औरे भाँति कुंजन में गुंजरत भीर भौंर,
औरे डौरे झौरन पैं, बौरन के हवै गये ।
कहैं पद्माकर सु औरे भाँति गलियानि,
छलिया छबीले छैल और छबि छवै गये ।
औरै भाँति बिहग - समाज में आवाज होति,
ऐसे रितुराज के न आज दिन दरवै गयै ।
Please tell me the BHAVARTH of this poem
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Answer:
sorry I don't know
video Dino or to it dry he try to cu if it if u it if you if it is is it up or it you out o out to hi it to hi out of hoo it to if gko out to hi
sorry for spaming
Explanation:
भाव : बसंत काल आने से प्रकृति का सौंदर्य किस तरह होते है - इस सौंदर्य को कवि प्रस्तुत कर रहा है ।
बसंत आने से भौंरे छोटे-छोटे बाग़ में स्थित पेड़ों के शाखाओं पर घूमते हुए गुंजराते है । वह गुँजन पूर
महौल में छा गए । पद्माकर जी कहते है कि यह गुंजन की आवाज़ छोटे-छोटे गलियों में भी गुजर कर जा रहे है । यह किस प्रकार लगती जैसे एक सजीले आदमी अपनी सौंदर्य को प्रकट कर रहे हो । भौरों की आवाज़ समाज में होती है । आज रितुराज यानी ऋतुओं का राजा बसंत आने से सारे जनता में आनंद, आनुराग और पदति आदि का वृद्धि हुई । बसंत का सौंदर्य पूरे तन और मन में फैल गया ।