Political Science, asked by pritam1974, 11 months ago

ओज़ोन परत क्या है? ओज़ोन परत की क्षति के क्या कारण है! इसके क्या दुस्प्रभाव है

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Answered by Anirban1108
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ओजोन की परत हानिकारक पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने से रोकती है। वर्षों से ओजोन परत के क्षय होने के कारण, ओजोन परत में कई छेद हो गये है, और इसी के माध्यम से अब हानिकारक विकिरण वातावरण में प्रवेश करने लगा हैं। ओजोन परत के क्षय के कारण कैंसर जैसे बिमारियों के नकारात्मक प्रभाव बड़ जाते हैं।

ये तरंग दैर्ध्य किरणे पौधों और जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुंचाने के अलावा मनुष्यों में त्वचा कैंसर, सनबर्न और मोतियाबिंद आदि जैसी बीमारियां पैदा करती हैं। ये समस्या वास्तव में बहुत गंभीर है और जिससे यह वैश्विक चिंता का कारण बन गयी है। इन्ही चिंताओं के कारण 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को अपनाया गया। इस प्रोटोकॉल ने सीएफसी (क्लोरोफ्लोरोकार्बन) और हेलन जैसे ओजोन- अवक्षय रसायनों के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया।


ओजोन अवक्षय पृथ्वी के वायुमंडल या ओजोन परत में मौजूद ओजोन की कुल स्थिर मात्रा की कमी को प्रदर्शित करता है। इसे पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों के चारों ओर समताप मंडल में कमी के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है। दूसरी घटना को ओजोन छिद्र के रूप में जाना जाता है, समताप मंडल घटनाओं के अलावा, वसंत ऋतु ध्रुवीय ट्रोपोस्फेरिक ओजोन अवक्षय की घटनाएं भी इसमे शामिल होती हैं।

सॉल्वैंट्स, प्रोपेलेंट्स, हेलोकार्बन रेफ्रिजरेंट्स और फोम-फ्लाइंग एजेंट (क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी), एचसीएफसी, हलों) जैसे मानव निर्मित रसायनों को ओजोन- अवक्षय पदार्थ (ओडीएस) भी कहा जाता है, जो इस समस्या के प्रमुख कारण हैं। ये यौगिक सतह पर उत्सर्जित होने के बाद समताप मंडल में प्रवेश करते हैं और वहां ये फोटोविघटन नामक प्रक्रिया द्वारा हलोजन परमाणुओं को उत्सर्जित करते हैं। इससे ये ओजोन (O3) में ऑक्सीजन (O2) के टूटने का कारण बनते है, जिससे ओजोन की मात्रा में कमी आ जाती है और इसका क्षय होने लगता हैं।

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जय हिन्द, जय भारत।
Answered by ayushpandey98070
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ओजोन एक प्राकृतिक गैस है, जो वायुमंडल में बहुत कम मात्रा में पाई जाती है। पृथ्वी पर ओजोन दो क्षेत्रों में पाई जाती है। ओजोन अणु वायुंडल की ऊपरी सतह (स्ट्रेटोस्फियर) में एक बहुत विरल परत बनाती है। यह पृथ्वी की सतह से 17-18 कि.मी. ऊपर होती है, इसे ओजोन परत कहते हैं। वायुमंडल की कुल ओजोन का 90 प्रतिशत स्ट्रेटोस्फियर में होता है। कुछ ओजोन वायुमंडल की भीतरी परत में भी पाई जाती है।

ओजोन समस्या का ज्ञान

1980 के आस-पास अंटार्कटिक में कार्य करने वाले कुछ ब्रिटिश वैज्ञानिक अंटार्कटिक के ऊपर वायुमंडल ओजोन माप रहे थे यहां उन्हें जो दिखा वे उससे जरा भी खुशगवार नहीं हुए। उन्होंने पाया कि हर सितंबर-अक्टूबर में यहां के ऊपर ओजोन परत में काफी रिक्तता आ जाती है और तब तक प्रत्येक दक्षिणी बसंत में अंटार्कटिक के 15-24 कि.मी. ऊपर स्ट्रेटोस्फियर में 50 से 95 प्रतिशत ओजोन नष्ट हो जाती है। इससे ओजोन परत में कुछ रिक्त स्थान बन जाते हैं, जिन्हें अंटार्कटिक ओजोन छिद्र कहा गया।  

अंटार्कटिक विशिष्ट जलवायु स्थितियों के कारण ओजोन छिद्रता का प्रमुख केंद्र है और यही कारण है कि ओजोन-क्षरण का प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ रहा है, लेकिन कुछ हिस्से दूसरों की अपेक्षा अधिक प्रभावित होंगे, जिनमें दक्षिणी गोलार्द्ध के अधिक भूखंड मसलन-ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिणी अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका के कुछ हिस्से जहां की ओजोन परत में छिद्र है, अन्य देशों की अपेक्षा अधिक खतरे में है।

