प्र.15 भूमिकटाव(मृदाक्षरण) की रोकथाम के चार उपाय लिखिए।
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वन संरक्षण
वनों के वृक्षों की अंधाधुंध कटाई मृदा अपरदन का प्रमुख कारण है। वृक्षों की जड़ें मृदा पदार्थों को बांधे रखती हैं। यही कारण है कि सरकारों ने वनों को ‘सुरक्षित’ घोषित कर दिया है तथा इन वनों में वृक्षों की कटाई पर रोक लगा दी हैं। मृदा संरक्षण की यह विधि सभी प्रकार के भू-भागों के लिए उपयुक्त है। वनों को वर्षा लाने वाले ‘दूत’ कहा जाता है। इनसे मृदा निर्माण की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
वृक्षारोपण
नदी घाटियों, बंजर भूमियों तथा पहाड़ी ढालों पर वृक्ष लगाना मृदा संरक्षण की दूसरी विधि है। इससे इन प्रदेशों में मृदा का अपरदन कम हो जाता हैं। मरूस्थलीय सीमान्त क्षेत्रों में पवन-अपरदन को नियंत्रित करने के लिए वृक्षारोपण एक प्रभावी उपाय है। मरूस्थलीय क्षेत्रों के सीमावर्ती भागों में वृक्ष लगाकर रेगिस्तानी रेत को खेतों में जमने से रोका जा सकता है। इस तरह मरूस्थलीय क्षेत्रों की वृद्धि पर अंकुश लगता है। भारत में, थार मरूस्थल के विस्तार को रोकने के लिए राजस्थान, हरियाणा, गुजरात तथा पंजाब में बड़े पैमाने पर वृक्ष लगाए जा रहे हैं।
बाढ़ नियंत्रण
वर्षा ऋतु में नदियों में जल की मात्रा बढ़ जाती है। इससे मृदा के अपरदन में वृद्धि होती है। बाढ़ नियंत्रण के लिए नदियों पर बांध बनाए गए हैं। इनसे मृदा का अपरदन रोकने में मदद मिलती है। नदियों के जल को नहरों द्वारा सूखाग्रस्त क्षेत्रों की ओर मोड़़कर तथा जल संरक्षण की अन्य सुनियोजित विधियों द्वारा भी बाढ़ों को रोका जा सकता है।
नियोजित चराई
अत्यधिक चराई से पहाड़ी ढालों की मृदा ढीली हो जाती है और जल इन ढीली मृदा को आसानी से बहा ले जाता है। इन क्षेत्रों में नियोजित चराई से वनस्पति के आवरण के बचाया जा सकता है। इस प्रकार इन क्षेत्रों के मृदा अपरदन को कम किया जा सकता है।
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