Nirala ji ki kavita bharti vandana me bharat mata ki shobha ka varnan
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Explanation:
प्रसंग –
प्रस्तुत अवतरण सुमित्रानन्दन पंत की ’भारत माता’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने भारत की दुर्दशा के साथ प्राकृतिक परिवेश का भी चित्रण किया है।
व्याख्या –
कवि पन्त कहते है कि भारत माता गाँवों में निवास करती है, अर्थात् सच्चे अर्थों में भारत गाँवों का देश है तथा गाँवों में ही भारत माता के दर्शन हो पाते हैं। यहाँ पर खेतों में हरियाली फैली रहती है और उनमें अनाज लहराता रहता है, परन्तु इसका हरा आंचल मैला-सा अर्थात् गन्दगी से व्याप्त रहता है, अर्थात् यहाँ गाँवों में गन्दगी रहती हैं।
गंगा और यमुना में भारत माता के आँसुओं का जल है, भारतीयों की दरिद्रता-दीनता एवं श्रमनिष्ठा का जल बहता है। भारतीयों की दीनता को देखकर मानो भारत माता करुणा के आँसू बहा रही है। वे आँसू ही गंगा-यमुना आदि नदियों की जलधारा के रूप में प्रकाहित हो रहे हैं। भारत माता मिट्टी की प्रतिभा अर्थात् दरिद्रता की मूर्ति है तथा सदा उदास एवं दुखिया दिखाई देती है।
कवि वर्णन करता है कि भारतमाता की दृष्टि दीनता से ग्रस्त, निराशा से झुकी हुई रहती है, इसके अधरों पर मूक रोदन की व्यथा दिखाई देती है। भारत माता का मन युगों से बाहरी लोगों के आक्रमण, शोषण, अज्ञान आदि के कारण विषादग्रस्त रहता है। इस कारण वह अपने ही घर में प्रवासिनी के समान उपेक्षित, शासकों की कृपा पर निर्भर और परमुखापेक्षी रहती है। यह भारत माता का दुर्भाग्य ही है।
विशेष – 1.
यह कविता अंग्रेजों के शासनकाल में लिखी गई थी, इस कारण इसमें भारतमाता को ’उदासिनी’ ’अपने घर में प्रवासिनी’ कहा गया है। गाँवों में निवास करने वाले भारत का तथा यहाँ के परिवेश का चित्रण यथार्थ रूप में हुआ है।
2. कवि का राष्ट्र-प्रेम और प्रगतिवादी दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है।
3. भाषा तत्सम-प्रधान, भावाभिव्यक्ति प्रखर, नवीन प्रतीक एवं उपमान विधान के साथ मुक्त छन्द का प्रयोग हुआ है।
4. अनुप्रास, रूपक एवं परिकर अलंकार प्रयुक्त है।
तीस कोटि संतान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्र जन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत-मस्तक
तरु जल निवासिनी!
स्वर्ग शस्य पर-पदतल लुंठित,
धरती सा सहिष्णु मन कंुठित,
क्रंदन कंपित अधर मौन स्मित,
राहू-ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी!
निराला की कविता 'भारत वंदना' में भारत माता की शोभा का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
'भारत वंदना' कविता में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला में मातृभूमि भारत के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति भाव का प्रदर्शन किया है। वह भारत माता का गुणगान करते हुए कहते हैं कि यह भारत भूमि धन्य है, जिसमें हम सब ने जन्म लिया। हमारा जीवन भी धन्य है।
सभी देशवासी चारों तरफ से भारत माता की गुणों का बखान कर रहे हैं। दसों दिशाएं उदार मुख होकर भारत माता का गुणगान करने में लगी हैं। भारत माता का गुणगान करने में सभी दिशाएं ध्वनित हो गई हैं, और उदार होकर गुणगान कर रही हैं।
भारत वंदना कविता में कवि ने भारत माता के भौगोलिक सौंदर्य का वर्णन करके भारत माता के पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत माता के भौगोलिक सौंदर्य का वर्णन किया है। जैसे वसंत हर फूल को खिला देता है और प्रकृति में आनन्दमय वातावरण उत्पन्न कर देता है।
भारत वंदना' कविता में कवि निराला ने भारत माता के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है, और स्वयं को भारत माता के चरणों में अर्पित करके देशवासियों को प्रेरित किया है।
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