प्र 06- पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण के सौन्दर्य का संक्षिप्त वर्णन कीजिए
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कृष्ण के सौंदर्य में बड़ी गहराई थी। जैसे नदी में जहां गहराई होती है, वहां जल सांवरा हो जाता है। यह सौंदर्य देह का ही सौंदर्य नहीं था, यह हमारा मतलब है। ख्याल मत लेना कि कृष्ण सांवले थे। रहे हों न रहे हों, यह बात बड़ी बात नहीं है। लेकिन सांवरा हमारा प्रतीक है, इस बात का कि यह सौंदर्य शरीर का ही नहीं था। यह सौंदर्य मन का था, मन का ही नहीं था, यह सौंदर्य आत्मा का था। यह सौंदर्य इतना गहरा था, उस गहराई के कारण चेहरे पर सांवरापन था। छिछला नहीं था सौंदर्य। अनंत गहराई लिए था।
यह तुम्हारा मोर के पंखों से बना हुआ मुकुट, यह तुम्हारा सुंदर मुकुट, जिसमें सारे रंग समाएं हैं! वही प्रतीक है। मोर के पंखों से बनाया गया मुकुट इस बात का प्रतीक है कि कृष्ण में सारे रंग समाए हैं। महावीर में एक रंग है, बुद्ध में एक रंग है, राम में एक रंग है–कृष्ण में सब रंग हैं। इसलिए कृष्ण को हमने पूर्णावतार कहा है। सब रंग हैं।
इस जगत की कोई चीज कृष्ण को छोड़नी नहीं पड़ी है। सभी को आत्मसात कर लिया है। कृष्ण इंद्रधनुष हैं, जिसमें प्रकाश के सभी रंग हैं। कृष्ण त्यागी नहीं हैं। कृष्ण भोगी नहीं हैं। कृष्ण ऐसे त्यागी हैं, जो भोगी हैं। कृष्ण ऐसे भोगी हैं, जो त्यागी हैं। कृष्ण हिमालय नहीं भाग गए हैं, बाजार में हैं। युद्ध के मैदान में हैं। और फिर भी कृष्ण के हृदय में हिमालय है। वही एकांत! वही शांति! अपूर्व सन्नाटा! कृष्ण अदभुत अद्वैत हैं। चुना नहीं है कृष्ण ने कुछ। सभी रंगों को स्वीकार किया है, क्योंकि सभी रंग परमात्मा के हैं।