History, asked by crackmindoff14725836, 4 months ago

प्राचीन आस में व्रत के महत्व एवं प्रकारों पर प्रकाश
डालिए​

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Answered by Anonymous
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मनुष्य को पुण्य के आचरण से सुख और पाप के आचरण से दु:ख होता है। संसार का प्रत्येक प्राणी अपने अनुकूल सुख की प्राप्ति और अपने प्रतिकूल दु:ख की निवृत्ति चाहता है। मानव की इस परिस्थिति को अवगत कर त्रिकालज्ञ और परहित में रत ऋषिमुनियों ने वेद, पुराण, स्मृति और समस्त निबंधग्रंथों को आत्मसात् कर मानव के कल्याण के हेतु सुख की प्राप्ति तथा दु:ख की निवृत्ति के लिए अनेक उपाय कहे हैं। उन्हीं उपायों में से व्रत और उपवास श्रेष्ठ तथा सुगम उपाय हैं। व्रतों के विधान करनेवाले ग्रंथों में व्रत के अनेक अंगों का वर्णन देखने में आता है। उन अंगों का विवेचन करने पर दिखाई पड़ता है कि उपवास भी व्रत का एक प्रमुख अंग है। इसीलिए अनेक स्थलों पर यह कहा गया है कि व्रत और उपवास में परस्पर अंगागि भाव संबंध है। अनेक व्रतों के आचरणकाल में उपवास करने का विधान देखा जाता है।

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