'पुलक प्रगट करती है धरती
हरित
की नोकों से, इस
पंक्ति का कल्पना विस्तार
तृणों
कीजिए।
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इन पंक्तियों में कविवर मैथिलीशरण गुप्त ने पंचवटी के निशाकालीन प्राकृतिक सौंदर्य का अद्वितीय और अलंकारिक वर्णन प्रस्तुत किया है | कवि ने चंद्रमा की सुंदर एवं धवल चाँदनी के विस्तार का पृथ्वी और आसमान में तथा जल और थल में रश्मि - क्रीड़ा प्रभाव द्वारा भाव सौंदर्य उजागर किया है | अग्रिम पंक्तियों में कवि कहते है कि भूमि भी गद्गद अर्थात पुलकित होकर छोटी -छोटी घास या दूर्वा के नुकीले सिरों से गतिमान होकर अपनापन व्यक्त कर रही है | साथ - साथ ऐसा प्रतीत होता है कि मानों तरुवर अर्थात वृक्ष भी धीरे -धीरे बहनेवाली मंद वायु के झोंको से झपकी (नींद की ) ले रहे हो अर्थात प्रकृति का निष्पक्ष सौंदर्य उन्हें भी श्रममुक्त कर संतोष प्रदान कर रहा है |
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