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गतिविधि
कुछ बौकिक दिशज
शब्दों के उदाहरण ऊपर दिए गए
ऐसे ही कुछ लौकिक देशजाशब्दो
बनाइप
की
सूची
Answers
Answer:
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Explanation:
अमतौर पर विद्यालयों में भाषा शिक्षण के कुछ खास और बरसों से चले आ रहे अभ्यास ही बच्चों से करवाए जाते हैं। माना यह जाता है कि इन अभ्यासों के ज़रिए बच्चे पढ़ने-लिखने का कौशल सीख जाएंगे।
सरसरी तौर पर, पढ़ना-लिखना सीखने को अक्षरों, शब्दों की पहचान, वर्णमाला को क्रम से बोल पाना, विभिन्न घुमावदार मात्राओं के उच्चारण, अक्षरों से मिलाकर शब्द पढ़ना, और ऐसे ही कुछ वाक्य पढ़ना जैसी गतिविधियों से समझा जाता है। विद्यालयों के भाषा के कालांश में बच्चों को लगातार इन कवायदों में लगे हुए देखा जा सकता है और वे इसी तरह की प्रक्रिया में कक्षा 1 से 5 तक लगे ही रहते हैं। इस प्रकार से कुछ बच्चों में वर्णों को मिलाकर शब्द बनाना, फिर वाक्य बनाकर पढ़ने की आदत बन जाती है। इससे बच्चों को लिखे हुए का अर्थ समझने में कठिनाई होती है।
एक तो पढ़ना-लिखना सीखने-सिखाने के ये तौर तरीके अपने-आप में समस्याग्रस्त हैं और दूसरी परिस्थिति यह कि सुदूर ग्रामीण परिवेश के बच्चों का हिन्दी भाषा के लिखित व मौखिक स्वरूप से आमना-सामना (एक्सपोज़र) नहीं के बराबर होता है। इन बच्चों को अपने विद्यालय के अतिरिक्त घर, परिवार व परिवेश में हिन्दी भाषा बोलने-सुनने, लिखने व लिखी हुई भाषा जैसे - विज्ञापन, अखबार, विभिन्न पत्रिकाएँ, टी.वी, साइन बोर्ड, आदि साधनों के ज़रिए समझने के मौके तुलनात्मक रुप से बहुत कम या नहीं मिलते हैं।
यहाँ हमें दो तरह की समस्याएँ स्पष्ट रुप से नज़र आती हैं -
* विद्यालय में चलने वाली याँत्रिक और निरर्थक कवायदें।
* सुदूर ग्रामीण परिवेश के बच्चों का हिन्दी भाषा के लिखित व मौखिक स्वरुप से परिचय व आधार का अभाव।
इन समस्याओं के सन्दर्भ में कुछ बातें जो कि भाषा शिक्षण में मानी जाती रही हैं और एनसीएफ-2005 भी इस बात की पैरवी करता है कि बच्चा अपनी मातृभाषा पूरे सन्दर्भ में ही सीखता है। 4 से 5 साल का होने तक बच्चा अपने रोज़मर्रा के व्यवहार में उसका भरपूर उपयोग करने में सक्षम भी हो जाता है। अत: कक्षा में भी भाषा शिक्षण हेतु समृद्ध अर्थपूर्ण माहौल होना चाहिए। ऐसा माहौल जो बच्चों को लिखित व मौखिक भाषा की संरचना और उसके उपयोग के तरीकों को समझने के रोचक व अर्थपूर्ण मौके देता हो, जिसमें बच्चे की भाषा का उपयोग हो और बच्चे भी अपनी सक्रिय भागीदारी निभा सकें। दूसरी बात ये कि समझकर पढ़ पाने में अंदाज़ा लगाकर पढ़ पाने की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भाषा के परिपक्व पाठक जब पठन सामग्री का अध्ययन करते हैं तो वे लिखे हुए का अंदाज़ा लगाते हुए आगे पढ़ते जाते हैं। हम स्वयं भी पढ़ते हुए कई दफा यह महसूस करते हैं कि अक्षरों व मात्राओं की बहुत छोटी गलतियाँ हमसे अक्सर छूट जाती हैं। जब हम अक्षरों व मात्राओं पर बहुत केन्द्रित होकर पढ़ना शुरू करते हैं तो हमें लिखे हुए में ये सब गलतियाँ पकड़ में आने लगती हैं।
इसका मतलब यही हुआ कि धारा- प्रवाह पढ़ने में दृश्य-प्रतीकों के उच्चारण से ज़्यादा उस पूरे सन्दर्भ में बन रहे अर्थ की भूमिका होती है। अत: आवश्यक हो जाता है कि भाषा शिक्षण के कालांश में बच्चों के साथ किन्हीं खास शब्दों-अक्षरों के पठन-लेखन के साथ-साथ ऐसी गतिविधियाँ भी हों जिनसे बच्चों का भाषा के लिखित व मौखिक स्वरूप के विविध रूपों से आमना-सामना हो। उन्हें अन्दाज़ा लगाकर पढ़ पाने के ज़्यादा-से-ज़्यादा अर्थवान मौके मिलें।
इसी तरह की समझ के आधार पर सन्दर्भशाला परियोजना। के अन्तर्गत बाराँ ज़िले के आदिवासी अंचल के बच्चों के साथ भाषा (हिन्दी) सीखने-सिखाने को लेकर किए गए कुछ नवाचारों व उनके अनुभवों के बारे में आगे बताया जा रहा है।
* क्रियात्मक चित्रों पर काम: समूह में शिक्षक बच्चों को क्रियात्मक चित्र दिखाते हैं और उन पर बातचीत करते हैं कि चित्र में क्या हो रहा है? या क्या दिख रहा है? बच्चों की बताई बातों में से कुछ रुचिकर बातों को आपसी सहमति बनाकर एक से दो वाक्यों में चित्र के नीचे स्केच पेन से लिखा जाता है। अब शिक्षक इस चित्र को समूह में ऐसी जगह चिपका देते हैं जहाँ बच्चे इसे आसानी से पढ़/देख सकें।
Answer: It's help you
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