ऑनलाइन क्लास का महत्व बताते हुए पंकज की ओर से गांव में रह रहे अपने छोटे भाई प्रत्यक्ष को पत्र लिखिए।
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कोरोना महामारी के बाद हुए लॉकडाउन ने स्कूलों और कॉलेजों को भी ठप्प कर दिया. बच्चों की शिक्षा का एकमात्र रास्ता ऑनलाइन क्लास हो गए. लेकिन भारत के देहाती इलाकों में ऑनलाइन पढ़ाई कितनी संभव है?
लॉकडाउन के ऐलान के साथ ही जैसे देश में सारे काम अचानक रुक गए, वैसे ही देश के लगभग 32 करोड़ छात्र-छात्राओं के स्कूल-कॉलेज जाने पर भी रोक लग गई. सरकार ने ऐलान किया था कि स्कूल-कॉलेज उनके लिए ऑनलाइन शिक्षा का इंतजाम करें. लॉकडाउन की शुरुआत में बड़े शहरों के स्कूलों को ही ऑनलाइन शिक्षा शुरू करने में ही खासा वक्त लग गया, ये वो स्कूल थे, जिनके पास फंड की कमी नहीं थी. फिर भी बोर्ड एग्जाम समेत कई इंतहान रद्द हो गए. फिर सोचिए कि देश के गांवों का क्या हाल होगा? क्या गांव तक ऑनलाइन शिक्षा बिना किसी रुकावट के पहुंच सकती है?
आज कोरोना लॉकडाउन में लगी बंदिशें तो खुल गई हैं लेकिन 20 लाख से ज्यादा कोरोना के मामलों के बीच जीवन अभी भी रुका हुआ है, स्कूलों के खुलने पर रोक है. चार महीने बाद भी स्थिति वैसी ही है और समस्याएं अनेक. सरकार ने सरकारी स्कूलों को ऑनलाइन लाने के लिए कई तरह की मदद पहुंचाने के वादे किए, लेकिन कई बुनियादी समस्याएं अभी भी वहीं की वहीं हैं.
गांव में इंटरनेट से लेकर चार्जिंग तक चैंलेंज
सरकार ने जब ऑनलाइन पढ़ाई के बारे में सोचा होगा तो अधिकारियों के दिमाग में जूम और स्काइप जैसे वीडियो कॉलिंग एप रहे होंगे. जहां बड़े शहरों में ये मुमकिन भी हो गया है, लेकिन गांवों में अभी तक कनेक्टिविटी की जो हालत है उसमें कॉल ही अपने आप में एक मुसीबत है. ऊपर से कई बच्चों के घरों में स्मार्टफोन नहीं. कुछ राज्य सरकारों की तरफ से ये भी दावा किया गया था कि सरकारी स्कूलों में बच्चों को फोन बांटे जाएंगे, जो पंजाब सरकार करने की तैयारी में हैं, पर अब तक ये इंतजाम हो नहीं पाए. ऐसे में सिर पर इस मुसीबत के बीच टीचर बच्चों को पढ़ाने के नायाब तरीके निकाल रहे हैं. कई टीचर अपना वीडियो रिकॉर्ड कर व्हाट्सऐप पर भेजते हैं, तो कुछ फोन पर ही बच्चों को पढ़ाने की कोशिश में हैं. लेकिन इसमें भी मुश्किलें कम नहीं.