (से) हीनधनहीनधन (से) हीनपापमुक्तपाप से मुक्तजलहीनजल से हीन