Political Science, asked by bhawna114790, 7 months ago

७प है। साहित्य के किसी काल का नामकरण इस काल
आधार पर अधिक वैज्ञानिक और प्रामाणिक माना जाता है। 3
तत्कालीन साहित्य प्रवृत्ति की ओर आकृष्ट करने में असमर्थ
प्रारम्भिक युग होने का सूचक यह नाम आदिकाल पर्याप्त प्र
युग को आदिकाल नाम से ही सम्बोधित किया जाता है।
आदिकाल की परिस्थितियाँ
राजनैतिक
उत्तर भारत में हर्षवर्धन का विशाल साम्राज्य उनकी मृत
है। राजपूतों का अभ्युदय हुआ और अनेक छोटे-छोटे राज्य
संघर्ष में अपनी शक्ति क्षीण करते रहे 1200 ई. तक राजनीति
ई. में मुहम्मद गोरी ने मुलतान पर अधिकार कर लिया। )115
आक्रान्ताओं के लिए भारत का द्वार खुल गया। 1194 ई. में
तक​

Answers

Answered by Anonymous
0

Answer:

1. डॉ॰ ग्रियर्सन - चारणकाल,

2. मिश्रबंधु - आरम्भिक काल

3. आचार्य रामचंद्र शुक्ल- वीरगाथा काल,

4. राहुल संकृत्यायन - सिद्ध सामंत युग,

5. महावीर प्रसाद द्विवेदी - बीजवपन काल,

6. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - वीरकाल,

7. हजारी प्रसाद द्विवेदी - आदिकाल,

8. रामकुमार वर्मा - चारण काल या संधि काल।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का मत

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस काल का नाम वीरगाथा काल रखा है। इस नामकरण का आधार स्पष्ट करते हुए वे लिखते हैं- ...आदिकाल की इस दीर्घ परंपरा के बीच प्रथम डेढ़-सौ वर्ष के भीतर तो रचना की किसी विशेष प्रवृत्ति का निश्चय नहीं होता-धर्म, नीति, श्रृंगार, वीर सब प्रकार की रचनाएँ दोहों में मिलती है। इस अनिर्दिष्ट लोक प्रवृत्ति के उपरांत जब से मुसलमानों की चढाइयों का आरंभ होता है तब से हम हिंदी साहित्य की प्रवृत्ति एक विशेष रूप में बंधती हुई पाते हैं। राजाश्रित कवि अपने आश्रयदाता राजाओं के पराक्रमपूर्ण चरितों या गाथाओं का वर्णन करते थे। यही प्रबंध परंपरा रासो के नाम से पायी जाती है, जिसे लक्ष्य करके इस काल को हमने वीरगाथा काल कहा है। इसके संदर्भ में वे तीन कारण बताते हैं-

1.इस काल की प्रधान प्रवृत्ति वीरता की थी अर्थात् इस काल में वीरगाथात्मक ग्रंथों की प्रधानता रही है।

2.अन्य जो ग्रंथ प्राप्त होते हैं वे जैन धर्म से संबंध रखते हैं, इसलिए नाम मात्र हैं और

3. इस काल के फुटकर दोहे प्राप्त होते हैं, जो साहित्यिक हैं तथा विभिन्न विषयों से संबंधित हैं, किन्तु उसके आधार पर भी इस काल की कोई विशेष प्रवृत्ति निर्धारित नहीं होती है। शुक्ल जी वे इस काल की बारह रचनाओं का उल्लेख किया है-

1. विजयपाल रासो (नल्लसिंह कृत-सं.1355),

2. हम्मीर रासो (शांगधर कृत-सं.1357),

3. कीर्तिलता (विद्यापति-सं.1460),

4. कीर्तिपताका (विद्यापति-सं.1460),

5. खुमाण रासो (दलपतिविजय-सं.1180),

6. बीसलदेव रासो (नरपति नाल्ह-सं.1212),

7. पृथ्वीराज रासो (चंद बरदाई-सं.1225-1249),

8. जयचंद्र प्रकाश (भट्ट केदार-सं. 1225),

9. जयमयंक जस चंद्रिका (मधुकर कवि-सं.1240),

10. परमाल रासो (जगनिक कवि-सं.1230),

11. खुसरो की पहेलियाँ (अमीर खुसरो-सं.1350),

12. विद्यापति की पदावली (विद्यापति-सं.1460)

शुक्ल जी द्वारा किये गये वीरगाथाकाल नामकरण के संबंध में कई विद्वानों ने अपना विरोध व्यक्त किया है। इनमें श्री मोतीलाल मैनारिया, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि मुख्य हैं। आचार्य द्विवेदी का कहना है कि वीरगाथा काल की महत्वपूर्ण रचना पृथ्वीराज रासो की रचना उस काल में नहीं हुई थी और यह एक अर्ध-प्रामाणिक रचना है। यही नहीं शुक्ल ने जिन गंथों के आधार पर इस काल का नामकरण किया है, उनमें से कई रचनाओं का वीरता से कोई संबंध नहीं है। बीसलदेव रासो गीति रचना है। जयचंद्र प्रकाश तथा जयमयंक जस चंद्रिका -इन दोनों का वीरता से कोई संबंध नहीं है। ये ग्रंथ केवल सूचना मात्र हैं। अमीर खुसरो की पहेलियों का भी वीरत्व से कोई संबंध नहीं है। विजयपाल रासो का समय मिश्रबंधुओं ने सं.1355 माना है अतः इसका भी वीरता से कोई संबंध नहीं है। परमाल रासो पृथ्वीराज रासो की तरह अर्ध प्रामाणिक रचना है तथा इस ग्रंथ का मूल रूप प्राप्य नहीं है। कीर्तिलता और कीर्तिपताका- इन दोनों ग्रंथों की रचना विद्यापति ने अपने आश्रयदाता राजा कीर्तिसिंह की कीर्ति के गुणगान के लिए लिखे थे। उनका वीररस से कोई संबंध नहीं है। विद्यापति की पदावली का विषय राधा तथा अन्य गोपियों से कृष्ण की प्रेम-लीला है। इस प्रकार शुक्ल जी ने जिन आधार पर इस काल का नामकरण वीरगाथा काल किया है, वह योग्य नहीं है।

Similar questions