Hindi, asked by Romalshah, 1 year ago

" पुलिस समाज का रक्षक " पर निबंध Or जानकारी....
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Answered by lasya5
18
जिस प्रकार सैनिक विदेशी शत्रुओं से देश की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार राष्ट्र-विरोधी तत्त्वों से पुलिस हमारी रक्षा करती है । प्रत्येक राष्ट्र के अपने कानून होते हैं । देश के नागरिक उन कानूनों का पालन करते हैं ।

परन्तु कुछ लोग देश के कानून की अवहेलना कर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहते हैं, पुलिस विभिन्न अपराधों में उनका चालान कर न्यायालय में प्रस्तुत करती है । पुलिस की अनेक श्रेणियाँ होती हैं । हमारे देश में केन्द्रिय रिजर्व पुलिस, यातायात पुलिस, सामान्य पुलिस, सशस्त्र पुलिस और गुप्तचर पुलिस आदि अनेक प्रकार की पुलिस हैं । प्रत्येक राज्य में अपनी अलग अलग पुलिस है ।

पुलिस में शिक्षित, स्वस्थ और ऊँचे कद के जवान होते हैं । उन की वर्दी प्राय: खाकी होती है । प्रत्येक राज्य में कई पुलिस लाइनें होती हैं, जहाँ पुलिस के जवान रहते हैं । पुलिस चौकियों पर वे अपने कार्य काल के दौरान तैनात रहते हैं l

पुलिस का कार्य बड़ा कठिन है । राजनेताओं की विभिन्न रैलियों के दौरान सुरक्षा और यातायात की व्यवस्था बनाये रखना, जलूसों को शान्तिपूर्ण ढंग से सम्पन्न करना, हड़ताल, धरनों और बंद के दौरान असामाजिक तत्त्वों से राष्ट्र की सम्पत्ति की रक्षा करना, राजनेताओं की व्यक्तिगत सुरक्षा करना, चोर डकैतों और लुटेरों से आम नागरिक की रक्षा करना पुलिस का दायित्व है ।

पुलिस कर्मचारी चौबीस घंटे खतरों से जूझते हैं । चोर डकैतों से मुठभेड़ के दौरान घायल हो जाते हैं । भीड़ के द्वारा पथराव की स्थिति में चोट खाते हैं । सर्दी, गर्मी, बरसात में डयूटी देनी पड़ती है । विभिन्न प्रकार के अपराधियों को पकड़ना और न्यायालय में प्रस्तुत करना पुलिस का कार्य है ।

व्यक्तिगत झगड़ों में हस्तक्षेप कर समझौता कराना, चोरी गये माल को बरामद कराना भी पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आता है । अन्य कर्मचारियों की तुलना में पुलिस कर्मचारियों के वेतनमान बहुत अच्छे हैं । उन्हें एक महीने का अतिरिक्त वेतन और विशेष भत्ते भी दिये जाते हैं । उन में अधिकांश को सरकारी आवास आबंटित किये जाते हैं ।

ये सब सुविधाएं उन्हें इसलिए दी जाती है कि वे निश्चिंत होकर अपने कर्त्तव्य का पालन कर सकें । उन्हें ड्‌यूटी के दौरान साइकिल, मोटर साइकिल कार और जीप उपलब्ध कराई जाती है । प्रत्येक थाने में टेलीफोन की व्यवस्था है । अपराधियों से निपटने के लिए उन्हें हथियार उपलब्ध कराये जाते हैं ।

अन्य सरकारी कर्मचारियों की तुलना में पुलिस का कार्य विशेष महत्त्वपूर्ण होता है । समाज में कानून और व्यवस्था को बनाये रखना, सशक्त से अशक्त की रक्षा करना, उनका कानूनी ही नहीं नैतिक दायित्व भी है पर कानून और व्यवस्था के नाम पर कभी-कभी कुछ कर्मचारी रक्षक के स्थान पर भक्षक बन जाते हैं । इससे पुलिस की छवि खराब होती है ।

अधिकारों की आड़ लेकर किसी को सताना, अपराध स्वीकार कराने के नाम पर अभियुक्त को पीट-पीटकर मार डालने के समाचार संभ्रात नागरिकों में भय व्याप्त करते हैं । इससे लोगों में पुलिस के प्रति अविश्वास उत्पन्न होता है । कभी-कभी चलचित्र भी पुलिस की छवि ठीक ढंग से प्रस्तुत नहीं करते ।

कर्त्तव्यनिष्ठ पुलिस कर्मचारियों को राष्ट्रपति पुलिस पदक देकर सम्मानित करते हैं । नागरिकों की ओर से भी विशिष्ट कार्य करने वाले पुलिस जनों का नागरिक अभिनन्दन किया जाता है ।

Romalshah: Thank you very very much...It will help me a lot...Thanks once again
lasya5: u r welcome
Answered by Anonymous
3

hey

here is your answer

पुलिस का कार्य बड़ा कठिन है। राजनेताओं की विभिन्न रैलियों के दौरान सुरक्षा और यातायात की व्यवस्था बनाये रखना, जलूसों को शान्तिपूर्ण ढंग से सम्पन्न करना, हड़ताल, धरनों और बंद के दौरान असामाजिक तत्वों से राष्ट्र की सम्पत्ति की रक्षा करना, राजनेताओं की व्यक्तिगत सुरक्षा करना, चोर डकैतों और लुटेरों से आम नागरिक की रक्षा करना पुलिस का दायित्व है। पुलिस कर्मचारी चौबीस घंटे खतरों से जूझते हैं। चोर डकैतों से मुठभेड़ के दौरान घायल हो जाते हैं। भीड़ के द्वारा पथराव की स्थिति में चोट खाते हैं। सर्दी, गर्मी, बरसात में ड्यूटी देनी पड़ती है। विभिन्न प्रकार के अपराधियों को पकडऩा और न्यायालय में प्रस्तुत करना पुलिस का कार्य है। 