ओजोन-क्षरण के प्रभाव

मनुष्य तथा जीव-जंतु – यह त्वचा-कैंसर की दर बढ़ाकर त्वचा को रूखा, झुर्रियों भरा और असमय बूढ़ा भी कर सकता है। यह मनुष्य तथा जंतुओं में नेत्र-विकार विशेष कर मोतियाबिंद को बढ़ा सकती है। यह मनुष्य तथा जंतुओं की रोगों की लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर सकता है। द्रव्य - बढ़ा हुआ पराबैंगनी विकिरण पेंट, कपड़ों को हानि पहुंचाएगा, उनके रंग उड़ जाएंगे। प्लास्टिक का फर्नीचर, पाइप तेजी से खराब होंगे।

ये सभी नामव-निर्मित हैं-

सी.एफ.सी. क्लोरोफ्लोरोकार्बन, क्लोरीन, फ्लोरीन एवं ऑक्सीजन से बनी गैसें या द्रव पदार्थ हैं। ये मानव-निर्मित हैं, जो रेफ्रिजरेटर तथा वातानुकूलित यंत्रों में शीतकारक रूप में प्रयोग होते हैं। साथ ही इसका प्रयोग कम्प्यूटर, फोन में प्रयुक्त इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बोर्ड्स को साफ करने में भी होता है। गद्दों के कुशन, फोम बनाने, स्टायरोफोम के रूप में एवं पैकिंग सामग्री में भी इसका प्रयोग होता है। हैलोन्स – ये भी एक सी.एफ.सी. हैं, किंतु यह क्लोरीन के स्थान पर ब्रोमीन का परमाणु होता है। ये ओजोन परत के लिए सी.एफ.सी. से ज्यादा खतरनाक है। यह अग्निशामक तत्वों के रूप में प्रयोग होते हैं। ये ब्रोमिन, परमाणु क्लोरीन की तुलना में सौ गुना अधिक ओजोन अणु नष्ट करते हैं।

कार्बन टेट्राक्लोराइड- यह सफाई करने में प्रयुक्त होने वाले विलयों में पाया जाता है। 160 से अधिक उपभोक्ता उत्पादों में यह उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त होता है। यह भी ओजोन परत को हानि पहुंचाता है।  वायुमंडल में ओजोन की मात्रा प्राकृतिक रूप से बदलती रहती है। यह मौसम वायु-प्रवाह तथा अन्य कारकों पर निर्भर है। करोड़ों वर्षों से प्रकृति ने इसका एक स्थायी संतुलन सीमित कर रखा है। आज कुछ मानवीय क्रियाकलाप ओजोन परत को क्षति पहुंचाकर, वायुंडल की ऊपरी सतह में इसकी मात्रा कम रहे हैं। यही कमी ओजोन-क्षरण, ओजोन-विहीनता कहलाती है और जो रसायन इसे उत्पन्न करने के कारक हैं, वे ओजोन-क्षरक पदार्थ कहलाते हैं।

ओजोन कैसे नष्ट होती है?

बाहरी वायुमंडल की पराबैंगनी किरणें सी.एफ.सी. से क्लोरीन परमाणु को अलग कर देती हैं।  मुक्त क्लोरीन परमाणु ओजोन के अणु पर आक्रमण करता है और इसे तोड़ देता है। इसके फलस्वरूप ऑक्सीजन अणु तथा क्लोरीन मोनोऑक्साइड बनती AND वायुमंडल का एक मुक्त ऑक्सीजन परमाणु क्लोरीन मोनोऑक्साइड पर आक्रमण करता है तथा एक मुक्त क्लोरीन परमाणु और एक ऑक्सीजन अणु का निर्माण करता हैक्लोरीन इस क्रिया को 100 वर्षों तक दोहराने के लिए मुक्त है।

ओजोन समस्या के समाधान के प्रयास

प्रकृति द्वारा प्रदत्त इस सुरक्षा-कवच में और अधिक क्षति को रोकने में हम भी सहायक हो सकते हैं-

1. उपभोक्ता के रूप में यह जानकरी लें कि जो उत्पाद खरीद रहे हैं, उनमें सी.एफ.सी. है या नहीं। जहां विकल्प हो वहां ओजोन मित्र उत्पादन यानी सी.एफ.सी. रहित उत्पाद ही लें।

2. वातानुकूलित संयंत्रों तथा रेफ्रिजरेटर का प्रयोग सावधानी से करें, ताकि उनकी मरम्मत कम-से-कम करनी पड़े। सी.एफ.सी. वायुमंडल में मुक्त होने की बजाय पुनः चक्रित हो।

3. पारंपरिक रूई के गद्दों एवं तकियों का प्रयोग करें।

4. स्टायरोफाम के बर्तनों की जगह पारंपरि मिट्टी के कुल्हड़ों, पत्तलों का प्रयोग करें या फिर धातु और कांच के बर्तनों का।

5. अपने-अपने क्षेत्रों में ओजोन परत क्षरण जागरुकता अभियान चलाएं।

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