पढ़ने-लिखने में स्वयं कोई बात ऐसी नहीं जिसमें अनर्थ हो सके। अनर्थ का बीज उसमें हरगिज नहीं। अनर्थ पुरुषों से भी होते हैं। अपढ़ों और पढ़े-लिखों, दोनों से। अनर्थ, दुराचार और पापाचार के कारण और ही होते हैं और वे व्यक्ति-विशेष का चाल-चलन देखकर जाने भी जा सकते हैं। अतएव स्त्रियों को अवश्य पढ़ाना चाहिए।
जो लोग यह कहते हैं कि पुराने जमाने में यहाँ स्त्रियाँ न पढ़ती थीं अथवा उन्हें पढ़ने की मुमानियत थी वे या तो इतिहास से अभिज्ञता नहीं रखते या जान-बूझकर लोगों को धोखा देते हैं। समाज की दृष्टि में ऐसे लोग दण्डनीय हैं। क्योंकि स्त्रियों को निरक्षर रखने का उपदेश देना समाज का अपकार और अपराध करना है। समाज कीी उन्नति में बाधा डालना है।
(i) लेखक ‘अनर्थ’ का मूल नहीं मानता है-
(क) पढ़ने-लिखने की उपेक्षा को।
(ख) स्त्री-पुरुष होने को।
(ग) स्त्रियों की पढ़ाई को।
(घ) दुराचार और पापाचार को।
(ii) वे लोग इतिहास की जानकारी नहीं रखते जो कहते हैं कि-
(क) स्त्री शिक्षा समाज की उन्नति में बाधा है।
(ख) पुराने जमाने में स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थीं।
(ग) स्त्रियों को जान-बूझकर अनपढ़ रखा जाता था।
(घ) स्त्रियों को भी पुरुषों के समान अधिकार है।
(iii) ‘अनर्थ’ का तात्पर्य है-
(क) दोषपूर्ण कार्य।
(ख) निन्दनीय कार्य।
(ग) धनरहित कार्य।
(घ) अनुचित कार्य।
(iv) सामाजिक दृष्टि से ऐसे लोग दण्ड के पात्र हैं जो-
(क) स्त्रियों को पढ़ाने की बात करते हैं।
(ख) जान-बूझकर लोगों को धोखा देते हैं।
(ग) सामाजिक नियमों की अनदेखी करते हैं।
(घ) समाज की उन्नति में बाधा डालते हैं।
(v) ‘अभिज्ञ’ शब्द का विलोम है-
(क) अज्ञ
(ख) अनभिज्ञ
(ग) सुभिज्ञ
(घ) प्राज्ञ
Answers
Answered by
4
1.D
2.B
3.D(not sure)
4. B
2.B
3.D(not sure)
4. B
Similar questions