Hindi, asked by Anonymous, 2 months ago

प्र . अजीज: कम् पश्यति?​

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Answered by Anonymous
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देव भोः पितरस्माकं परस्मिन् व्योम्नि तिष्ठसि। त्वदीयं कीर्त्यतां नाम तस्मिन् प्रीतिः सदास्तु नः॥ स्थाप्यतां तव सम्राज्यमत्रैव पृथिवीतले। भवेह सिद्धसंकल्पो यथासि स्वस्य धामनि॥ अन्नं दैनन्दिनं दत्त्वा पालयास्मान् दिने दिने। क्षमस्व चापराधान् नो ज्ञात्वाज्ञात्वा तु वा कृतान्॥ यथास्माभिर्हि चान्येषाम् अपराधा हि मर्जिताः। हे प्रभो न तथैवास्मान् गमयाधर्मवर्त्मनि॥ लोभात्पापप्रवृत्तिश्च दौरात्म्याच्चैव मोचय। युक्तमेतत् यतस्तेऽस्ति राज्यं प्रभाववैभवं। अत्र परत्र सर्वत्र अद्य श्वश्च युगे युगे॥

हे हमारे स्वरगिक पिता, तेरा नाम पवित्र माना जाए, तेरा राज्य अाए, तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग मे॑ पूरी होती है॑, वैसे पर्िथ्वी पर भी हो, आज हमे॑ उतना भोजन दे, जो हमारे लिए आवश्क है, हमारे अपराध शमा कर, जैसे हम दूसरो के अपराध शमा करते है, हमारे विश्वास को मत परख पर॑तु हमे शैतान से बचा.

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