पंक्तियों को उनके अर्थ से
क. नाच रहे पागल हो
ताली दे-दे चल दल
पकड़ वारि की धार
भोगापन
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Answer:
झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम छम छम गिरतीं बूँदें तरुओं से छन के।
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।
ऐसे पागल बादल बरसे नहीं धरा पर,
जल फुहार बौछारें धारें गिरतीं झर झर।
आँधी हर हर करती, दल मर्मर तरु चर् चर्
दिन रजनी औ पाख बिना तारे शशि दिनकर।
पंखों से रे, फैले फैले ताड़ों के दल,
लंबी लंबी अंगुलियाँ हैं चौड़े करतल।
तड़ तड़ पड़ती धार वारि की उन पर चंचल
टप टप झरतीं कर मुख से जल बूँदें झलमल।
नाच रहे पागल हो ताली दे दे चल दल,
झूम झूम सिर नीम हिलातीं सुख से विह्वल।
हरसिंगार झरते, बेला कलि बढ़ती पल पल
हँसमुख हरियाली में खग कुल गाते मंगल?
दादुर टर टर करते, झिल्ली बजती झन झन
म्याँउ म्याँउ रे मोर, पीउ पिउ चातक के गण!
उड़ते सोन बलाक आर्द्र सुख से कर क्रंदन,
घुमड़ घुमड़ घिर मेघ गगन में करते गर्जन।
वर्षा के प्रिय स्वर उर में बुनते सम्मोहन
प्रणयातुर शत कीट विहग करते सुख गायन।
मेघों का कोमल तम श्यामल तरुओं से छन।
मन में भू की अलस लालसा भरता गोपन।
रिमझिम रिमझिम क्या कुछ कहते बूँदों के स्वर,
रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अंतर!
धाराओं पर धाराएँ झरतीं धरती पर,
रज के कण कण में तृण तृण की पुलकावलि भर।
पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन,
आओ रे सब मुझे घेर कर गाओ सावन!
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन,
फिर फिर आए जीवन में सावन मन भावन!
कवि: सुमित्रानन्दन पंत
प्रसाद और निराला की भाँति पंत जी भी छायावाद के स्तंभ माने जाते हैं | इनके काव्य में कला, विचारों तथा भावों का यथोचित स्थान रहता है | अपनी नैसर्गिक प्रतिभा द्वारा पंत जी ने आधुनिक खड़ी बोली के रूप को अत्यंत समृद्ध और रमणीय बनाया है | इनके काव्य ग्रंथों में ‘पल्लव’, ‘गुंजन’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्ण किरण’, ‘उत्तरा’, और ‘चिदंबरा’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं |
सावन की वर्षा का वर्णन
सावन के मौसम में झम-झम कर मेघ बरस रहे हैं | वर्षा के पानी की बूँदें पेड़ों से छन के छम-छम करती हुई जमीन पर गिर रहीं हैं | आसमान में बादलों के बीच चम-चम कर बिजली चमक रही है | दिन में सूर्य के बादलों के बीच छुपने से कभी अँधेरा छा जाता है तो कभी सूर्य के बादलों से बाहर निकलते ही उजाला हो जाता है | इस प्रकार सावन के महीने की वर्षा मन को लुभानेवाली होती है |
मन के सपने
सावन के महीने में मौसम बहुत लुभावना होता है | चारों और छाए हुए काले बादल, सूरज का लुका-छिपी खेलना, वर्षा की बूँदों की आवाज यह सब मिलकर बड़ा मनोहारी वातावरण बनाती हैं | ऐसे वातावरण में मनुष्य का मन तरह-तरह की कल्पनाएँ करने लगता है | उसके मन में इच्छाएँ जागती हैं फिर समाप्त हो जाती हैं | इसलिए कवि कहता है कि सावन के महीने में रुक-रुक कर मन के सपने जागते हैं |
बादल पागल
