पा हाथ गद्यांश क्र. 1 : (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 3) कांति ने घर का कोना-कोना ढूँढ़ मारा, एक-एक आलमारी के नीचे बिछे कागज तक उलटकर देख लिए, बिस्तर हटाकर दो-दो बार झाड़ डाला लेकिन झुमका न मिलना था, न मिला। यह तो गनीमत थी कि सर्वेश को झुमके के बारे में पता ही नहीं था वरना सोचकर ही कांति सिर से पाँव तक सिहर उठी। अभी पिछले महीने ही तो मिन्नी की घड़ी खोने पर सर्वेश ने किस तरह पूरा घर सर पर उठा लिया था। कांति ने में पकड़े दूसरे झुमके पर नजर डाली। कल अपनी पूरे दो साल की जमा की हुई रकम के बदले में झुमके खरीदते समय कांति ने एक बार भी नहीं सोचा था कि उसकी पूरे दो साल तक इकट्ठा की हुई रकम से झुमके खरीदकर जब वो सर्वेश को दिखाएगी तो वे क्या कहेंगे। दरअसल झुमके का वह जोड़ा था ही इतना खूबसूरत कि एक नजर में ही उसे भा गया था। दो दिन पहले ही तो रमा को एक सोने की अंगूठी खरीदनी थी। वहीं शोकेस में लगे झुमकों को देखकर कांति ने उसे निकलवा लिया। दाम पूछे तो कांति को विश्वास ही नहीं हुआ कि इतना खूबसूरत और चार तोले का लगने वाला वह झुमका सेट केवल दो हजार का हो सकता है। दुकानदार रमा का परिचित था, इसी वजह से उसने कांति के आग्रह पर न केवल उस झुमका सेट को शोकेस से अलग निकालकर रख दिया वरन यह भी वादा कर दिया कि वह दो दिन तक इस सेट को बेचेगा भी नहीं। पहले तो कांति ने सोचा कि सर्वेश से खरीदवाने का आग्रह करे लेकिन मार्च का महीना और इनकम टैक्स के टेंशन से घिरे सर्वेश से कुछ कहने की उसकी हिम्मत नहीं पड़ी। अपनी सारी जमा-पूँजी इकट्ठा कर वह दूसरे ही दिन जाकर वह सेट खरीद लाई। अगले हफ्ते अपनी मैरिज एनिवर्सरी की पार्टी' में पहनेगी तभी सर्वेश को बताएगी। यह सोचकर उसने सर्वेश क्या, घर में किसी को भी कुछ नहीं बताया।
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