Hindi, asked by aswaniaakash650, 1 year ago

note Bandi essay in Hindi about 450 words

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Answered by yuvraj19
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आजादी की लड़ाई के बाद संभवत नोटबंदी ही ऐसा कदम है, जिसमें समूचा भारत व्यापक स्तर पर प्रभावित हुआ है. क्या गरीब, क्या अमीर, क्या छोटा, क्या बड़ा, क्या बुजुर्ग, क्या महिलाएं हर एक व्यक्ति को नोट बंदी के फैसले में गहरे तक प्रभावित किया है. अगर हम बात करते हैं इसके फायदे और नुकसान के बारे में तो इसका आंकलन 1 शब्दों में, हां या ना के रूप में करना न्यायोचित नहीं होगा. अर्थशास्त्री के तौर पर ज्यादा और पूर्व प्रधानमंत्री के तौर पर कम याद किये जाने वाले डॉ. मनमोहन सिंह ने इस बारे में कदाचित सटीक टिप्पणियां की हैं. राज्यसभा में नोटबंदी पर बोलते हुए सत्तापक्ष को कई नसीहतें देने के साथ-साथ, उन्होंने लगभग 10 मिनट के अपने भाषण में नोटबंदी को देश के इतिहास का 'सबसे बड़ा कुप्रबंधन' करार दिया. अपने प्रधानमंत्रित्व के दूसरे कार्यकाल में सर्वाधिक आलोचना झेलने वाले पीएम ने इस बाबत बेहद व्यवहारिक ढंग से कहा कि 'नोटबंदी के उद्देश्यों को लेकर असहमत नहीं हूं, लेकिन इसके बाद बहुत बड़ा कुप्रबंधन देखने को मिला, जिसे लेकर पूरे देश में कोई दो राय नहीं'. महान अर्थशास्त्री ने आगे कहा कि 'मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह कहता हूं कि हम इसके अंतिम नतीजों को नहीं जानते. कृषि, असंगठित क्षेत्र और लघु उद्योग नोटबंदी के फैसले से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और लोगों का मुद्रा व बैंकिंग व्यवस्था पर से विश्वास खत्म हो रहा है. नियमों में हर दिन हो रहा बदलाव प्रधानमंत्री कार्यालय और भारतीय रिजर्व बैंक की खराब छवि दर्शाता है'. ज़रा सी निष्पक्षता रखने वाला व्यक्ति भी शायद ही डॉ. सिंह के हालिया कथनों से असहमति रखेगा. शुरू के दिनों में निश्चित रूप से मैं खुद भी पीएम के इस कदम के पक्ष में था, क्योंकि इस बात का विश्वास मुझे भी था कि पीएम मोदी जैसे सक्रीय और मजबूत व्यक्तित्व ने सवा सौ करोड़ देशवासियों के दुःख दर्द का सटीक आंकलन किया होगा, किन्तु अफ़सोस कइयों की तरह मुझे भी निराशा ही हाथ लगी. हालाँकि, ऐसा भी नहीं है कि इन फैसलों के सिर्फ नुक्सान ही हों, बल्कि निश्चित रूप से इस फैसले के फायदे भी हैं. फायदा, नुक्सान के सम्बन्ध में दोनों आंकलन, अल्पकालिक और दीर्घकालिक स्वरुप में विद्यमान हैं. अगर कॉन्सेप्ट के तौर पर बात की जाए तो नोटबंदी का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि हर व्यक्ति को अर्थव्यवस्था की कई बुनियादी बातों से दो-चार होना पड़ा है और कहीं ना कहीं उसकी समझ इससे बढ़ी ही है, वह जागरूक ही हुआ है. 
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