Hindi, asked by suhailansari38, 1 year ago

पृेमचंद के फटे जूते पाठ में हिन्दि लेखकों की स्थिति पर क्या व्यंग्य किया गया है?

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Answered by shailajavyas
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हरिशंकर परसाई जी ने "प्रेमचंद के फटे जूते" पाठ के माध्यम से हिंदी लेखकों की स्थिति पर करारा व्यंग्य किया है । इसमें प्रतीकात्मक रूप से अपनी बात कहते हुए लेखक ने स्वयं को लेखकों की जमात के रूप में प्रस्तुत किया है । लेखक का मानना है की लोग जूते का तलवा घिस जाने पर चिंतित नहीं होते उन्हें फ़िक्र इस बात की होती है कि उनकी उंगलियां या जो ऐब हो वह सबके सामने नहीं आना चाहिए अर्थात वे अपने मूल आधार को नुकसान पहुंचने से चिंतित नहीं है अपितु वे जन समुदाय के सम्मुख प्रस्तुत होने वाले पक्ष की फिक्र कर रहे हैं ,यह समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकता है । यदि आधार ही कमजोर हुआ तो आगे का समय या भविष्य कैसे सुरक्षित रह पाएगा ? इसलिए प्रेमचंद जी के माध्यम से वह यह दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं की आप जैसे हो वैसे ही समाज के सामने प्रस्तुत हो तथा अपने मूल को या आधारभूत मूल्यों को बनाए रखने हेतु चली आ रही गलत अवधारणाओं पर चोट अवश्य करें भले ही इस प्रयास में आपके जूते प्रेमचंद की तरह सामने से फट क्यों न जाए ।

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