पुलिस की भूमिका की समझ विभिन्न वर्गों, समूहों और सामाजिक स्तर के साथ बदल जाती है। विद्यार्थी, श्रमिक, पत्रकार, वकील, जन-प्रतिनिधि, प्रतिष्ठित व्यक्ति-सभी पुलिस से अपनी सोच के अनुरूप अपेक्षाएं रखते हैं। इसके परिणामस्वरूप पुलिस को अपनी भूमिका-निर्वाह में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 


देश में जहां कहीं भी अराजक स्थिति पैदा होती है, धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण करता है वहां देश की कानून व्यवस्था का उल्लंघन होता है। ऐसी स्थिति में सिपाहियों का कर्तव्य है कि वे तत्काल कानून व्यवस्था को बहाल करने में सहायता करें और कानून तोडऩे वालों को पकड़कर उन्हें दंडित करने में सहयोग करें। सिपाही का कर्तव्य है कि वह बिना भेद भाव के हर कर्तव्यनिष्ठ नागरिक की सहायता और सुरक्षा करे। पुलिस व्यवस्था को आज नई दिशा नई सोच और नए आयाम की आवश्यकता है। समय की मांग है कि, हमारी पुलिस नागरिक स्वतंत्रता और मानव अधिकारों के प्रति जागरूक हो और समाज के सताए हुए तथा दबे कुचले लोगों के प्रति संवेदनशील बने। 



अन्य सरकारी कर्मचारियों की तुलना में पुलिस का कार्य विशेष महत्वपूर्ण होता है। समाज में कानून और व्यवस्था को बनाये रखना, सशक्त से अशक्त की रक्ष करना, उनका कानूनी ही नहीं नैतिक दायित्व भी है पर कानून और वयवस्था के नाम पर कभी-कभी कुछ कर्मचारी रक्षक के स्थान पर भक्षक बन जाते हैं। इससे पुलिस की छवि खराब होती है। अधिकारों की आड़ लेकर किसी को सताना, अपराध स्वीकार कराने के नाम पर अभियुक्त को पीट-पीटकर मार डालने के समाचार संभ्रात नागरिकों में भय व्याप्त करते हैं। इससे लोगों में पुलिस के प्रति अविश्वास उत्पन्न होता है। 


पुलिस के सिपाहियों का कर्तव्य है कि वे देश की आन्तरिक सुरक्षा कायम करने में देश के विधि विधानों के अनुरूप कार्य करें। देश का साधारण नागरिक चोर, डाकू और अन्य समाज विरोधी तत्वों से सुरक्षा प्राप्त करने के लिए पुलिस पर ही निर्भर रहता है। अत: देश के नागरिकों को ऐसा वातावरण मुहैया कराना जिससे वे भय मुक्त होकर सुखमय जीवन व्यतीत कर सकें- पुलिस का कर्तव्य है। 


स्वतंत्रता के बाद यह आशा की गई थी कि पुलिस व्यवस्था और पुलिस कार्य प्रणाली में प्रजातांत्रिक मूल्यों के अनुरूप गुणात्मक परिवर्तन आएगा। यह उम्मीद भी की गई थी कि पुलिस अपना दमनात्मक और राज्य के सबल बाहु का स्वरूप त्यागकर जनता की पुलिस बन जाएगी और दमन का सिद्धांत छोड़कर जनहित की अवधारणा से प्रेरित होकर कार्य करने लगेगी किंतु ऐसा नहीं हुआ। स्वतंत्रता के पहले पुलिस और विदेशी शासकों का जो संबंध था, वही कायम रखा गया। केवल इस अंतर के साथ कि विदेशी शासकों के स्थान पर सत्ताधारी राजनीतिक दल आ गए। पुरानी पुलिस को पुनर्गठित करके एक नई दिशा और नया दृष्टिकोण दिया जाना चहिए था। इसके लिए पुुलिस की भूमिका को पुनर्परिभाषित किया जाना चाहिए था, किंतु पुलिस प्रशासन को पुलिस अधिनियम १८६१, जो ब्रिटिश शासकों द्वारा अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया गया था, के अनुसार ही चलने दिया जा रहा है। 


आम व्यक्ति को तेा अपने लिए ब्रिटिश काल की पुलिस और आज की पुलिस में कोई अंतर नहीं दिखाई देता। 


पुलिस का दायित्व केवल विधि का शासन लागू करना है किसी को ठीक करना या सबक सिखाना नहीं। ठीक करने या सबक सिखाने के उद्देश्य से कार्रवाई करने पर पुलिस की साख समाप्त हो जाती है, उसमें अमानवीयता बढ़ती है। परिणामस्वरूप जन-विश्वास समाप्त हो जाता है। 


पुलिस को विधि का शासन लागू करने के लिए केवल वैधानिक तरीकों का उपयोग करना चाहिए। 

पुलिस को शांति-व्यवस्था का कार्य सौंपकर समाज ने उसे एक पुनीत कर्तव्य सौंपा है। और इस कर्तव्य का निर्वहन पवित्र भावना से करना आवश्यक है। विधि को लागू करनेवाले उसे तोडऩे वाले नहीं हो सकते, क्योंकि यदि नमक अपना स्वाद खो देगा तो उसका वह गुण कहां मिलेगा?

पुलिस के सिपाही का ईमानदार होना आवश्यक है। भ्रष्ट सिपाही कभी भी अपने कर्तव्यों का पालन नही करता। सिपाही को किसी के बहकावे में आए बिना देश की आन्तरिक सुरक्षा का दायित्व निभाना चाहिए।


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