पंडित मदन मोहन मालवीय के जीवन का पर एक प्रेरक प्रसंग बताते हुए भाषण दीजिए
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बात उन दिनों की है जब महामना मदनमोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना कुछ ही समय पहले की थी। कभी-कभी प्राध्यापक उद्दंड छात्रों को उनकी गलतियों के लिए आर्थिक दंड दे दिया करते थे, मगर छात्र उस दंड को माफ कराने मालवीय जी के पास पहुंच जाते और महामना उसे माफ भी कर देते थे। यह बात शिक्षकों को अच्छी नहीं लगी और वह मालवीय जी के पास जाकर बोले, ‘महामना, आप उद्दंड छात्रों का आर्थिक दंड माफ कर उनका मनोबल बढ़ा रहे हैं। इससे उनमें अनुशासनहीनता बढ़ती है। इससे बुराई को बढ़ावा मिलता है। आप अनुशासन बनाए रखने के लिए उनके दंड माफ न करें।’
मालवीय जी ने शिक्षकों की बातें ध्यान से सुनीं फिर बोले, ‘मित्रो, जब मैं प्रथम वर्ष का छात्र था तो एक दिन गंदे कपड़े पहनने के कारण मुझ पर छह पैसे का अर्थ दंड लगाया गया था। आप सोचिए, उन दिनों मुझ जैसे छात्रों के पास दो पैसे साबुन के लिए नहीं होते थे तो दंड देने के लिए छह पैसे कहां से लाता। इस दंड की पूर्ति किस प्रकार की, यह याद करते हुए मेरे हाथ स्वत: छात्रों के प्रार्थना पत्र पर क्षमा लिख देते हैं।’ शिक्षक निरुत्तर हो गए।
भारत-भूमि पर समय-समय पर अनेक महान् विभूतियों ने जन्म लिया। इन महान् विभूतियों में पंडित मदनमोहन मालवीय भी एक ऐसे महापुरुष हुए, जिन्हें लोग ‘महामना मालवीय’ के नाम से जानते हैं। पंडित महामना मदनमोहन मालवीय का जन्म भारत के उत्तरप्रदेश प्रान्त के प्रयाग में २५ दिसम्बर सन १८६१ को एक साधारण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम ब्रजनाथ और माता का नाम भूनादेवी था। चूँकि ये लोग मालवा के मूल निवासी थे अस्तु मालवीय कहलाए। महामना मालवीय जी मूर्धन्य राष्ट्रीय नेताओं में अग्रणी थे। जितनी श्रद्धा और आदर उनके लिए शिक्षित वर्ग में था। उतना ही जन साधारण में भी था। मालवीय जी की विद्वता असाधारण थी और वे अत्यन्त सुसंस्कृत व्यक्ति थे। विनम्रता एवम् शालीनता उनमें कूट-कूटकर भरी थी। वे अपने युग के सर्वश्रेष्ठ वक्ता थे। वे संस्कृत था। चूँकि ये लोग मालवा के मूल निवासी थे अस्तु मालवीय कहलाए। महामना मालवीय जी मूर्धन्य राष्ट्रीय नेताओं में अग्रणी थे। जितनी श्रद्धा और आदर उनके लिए शिक्षित वर्ग में था। उतना ही जन साधारण में भी था। मालवीय जी की विद्वता असाधारण थी और वे अत्यन्त सुसंस्कृत व्यक्ति थे। विनम्रता एवम् शालीनता उनमें कूट-कूटकर भरी थी। वे अपने युग के सर्वश्रेष्ठ वक्ता थे। वे संस्कृत, हिंदी तथा अंग्रेजी तीनों ही भाषाओं में निष्णात थे। महामना जी का जीवन विद्यार्थियों के लिए एक महान प्रेरणा स्रोत था। उनके स्तर के किसी अन्य नेता के पास जनसाधारण की पहुँच उतनी सरल नहीं थी, जितनी मालवीय जी के पास। लोग उनके साथ इतने प्रेम से बात कर सकते थे मानों वे उनके पिता, बन्धु अथवा मित्र हों।
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पंडित मदनमोहन मालवीय जी भारत में ऐसे महांपुरुष थे, जिनके जैसा ना पहले कोई हुआ था ना अभी तक कोई है। इनकी उदारता और सज्जनता मशहूर है।
ये दुनियाँ में ऐसे महांपुरुष थे कि- इनके नाम के पहले महामना लगाने की उपाधि मिली थी।इनका पूरा नाम महांमना मदन मोहन मालवीय है। एक रोचक प्रसंग इनके बारे में आपसे साझा कर रही हूँ।
एक बार पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने सोचा कि- एक विश्वविद्यालय हमारे यहां बनारस में होना चाहिए, लेकिन इतनी रकम आयेगी कहाँ से?
फिर मालवीय जी ने सोचा हैदराबाद निजाम से मदद ली जाय, ऐसा सोचकर महाँमना मदनमोहन मालवीय जी राजमहल के द्वार पर पहुंचे और उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा, अपने निजाम से बोलो पाँच मक्कार आयें हैं।
हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान थे। उन्होंने उन्हें दरबार में भेजने के लिए कहा। जब मालवीय जी दरबार में आये तो, निजाम ने कहा,पाँच कहाँ तुम तो एक ही हो? तो मालवीय जी ने कहा पाँच मकार अर्थात जिस नाम में पाँच बार म शब्द आया हो।
महाँमना मदनमोहन मालवीय, इसमें पांच बार म आया है। फिर हैदराबाद निजाम ने आने का प्रयोजन पूछा, तो बोले मैं विश्वविद्यालय बनाने के लिए कुछ मदद लेने आया हूँ।
तो हैदराबाद के निजाम ने कहा, यहां पर तुम्हें जूता मिलेगा और ये कहकर उन्होंने जूता उतारकर दे दिया। और पंडित मदनमोहन मालवीय जी जूता लेकर राजमहल से बाहर चौराहे पर आ गए।
और जूते को ऊपर उठा कर सभी लोगों को इकट्ठा करने के बाद बोले— ये हैदराबाद निजाम मीर उस्मान अली खान का जूता है, उनके पास चंदा देने के लिए कुछ भी नहीं है सिर्फ ये जूता है।
इसलिए मैं इसकी नीलामी शुरू कर रहा हूँ। आप सबकी नजरों में इसकी जो कीमत है, वो लाकर दे दें। तुरंत ये बात हैदराबाद निजाम तक पहुंची, तो उन्होंने फिर पंडित मदनमोहन मालवीय जी को दरबार में बुलवाया।
और सम्मान के साथ उन्हें आसन पर बिठाया। फिर10 लाख का सबसे बड़ा दान हैदराबाद निजाम ने देकर उन्हें विदा किया।
फिर बसंत पंचमी के पावन अवसर पर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना बाराणसी में की गई। जिसे अधिकतर लोग बी एच यू के नाम से जानते हैं।
इसमें दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह ने विश्वविद्यालय बनाने के लिए आवश्यक संसाधनों का बंदोबस्त किया था। विश्वविद्यालय को"राष्ट्रीय महत्व का संस्थान" का दर्जा प्राप्त है।
ऐसे थे हमारे महाँमना मदनमोहन मालवीय जी।