Hindi, asked by riyabindra0036, 3 months ago

प्र. 1. हमारे समाज में गरीबी-अमीरी जैसी असमानताएं हैं। ऐसी स्थिति में सामाजिक दृष्टिकोण
कैसा होना चाहिए?​

Answers

Answered by sanjay047
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Explanation:

सामाजिक सन्दर्भों में समानता (equality) का अर्थ किसी समाज की उस स्थिति से है जिसमें उस समाज के सभी लोग समान (अलग-अलग नहीं) अधिकार या प्रतिष्ठा (status) रखते हैं। सामाजिक समानता के लिए 'कानून के सामने समान अधिकार' एक न्यूनतम आवश्यकता है जिसके अन्तर्गत सुरक्षा, मतदान का अधिकार, भाषण की स्वतंत्रता, एकत्र होने की स्वतंत्रता, सम्पत्ति अधिकार, सामाजिक वस्तुओं एवं सेवाओं पर समान पहुँच (access) आदि आते हैं। सामाजिक समानता में स्वास्थ्य समानता, आर्थिक समानता, तथा अन्य सामाजिक सुरक्षा भी आतीं हैं। इसके अलावा समान अवसर तथा समान दायित्व भी इसके अन्तर्गत आता है।

सामाजिक समानता (Social Equality) किसी समाज की वह अवस्था है जिसके अन्तर्गत उस समाज के सभी व्यक्तियों को सामाजिक आधार पर समान महत्व प्राप्त हो। समानता की अवधारणा मानकीय राजनीतिक सिद्धांत के मर्म में निहित है। यह एक ऐसा विचार है जिसके आधार पर करोड़ों-करोड़ों लोग सदियों से निरंकुश शासकों, अन्यायपूर्ण समाज व्यवस्थाओं और अलोकतांत्रिक हुकूमतों या नीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष करते रहे हैं और करते रहेंगे। इस लिहाज़ से समानता को स्थाई और सार्वभौम अवधारणाओं की श्रेणी में रखा जाता है।

दो या दो से अधिक लोगों या समूहों के बीच संबंध की एक स्थिति ऐसी होती है जिसे समानता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।  लेकिन, एक विचार के रूप में समानता इतनी सहज और सरल नहीं है, क्योंकि उस संबंध को परिभाषित करने, उसके लक्ष्यों को निर्धारित करने और उसके एक पहलू को दूसरे पर प्राथमिकता देने के एक से अधिक तरीके हमेशा उपलब्ध रहते हैं। अलग-अलग तरीके अख्तियार करने पर समानता के विचार की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ उभरती हैं। प्राचीन यूनानी सभ्यता से लेकर बीसवीं सदी तक इस विचार की रूपरेखा में कई बार ज़बरदस्त परिवर्तन हो चुके हैं। बहुत से चिंतकों ने इसके विकास और इसमें हुई तब्दीलियों में योगदान किया है जिनमें अरस्तू, हॉब्स, रूसो, मार्क्स और टॉकवील प्रमुख

आर्थिक और सामाजिक समानता की अभिधारणा का अर्थ अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग है। आर्थिक समानता से प्रारंभिक उदारवादियों का तात्पर्य केवल यह था कि हर व्यक्ति को, उसकी पारिवारिक या आर्थिक स्थिति चाहे जो हो, अपना धंधा और पेशा चुनने का अधिकार है और प्रत्येक व्यक्ति को अनुबन्ध करने की स्वतंत्रता है, ताकि जहाँ तक अनुबंधात्मक दायित्वों का संबंध है, देश के हर व्यक्ति के साथ समान व्यवहार हो सके। धीरे-धीरे स्थिति इस अभिधारणा की दिशा में बदलने लगी कि प्रत्येक को पूर्ण मानव प्राणी के रूप में जीने का समान अवसर प्राप्त हो। (इसमें कोई संदेह नहीं कि यह बदलाव एक हद तक पूँजीवाद की उस समाजवादी और मार्क्सवादी मीमांसा का परिणाम था जिसे सकारात्मक उदारवाद के प्रादुर्भाव से पहले अधिकाधिक स्वीकृति प्राप्त होती जा रही थी और जिसके कारण ही शायद 1917 की रूसी क्रांति हुई उस मीमांसा की स्वीकृति का एक और कारण यह था उसमें आर्थिक समानता पर जोर दिया गया, जिसकी परिभाषा सबके लिए लगभग समान आर्थिक स्थितियों के रूप में की गई।)

धीरे-धीरे यह समझा और स्वीकार किया जाने लगा कि समानता का मतलब यह होना चाहिए कि समाज में कोई भी इतना गरीब न हो कि उसके पास बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन न हों और मानसिक तथा शारीरिक विकास के लिए उसे प्राथमिक अवसर सुलभ न हों। रूसो के शब्दों में कहें तो समानता से हमारा मतलब यह नहीं होना चाहिए प्रत्येक व्यक्ति को बिल्कुल बराबरी की सत्ता और धन प्राप्त होना चाहिए, बल्कि उसका मतलब यह होना चाहिए कि कोई भी नागरिक इतना धनवान न हो कि वह दूसरों को खरीद ले और किसी भी नागरिक को इतना निर्धन न होना चाहिए कि वह बिकने के लिए मजबूर हो जाए।'[6]

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