'पुलक प्रगट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से,' इस पंक्ति का कल्पना विस्तार कीजिए।
'प्रकृति मनुष्य की मित्र है' स्पष्ट कीजिए ।
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पुलक प्रगट करती है धरती हरित तणों की 'नोकों से' इस पंक्ति का कल्पना विस्तार कीजिए। चाँदनी रात में धरती से लेकर आकाश तक पूरी प्रकृति सुंदर और स्वच्छ किरणों में सराबोर है। धरती का कण-कण इन किरणों से दिप्त हो रहा है।
Explanation:
पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
पुलक प्रगट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से,' इस पंक्ति का कल्पना विस्तार कीजिए।
पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से, मानो झूम रहे हों तरु भी मंद पवन के झोंकों से में उत्प्रेक्षा अलंकार है। धरती की खुशहाली उसके हरित भूमि से होती है घास धरती की खुशी को जाहिर करते हैं जैसे वृक्ष झूल कर करते हैं। इसलिए इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार होगा। उत्प्रेक्षा का शाब्दिक अर्थ है ‘देखने की उत्कट इच्छा’। जिस वाक्य में उपमेय और उपमान भिन्न होने पर भी समानता का भाव उत्पन्न करता है वहां उत्प्रेक्षा अलंकार माना जाता है। जहां रूप गुण आदि समान प्रतीत होने के कारण उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाए और उसे व्यक्त करने के लिए मनु, मानो, जानो, जनु, ज्यों आदि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाए, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार माना जाता है।....अगला सवाल पढ़े
'प्रकृति मनुष्य की मित्र है' स्पष्ट कीजिए ।
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उसका
‘पुलक प्रगट करती है धरती
हरित तृणों की नोकों से, इस
पंक्ति का कल्पना विस्तार
कीजिए।
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