पानयतराहून कशा वर व्यार करु नये
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thanks bro for free points !!
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अरी वरुणा की शांत कछार !
तपस्वी के वीराग की प्यार !
सतत व्याकुलता के विश्राम, अरे ऋषियों के कानन कुञ्ज!
जगत नश्वरता के लघु त्राण, लता, पादप,सुमनों के पुञ्ज!
तुम्हारी कुटियों में चुपचाप, चल रहा था उज्ज्वल व्यापार.
स्वर्ग की वसुधा से शुचि संधि, गूंजता था जिससे संसार .
अरी वरुणा की शांत कछार !
तपस्वी के वीराग की प्यार !
तुम्हारे कुंजो में तल्लीन, दर्शनों के होते थे वाद .
देवताओं के प्रादुर्भाव, स्वर्ग के सपनों के संवाद .
स्निग्ध तरु की छाया में बैठ, परिषदें करती थी सुविचार-
भाग कितना लेगा मस्तिष्क,हृदय का कितना है अधिकार?
अरी वरुणा की शांत कछार !
तपस्वी के वीराग की प्यार !
छोड़कर पार्थिव भोग विभूति, प्रेयसी का दुर्लभ वह प्यार .
पिता का वक्ष भरा वात्सल्य, पुत्र का शैशव सुलभ दुलार .
दुःख का करके सत्य निदान, प्राणियों का करने उद्धार .
सुनाने आरण्यक संवाद, तथागत आया तेरे द्वार .
अरी वरुणा की शांत कछार !
तपस्वी के वीराग की प्यार !