Hindi, asked by divyanshudk142, 2 months ago

पानी के संकट का प्रमुख कारण क्या है​

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Answered by gaurijaiswal105
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Answer: पानी के संकट होने का प्रमुख कारण पेड़ों का कटना ही है क्योंकि वर्षा जो होती है वह पेड़ों की वजह से होती है इस समय इस समय वनों का विनाश होते जा रहा है पेड़ नहीं बच पा रहे हैं जिससे वर्षा में कमी आ रही है तथा ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है

Answered by piyushmishraaa11
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Answer:

आज भारत ही नहीं, तीसरी दुनिया के अनेक देश सूखा और जल संकट की पीड़ा से त्रस्त हैं। आज मनुष्य मंगल ग्रह पर जल की खोज में लगा हुआ है, लेकिन भारत सहित अनेक विकासशील देशों के अनेक गाँवों में आज भी पीने योग्य शुद्ध जल उपलब्ध नहीं है।

दुनिया के क्षेत्रफल का लगभग 70 प्रतिशत भाग जल से भरा हुआ है, परंतु पीने योग्य मीठा जल मात्र 3 प्रतिशत है, शेष भाग खारा जल है। इसमें से भी मात्र एक प्रतिशत मीठे जल का ही वास्तव में हम उपयोग कर पाते हैं। धरती पर उपलब्ध यह संपूर्ण जल निर्दिष्ट जलचक्र में चक्कर लगाता रहता है। सामान्यतः मीठे जल का 52 प्रतिशत झीलों और तालाबों में, 38 प्रतिशत मृदा नाम, 8 प्रतिशत वाष्प, 1 प्रतिशत नदियों और 1 प्रतिशत वनस्पति में निहित है। आर्थिक विकास, औद्योगीकरण और

जनसंख्या विस्फोट से जल का प्रदूषण और जल की खपत बढ़ने के कारण जलचक्र बिगड़़ता जा रहा है। तीसरी दुनिया के देश इससे ज्यादा पीड़ित हैं। यह सच है कि विश्व में उपलब्ध कुल जल की मात्रा आज भी उतनी है जितनी कि 2000 वर्ष पूर्व थी, बस फर्क इतना है कि उस समय पृथ्वी की जनसंख्या आज की तुलना में मात्र 3 प्रतिशत ही थी।

सूखा अचानक नहीं पड़ता, यह भूकंप के समान अचानक घटित न होकर शनैः शनैः आगे बढ़ता है। जनसंख्या विस्फोट, जल संसाधनों का अति उपयोग/दुरुपयोग, पर्यावरण की क्षति तथा जल प्रबंधन की दुर्व्यवस्था के कारण भारत के कई राज्य जल संकट की त्रासदी भोग रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद 55 वर्षों में देश ने काफी वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति की है। सूचना प्रौद्योगिकी में यह अग्रणी देश बन गया है लेकिन सभी के लिए जल की व्यवस्था करने में काफी पीछे है। आज भी देश में कई बीमारियों का एकमात्र कारण प्रदूषित जल है।

Explanation:

जल संकट का एकमात्र कारण यह नहीं है कि वर्षा की मात्रा निरंतर कम होती जा रही है। इजराइल जैसे देशों में जहाँ वर्षा का औसत 25 से.मी. से भी कम है, वहाँ भी जीवन चल रहा है। वहाँ जल की एक बूँद व्यर्थ नहीं जाती। वहाँ जल प्रबंधन तकनीक अति विकसित होकर जल की कमी का आभास नहीं होने देती। भारत में 15 प्रतिशत जल का उपयोग होता है, शेष जल बहकर समुद्र में चला जाता है। शहरों एवं उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ नदियों के जल को प्रदूषित करके पीने योग्य नहीं रहने देते। जल की माँग निरंतर बढ़ती जा रही है। प्रति व्यक्ति मीठे जल की उपलब्धि जो सन् 1994 में 6000 घन मीटर थी, घटकर सन् 2000 में मात्र 2300 घन मीटर रह गई है। जनसंख्या की वृद्धि दर और जल की बढ़ती खपत को देखते हुए यह आंकड़ा सन् 2025 तक मात्र 1600 घन मीटर हो जाने का अनुमान है। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्था ने अनुमान लगाया है कि अगले 29 वर्षों में ही भारत में जल की माँग 50 प्रतिशत बढ़ जाएगी।

विभिन्न वर्षों में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में जल की माँग को निम्न तालिका में दर्शाया गया हैः

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