सावन ऋतु में काले-काले बादल चारों ओर छा जाते हैं | उन बादलों के आपस में टकराने से जोरों की गड़गड़ाहट होती है | बिजली चमकती है | पानी की तेज बौछारें धरती पर गिरने लगती हैं | कभी ये बादल सूर्य को ढँक के चारों तरफ अँधेरा कर देते हैं तो कभी सूर्य की गरमी से तितर-बितर हो जाते हैं, जिससे हर तरफ प्रकाश फैल जाता है | इन सब कारणों से कवि बादलों को पागल कह रहे हैं |
सोन-बलाक के सुख से क्रंदन
सोन तथा बलाक अर्थात बगुला, दोनों जलपक्षी हैं | दोनों को जल बहुत प्रिय होता है | वर्षा के मौसम में चारों तरह जल ही जल होता है | लगातार बरसता पानी दोनों पक्षिओं को बहुत प्रसन्न कर देता है | वो प्रसन्न होकर जोर-जोर की ध्वनि निकालने लगते हैं | उस समय वो पूरी तरह भीगे हुए भी होते हैं | इसलिए कवि उनकी ध्वनि को आर्द्र सुख से किया हुआ क्रंदन कहते हैं |
सावन के मौसम का मानव मन पर प्रभाव
उत्तर: सावन के मौसम में मेघों का बरसना, बिजली का चमकना, बादलों का गडगडाना यह सब ऐसे स्वर पैदा करते हैं कि मनुष्य का मन सम्मोहित हो जाता है | अनगिनत कीट-पतंगे तथा पक्षी वर्षा के मौसम में गाने लगते हैं | वर्षा का पानी पेड़ों से छन के जमीन पर गिरता है तो विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है | इन सब से बड़ा संगीतमय वातावरण बनता है जिससे मनुष्य के मन में आलस्य छा जाता है |
वर्षा की बूँदों का धरती पर प्रभाव
वर्षा की बूँदें जब रिमझिम-रिमझिम कर धरती पर गिरती हैं तो ऐसा लगता है जैसे धरती से कुछ बोल रही हों | धाराओं पर धाराएँ धरती पर गिरती जाती हैं | जब वर्षा का पानी रिस-रिसकर धरती के अंदर जाता है तो धरती का रोम-रोम सिहर उठता है | मिट्टी के कण-कण में, घास के प्रत्येक तिनके में भीगने के कारण आनंद की लहर दौड़ जाती है |
मेघों के कोमल तम
मेघ ज्यादातर काले रंग के होते हैं | वो जब आसमान पर छा जाते हैं तो सूर्य को ढँक लेते हैं | उससे चारों तरफ अँधेरा छा जाता है | वो अँधेरा बहुत घना नहीं होता | ऐसा लगता है जैसे शाम का समय हो | मेघ के कारण होनेवाले इस हलके अँधेरे को कवि मेघों का कोमल तम कहते हैं |
कीट-विहग के सुख गायन
कुछ कीट-पतंगे एवं पक्षी होते हैं जो सिर्फ वर्षा ऋतु में ही बोलते हैं | अन्य मौसमों में वो शांत रहते हैं | प्रस्तुत कविता में कवि सावन के मौसम में होनेवाली वर्षा का वर्णन कर रहे हैं | तेजी से बरसने के बाद वर्षा जब शांत होती है तो उस समय पानी का स्वर थम जाता है | ऐसे में वर्षा ऋतु में बोलनेवाले कीट-पतंगे व पक्षी बड़ी तेजी से बोलने लगते हैं | उनकी आवाज से वातावरण गूँज उठता है व संगीतमय बन जाता है | कवि इसको कीट-विहग का सुख गायन कह रहे हैं |
वर्षा ऋतु में कवि का मन
वर्षा ऋतु में कवि का मन बहुत प्रसन्न हो जाता है व वर्षा की धाराओं के साथ झूमने लगता है | कवि सबका आवाहन कर रहा है कि सब आये और कवि को घेर कर सावन के गीत गाएँ | सब मिलकर इन्द्रधनुष के झूले में झूलें और ये उम्मीद करें कि जीवन में सावन बार-बार आये |
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Explanation:
झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम छम छम गिरतीं बूँदें तरुओं से छन के।
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।