पानी की कमी के कारण शहरों और गांव की क्या स्थिति होती है वर्णन कीजिए
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विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 20 वर्षों में सूखे की वजह से भारत में 3 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की तथा प्रतिवर्ष साफ पीने के पानी की कमी के कारण 2 लाख लोगों की मृत्यु हो रही है. मौजूदा दौर में भारत में जहां शहरों में गरीब इलाकों में रहने वाले 9.70 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल पाता है.
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भारत में जल का संकट जनजीवन पर गहराता नज़र आ रहा है. साल 2018 में नीति आयोग द्वारा किये गए एक अध्ययन में 122 देशों के जल संकट की सूची में भारत 120वें स्थान पर खड़ा था. जल संकट से जूझ रहे दुनिया के 400 शहरों में से शीर्ष 20 में 4 शहर (चेन्नई पहले, कोलकाता दूसरे, मुंबई 11वां तथा दिल्ली 15 नंबर पर है) भारत में है. जल संकट के मामले में चेन्नई और दिल्ली जल्द ही दक्षिण अफ्रीका का केप टाउन शहर बनने की राह पर है. संक्युत जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार देश के 21 शहर जीरो ग्राउंड वाटर लेवल पर पंहुच जायेंगे. यानी इन शहरों के पास पीने का ख़ुद का पानी भी नहीं होगा. जिसमें बंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली और हैदराबाद जैसे शहर शामिल हैं जिसके चलते 10 करोड़ लोगों की जिंदगी प्रभावित होगी. भारत में ग्रामीण इलाकों में जल संकट की गंभीर समस्या के कारण ग्रामीण जनसंख्या पहले से आबादी की मार झेल रहे शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर है, जिससे शहरों में अनियंत्रित जनसंख्या का बोझ बढ़ता जा रहा है. देश के ग्रामीण इलाकों में जल अभाव शहरों की तरफ पलायन की एक बड़ी वजह है. भारत में जल प्रणाली व्यवस्थित न होने की वजह से वितरण में असमानता है. विश्व स्वाथ्य संगठन (WHO) के मुताबिक़ एक व्यक्ति को अपने ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हर दिन करीब 25 लीटर पानी की आवश्यकता होती है. भारत के बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई में नगर निगम द्वारा निर्धारण 150 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से भी ज्यादा पानी दिया जाता है. दिल्ली प्रति व्यक्ति पानी के खपत के लिहाज से दुनिया में पहले स्थान पर है. यंहा पानी की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन खपत 272 लीटर है, जिसकी बड़ी वजह पानी की बर्बादी और औद्योगिक खपत है तथा घरों में पानी के उपयोग की कोई मानक सीमा का न होना भी है.
देश के 40% से अधिक क्षेत्रों में सूखे का संकट है. 2030 तक बढ़ती आबादी के कारण देश में पानी की मांग अभी हो रही आपूर्ति के मुकाबले दोगुनी हो जाएगी. इससे लाखों लोग पानी की समस्या से जूझेंगे. साथ ही बढ़ता वैश्विक तापमान भारत की जल संकट की स्थिति को और कठिन बनाने में सहायक होगा
केंद्रीय भू-जल बोर्ड 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत विश्व में सर्वाधिक भू-जल का उपयोग करने वाला देश है. जबकि चीन और अमेरिका में भारत की तुलना में कही कम मात्रा में भू-जल का उपयोग किया जाता है. भारत में अनुमानतः भू-जल का 85% कृषि में, 5% घरेलु तथा 10% उद्योग में इस्तेमाल किया जाता है. शहरी क्षेत्र की 50% तथा ग्रामीण क्षेत्र की 85% जरूरतें भू-जल से पूरी होती है. भयंकर भू-जल दोहन के कारण 2007-2017 के बीच देश में भू-जल स्तर में 61% तक की कमी आयी है. देश के 40% से अधिक क्षेत्रों में सूखे का संकट है. 2030 तक बढ़ती आबादी के कारण देश में पानी की मांग अभी हो रही आपूर्ति के मुकाबले दोगुनी हो जाएगी. इससे लाखों लोग पानी की समस्या से जूझेंगे. साथ ही बढ़ता वैश्विक तापमान भारत की जल संकट की स्थिति को और कठिन बनाने में सहायक होगा. IPCC के द्वारा जारी वर्ष 2015 की रिपोर्ट के अनुसार यदि वैश्विक तापमान इसी दर से बढ़ता रहा तो 2046 से 2056 के बीच यह 1.5 से 2.6 डिग्री सेल्सियस हो जायेगा. बढ़ता वैश्विक तापमान न केवल भारत बल्कि भू-मध्य रेखा के आस-पास के कई देशों का भू-जल स्तर सुखाता जा रहा है. भीषण गर्मी की वजह से जल की वाष्पीकरण की प्रक्रिया की तीव्रता बढ़ जाती है. फलस्वरूप पानी भाप बनकर उड़ जाता है . बढ़ते जल संकट से निपटने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2019 में “जल शक्ति मंत्रालय ” बनाया. इसका गठन दो मंत्रालयों के विलय से हुआ था जल संसाधन तथा नदी विकास, गंगा कायाकल्प और पेयजल, स्वच्छता मंत्रालय. इस मंत्रालय को पानी की समस्या के निदान के लिए ही खासतौर पर बनाया गया है. मंत्रालय ने 2024 तक सभी घरों में पाइप के जरिए वॉटर कनेक्शन देने की योजना बनाई है. विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 20 वर्षों में सूखे की वजह से भारत में 3 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की तथा प्रतिवर्ष साफ पीने के पानी की कमी के कारण 2 लाख लोगों की मृत्यु हो रही है. मौजूदा दौर में भारत में जहां शहरों में गरीब इलाकों में रहने वाले 9.70 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल पाता है. वही ग्रामीण इलाकों में 70 फीसदी लोग प्रदूषित पानी पीने को मजबूर है. लगभग 33 करोड़ लोग अत्यंत सूखे ग्रसित जगहों पर रहने को मजबूर है. जल संकट की इस स्थिति से देश की जीडीपी में अनुमानतः 6% का नुकसान होने की आशंका है.
जब दुनिया की 18% आबादी (India) के पास मात्र 4%पानी की उपलब्धता है तो जल संकट की इस समस्या से स्थायी निजात पाने के लिए उचित तथा चरणबद्ध तरीके से निपटने के लिए सरकार को पॉलिसी बनाते समय सप्लाई साइड ही नहीं बल्कि डिमांड साइड पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है