पुलिस रहित समाज की कल्पना पे निबंध।
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पुलिस रहित समाज की कल्पना
पुलिस रहित समाज की कल्पना यह एक अच्छा विचार है। आज के इस युग में जहाँ कदम-कदम पर असामाजिक तत्वों की भरमार है, लोग जरा-जरा सी बात पर लड़ने-मारने को उतारू हो जाते हैं, एक पुलिस रहित समाज की कल्पना करना बेमानी होगा, यह एक बेहद कठिन कार्य है, लेकिन असंभव नहीं।
पुलिस रहित समाज का मतलब है कि वह एक श्रेष्ठ और उत्तम समाज है, जहां पर अपराध नहीं होता है। जहां पर चोरी नहीं होती, लूट-पाट नहीं होती, बलात्कार नहीं होता, जहां पर कोई किसी का डर नहीं लगता। जहां पर कोई किसी को मारता नहीं। ऐसा समाज संसार में शायद ही हो। क्योंकि जब यह कार्य नहीं होंगे तो पुलिस की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
हम विचार करें तो हमें पुलिस की आवश्यकता क्यों पड़ती है। हमें पुलिस की आवश्यकता इसलिये पड़ती है, क्योंकि लोग अपराध करते हैं। पुलिस का काम है, अपराधों को रोकना, अपराध के संबंध में जांच करना, असामाजिक तत्वों से जनता की सुरक्षा करना।
जब समाज में असामाजिक तत्व ही नहीं होंगे, आपराधिक कार्य ही नहीं होंगे तो पुलिस की कोई आवश्यकता नहीं। ऐसा समाज बनना बेहद कठिन है। लेकिन असंभव नहीं। इसके लिये बहुत बड़े स्तर पर क्रांतिकारी कदमों की जरूरत पड़ेगी। ये कोई रातों-रात होने वाला कार्य नही है।
पुलिस रहित समाज के निर्माण के लिए सबसे पहले लोगों में के चरित्र में परिवर्तन लाना होगा। उनका चरित्र इतना मजबूत हो कि उन्हें कोई भी अपराधिक कार्य करने का विचार ही ना आए। ऐसा समाज में जहां पर कोई अभाव ना हो, ताकि किसी को अपराध की शरण लेनी ना लेनी पड़े। ऐसा समाज जहां पर हर किसी को जरूरत पूरी हो। जहां पर अमीरी-गरीबी भेदभाव ना हो। एक संपन्न, समृद्ध और उत्तम समाज में ही पुलिस रहित समाज की कल्पना की जा सकती है।
पुलिस रहित समाज की कल्पना एक बहुत अच्छा विचार है
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पुलिस रहित समाज की कल्पना
पुलिस रहित समाज की कल्पना यह एक अच्छा विचार है, लेकिन आज के आपराधिक युग में इसका सफल होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन से नजर आता है। इसका कारण है कि पुलिस का चलन आज से नहीं बल्कि आदि-अनादिकाल से चला रहा है। उस दौरान भी अपराध होते थे, जो आज के बदलते युग में सिर चढ़कर बोल रहे हैं।
हां ये कहा जा सकता है कि पहले अपराधों की संख्या काफी कम हुआ करती थी, लेकिन आज इनका ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। चोरी, डकैती, लूट, नकबजनी, छेड़छाड़, दुष्कर्म, हत्या, धोखाधड़ी आदि आज के दौर में आम हो चुके हैं। ऐसे स्थिति में यदि पुलिस रहित समाज की कलप्ना करना भी नामुमकिन है। हालांकि कहावत है कि कोई भी काम असंभव नहीं होता है, लेकिन यदि वह काम एक व्यक्ति पर ही निर्भर हो तो ही वह मुमकिन है।
यदि कोई कार्य लाखों-करोड़ों लोगों के सहयोग पर निर्भर हो तो उसे कर पाना नामुमकिन ही होता है। इसके पीछे कारण यह है कि सभी लोगों को सोच एक जैसी नहीं हो सकती है। ऐसे में आपराधिक प्रवृति वाले लोग पुलिस रहित समाज की अवधारणा में आपका साथ तो देंगे, लेकिन समाज को बदलने के लिए नहीं बल्कि उसे लूटने के लिए। ऐसे में आज के दौर में पुलिस रहित समाज की बात महज कल्पनाओं में ही अच्छी लग सकती है।
बढ़ जाएगी अराजकता- पुलिस रहित समाज का मतलब है कि एक श्रेष्ठ और उत्तम समाज का होना। जहां पर अपराध नहीं होता है। जहां पर चोरी नहीं होती, लूट-पाट नहीं होती, बलात्कार नहीं होता, जहां पर कोई किसी का डर नहीं लगता। जहां पर कोई किसी को मारता नहीं।
ऐसा समाज संसार में शायद ही हो और आज के आपराधिक युग में तो इसके बारे में सोचना भी हास्यपद नजर आता है। यदि आज के दौर में पुलिस को हटा दिया जाए तो धरती पर अराजकता फैल जाएगी। किसी को किसी भी बात का डर नहीं होगा और वह वहीं करेगा जो वह चाहेगा, फिर चाहे वह समाज के लिए अच्छा हो या बुरा। इस स्थिति में बुराइयां हावी हो जाएगी और अच्छे लोगों को सांस लेना भी दूभर हो जाएगा। ऐसे में पुलिस रहित समाज की कल्पना एक कल्पना के तौर पर ठीक है, लेकिन इसे यथार्तरूप में लाना नामुमकिन है।