प्लूटो की ग्रह की स्थिति बदलने के लिए तर्क क्या था (अब एक पूर्ण ग्रह नहीं है)?
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नासा ने जब मिशन 'न्यू होराइजन्स' रवाना किया था, उस समय प्लूटो को सोलर सिस्टम (सौरमंडल) के नौंवे ग्रह का दर्जा हासिल था। इस मिशन के लिए स्पेसक्राफ्ट के रवाना होने के कुछ महीने बाद ही नए पिंडों की खोज को मान्यता देने और उन्हें नाम देने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसी इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने पहली बार ग्रहों की परिभाषा तय करने पर बहस छेड़ दी। इसके बाद प्लूटो से ग्रह का दर्जा छीन गया और इसकी पहचान क्वीपर बेल्ट के मलबे के ढेर में मौजूद एक बौने ग्रह की रह गई। अब इसे आधिकारिक तौर पर 'एस्ट्रॉएड नंबर 134340' से जाना जाता है।
बचपन से हम पढ़ते आए हैं कि सौरमंडल मे नौ ग्रह है लेकिन सालों पहले एक ग्रह को इस श्रेणी से निकाल दिया गया था। अब आप कहेंगे कि ये भेदभाव क्यों तो हम बताते है कि इस श्रेणी से बाहर निकलने वाले ग्रह प्लूटो के छोटे और काफी दूर होने के कारण इसे ग्रह नहीं माना गया। इसे अब ‘बौना ग्रह’ (Dwarf Planet) के नाम से भी जाना जाता है। इस ग्रह को 24 अगस्त 2006 को खगोलीय वैज्ञानिकों ने ग्रहों की श्रेणी से बाहर कर दिया था।
इसलिए किया था प्लूटो को बाहर
प्लूटो को 24 अगस्त 2006 को ग्रहों की श्रेणी से बाहर किया गया था। इसके लिए प्राग में करीब ढाई हजार खगोलविद इकठ्ठे हुए और इस विषय पर उनका मतदान भी हुआ। अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ की इस मीटिंग में सभी के बहुमत से इस पर सहमति बनी और सौरमंडल के ग्रहों शामिल होने के लिए उन्होंने तीन मानक तय किए है। प्लूटो की खोज 1930 में अमेरिकी वैज्ञानिक क्लाइड डब्यू टॉमबॉग ने की थी। पहले इसे ग्रह मान लिया गया था लेकिन 2006 में वैज्ञानिकों ने इसे ग्रहों की श्रेणी से बाहर कर दिया। प्लूटो का नाम ऑक्सफॉर्ड स्कूल ऑफ लंदन में 11वीं की छात्रा वेनेशिया बर्ने ने रखा था। वैज्ञानिकों ने लोगों से पूछा था कि इस ग्रह का नाम क्या रखा जाए तो इस बच्ची ने इसका नाम प्लूटो सुझाया था। इस बच्ची ने कहा था कि रोम में अंधेरे के देवता को प्लूटो कहते हैं, इस ग्रह पर भी हमेशा अंधेरा रहता है, इसलिए इसका नाम प्लूटो रखा जाए। प्लूटो 248 साल में सूरज का एक चक्कर लगा पाता है।
1. यह सूर्य की परिक्रमा करता हो।
2. यह इतना बड़ा ज़रूर हो कि अपने गुरुत्व बल के कारण इसका आकार लगभग गोलाकार हो जाए।
3. इसमें इतना ज़ोर हो कि ये बाकी पिंडों से अलग अपनी स्वतंत्र कक्षा बना सके।
…और तीसरी अपेक्षा पर प्लूटो खरा नहीं उतरता है, क्योंकि सूर्य की परिक्रमा के दौरान इसकी कक्षा नेप्चून की कक्षा से टकराती है।
अब प्लूटो ग्रह कहलाने का हकदार नहीं रह गया है। लेकिन जब 1930 में प्लूटो को ढूँढा गया तो बड़े ही सम्मान के साथ उसे ग्रह का दर्जा दे दिया गया था। हालाँकि शुरू से ही खगोलविदों का एक वर्ग इसे ख़ास कर इसके छोटे आकार के कारण ग्रह माने जाने के खि़लाफ था।
प्लूटो ब्रह्मांड का बड़ा दूसरा बौना ग्रह है। इसके अलावा बौने ग्रहों की श्रेणी मे 2003 यूबी 313 और सीरेंज भी शामिल है।
प्लूटो को यूं ही बौना ग्रह नहीं बोलते हैं, इस बौने ग्रह का व्यास लगभग 2370 किमी है।
प्लूटो, पृथ्वी के उपग्रह चंद्रमा से भी छोटा है।
प्लूटो कई रंगो का मिश्रण है इस तरह के रंगों का मिश्रण सौर मंडल के किसी भी ग्रह में नहीं पाया जाता है। प्लूटो पर रंगों का मिश्रण मौसम के बदलने के कारण होता है।
प्लूटो के पांच उपग्रह हैं, इसका सबसे बड़ा उपग्रह शेरन है जो 1978 में खोजा गया था इसके बाद हायडरा और निक्स 2005 में खोजे गए। कर्बेरास 2011 में खोजा गया और सीटक्स 2012 में खोजा गया।
प्लूटो का वायुमंडल बहुत ज्यादा पतला है जो मीथेन, नाईट्रोज़न और कार्बन मोनोऑक्साइड से बना है जिस समय प्लूटो परिक्रमा करते समय सूर्य से दूर चला जाता है तो इस पर ठंड बढ़ने लगती है और इस पर पाई जाने बाली गैसों का कुछ हिस्सा बर्फ़ बनकर उसकी सतह पर जम जाता है जिसके कारण प्लूटो का वायुमंडल और भी विरला हो जाता है। इस तरह जब प्लूटो धीरे-धीरे सूर्य के पास आने लगता है तो उन गैसों का कुछ हिस्सा पिघल कर वायुमंडल में फैलने लगता है