पुजारी ! भजन, पूजन, साधन, आराधना
इन सबको किनारे रख दे।
द्वार बंद करके देवालय के कोने में क्यों बैठा है ?
अपने मन के अंधकार में छिपा बैठा, तू कौन-सी पूजा में मग्न है ?
आँखें खोलकर जरा देख तो सही
तेरा देवता देवालय में नहीं है।
जहाँ मजदूर पत्थर फोड़कर रास्ता तैयार कर रहे हैं,
तेरा देवता वहीं चला गया है।
बता वे धूप-बरसात में एक समान तपते-झुलसते हैं,
उनके दोनों हाथ मिट्टी से सने हैं
को उनकी तरह सुंदर परिधान त्यागकर मिट्टी-भरे रास्तों से जा
तेरा देवता देवालय में नहीं है।
भजन, पूजन, साधन को किनारे रख दे।
मुक्ति ! मुक्ति अरे कहाँ है ?
कहाँ मिलेगी मुक्ति ?
अपने सृष्टि-बंध से प्रभु स्वयं बँधे हैं।
ध्यान-पूजा को किनारे रख दे
फूल की डाली को छोड़ दे
वस्त्रों को फटने दे, धूल-धूसरित होने दे
उनके साथ काम करते हुए पसीना बहने दे।
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उनके दोनों हाथ मिट्टी से सने हैं
को उनकी तरह सुंदर परिधान त्यागकर मिट्टी-भरे रास्तों से जा
तेरा देवता देवालय में नहीं है।
भजन, पूजन, साधन को किनारे रख दे।
मुक्ति ! मुक्ति अरे कहाँ है ?
कहाँ मिलेगी मुक्ति ?
अपने सृष्टि-बंध से प्रभु स्वयं बँधे हैं।
ध्यान-पूजा को किनारे रख दे
फूल की डाली को छोड़ दे
वस्त्रों को फटने दे, धूल-धूसरित होने दे
उनके साथ काम करते हुए पसीना बहने दे।
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