प्र.8 रिक्त स्थान भरो।
क - जहाँ वर्णों की आकृति हो वहाँ-
- अलंकार होता है।
ख – जहाँ एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए वहाँ-
अलंकार होता है।
ग - जहाँ शब्द एक ही बार प्रयुक्त होने पर दो अर्थ दे वहाँ
अलंकार होता है।
घ - सा, सी, से, सम, सरिस, सदृश, तथा सरीखे
अलंकार के वाचक शब्द है।
ङ – मनु, मानो, मानहु, जनु, जाबो, जानहु, ज्यों, जैसे अलंकार के वाचक शब्द है।
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क - जहाँ वर्णों की आकृति हो वहाँ-
- अलंकार होता है।
* ans:- anupras
ख – जहाँ एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए वहाँ-
अलंकार होता है।
* ans:- punrukti Prakash
ग - जहाँ शब्द एक ही बार प्रयुक्त होने पर दो अर्थ दे वहाँ
अलंकार होता है।
* ans:- yamak
घ - सा, सी, से, सम, सरिस, सदृश, तथा सरीखे
अलंकार के वाचक शब्द है।
* ans :- upma
ङ – मनु, मानो, मानहु, जनु, जाबो, जानहु, ज्यों, जैसे अलंकार के वाचक शब्द है।
* ans :- utprekhsa
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अलंकार की परिभाषा
अलंकार की परिभाषाकाव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के चार भेद हैं-
अलंकार की परिभाषाकाव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के चार भेद हैं-शब्दालंकार,
अलंकार की परिभाषाकाव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के चार भेद हैं-शब्दालंकार,अर्थालंकार,
अलंकार की परिभाषाकाव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के चार भेद हैं-शब्दालंकार,अर्थालंकार,उभयालंकार और
अलंकार की परिभाषाकाव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के चार भेद हैं-शब्दालंकार,अर्थालंकार,उभयालंकार औरपाश्चात्य अलंकार।
अलंकार की परिभाषाकाव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के चार भेद हैं-शब्दालंकार,अर्थालंकार,उभयालंकार औरपाश्चात्य अलंकार।अलंकार का विवेचन
अलंकार की परिभाषाकाव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के चार भेद हैं-शब्दालंकार,अर्थालंकार,उभयालंकार औरपाश्चात्य अलंकार।अलंकार का विवेचनशब्दालंकार
अलंकार की परिभाषाकाव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के चार भेद हैं-शब्दालंकार,अर्थालंकार,उभयालंकार औरपाश्चात्य अलंकार।अलंकार का विवेचनशब्दालंकारकाव्य में शब्दगत चमत्कार को शब्दालंकार कहते हैं। शब्दालंकार मुख्य रुप से सात हैं, जो निम्न प्रकार हैं-अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश, पुनरुक्तिवदाभास और वीप्सा आदि।
1. अनुप्रास अलंकार
एक या अनेक वर्गों की पास-पास तथा क्रमानुसार आवृत्ति को ‘अनुप्रास अलंकार’ कहते हैं। इसके पाँच भेद हैं-
(i) छेकानुप्रास जहाँ एक या अनेक वर्णों की एक ही क्रम में एक बार आवृत्ति हो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है;
जैसे-
“इस करुणा कलित हृदय में,
अब विकल रागिनी बजती”
यहाँ करुणा कलित में छेकानुप्रास है।
(ii) वृत्यानुप्रास काव्य में पाँच वृत्तियाँ होती हैं-मधुरा, ललिता, प्रौढ़ा, परुषा और भद्रा। कुछ विद्वानों ने तीन वृत्तियों को ही मान्यता दी है-उपनागरिका, परुषा और कोमला। इन वृत्तियों के अनुकूल वर्ण साम्य को वृत्यानुप्रास कहते हैं;
जैसे-
‘कंकन, किंकिनि, नूपुर, धुनि, सुनि’
यहाँ पर ‘न’ की आवृत्ति पाँच बार हुई है और कोमला या मधुरा वृत्ति का पोषण हुआ है। अत: यहाँ वृत्यानुप्रास है।
(iii) श्रुत्यनुप्रास जहाँ एक ही उच्चारण स्थान से बोले जाने वाले वर्षों की आवृत्ति होती है, वहाँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार होता है;
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