Hindi, asked by suhanarajbharsuhana, 1 month ago

प्राचीन बंगाल के जिस अंचल और नदी का नाम त्रिविध अध्याय में पढ़ाया गया था उसकी उसकी तालिका तैयार कीजिए आंसर​

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Answered by lohitjinaga
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गंगा में ऐसे कई पावर प्लांट कूड़ा डालते हैंमानव सभ्यता के विकास में नदियों का बड़ा योगदान है। कमोबेश सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही विकसित हुईं हैं। वजह है जीवन के लिये जल सबसे जरूरी तत्व है और नदियों को जल के अकूत स्रोत के रूप में देखा गया।

भारत में शायद ही कोई राज्य है, जिससे होकर नदियाँ न गुजरती हों। बंगाल की खाड़ी से सटे पश्चिम बंगाल को तो ‘नदीमातृक’ नाम से नवाजा गया है। ‘नदीमातृक’ यानी जिसकी माता नदियाँ हों। मतलब कि वह भूखण्ड जिसकी देखभाल नदियाँ करती हों।

पश्चिम बंगाल में नदियों का जाल बिछा हुआ है। मोटे तौर पर 80 से अधिक छोटी-बड़ी नदियाँ बंगाल से होकर बहती हैं। इनमें से प्रमुख नदियों की संख्या करीब 19 है जिनके नाम बांसलोई, पगला, मयुराक्षी, अजय, जालंगी, चुर्नी, दामोदर, द्वारकेश्वर, कंसाई, भागीरथी, पद्मा, तिस्ता, महानंद, तोरषा आदि हैं। कई नदियों के साथ पौराणिक कथाएँ भी जुड़ी हुई हैं।

वहीं, जलाशयों की बात करें, तो यहाँ 4296 जलाशय व तालाब हैं। इस लिहाज से देखा जाये, तो पानी के मामले में पश्चिम बंगाल समृद्ध रहा है। लेकिन, हाल के वर्षों में इन जलस्रोतों पर संकट बढ़ा है, जो राज्य की चिन्ता का सबब है। पहले जलाशयों पर ही संकट थे, लेकिन अब नदियाँ भी सुरक्षित नहीं रहीं।

देखभाल नहीं होने के कारण कई नदियाँ तो सूखने के कगार पर पहुँच गई हैं। पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर के बीचों-बीच बहने वाली आदि गंगा जिसे गंगा नदी का मूल स्रोत कहा जाता है, लगभग खत्म ही हो चुकी है।

हाल ही में ‘पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (Pollution Control Board West Bengal) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में राज्य में नदियों की स्थिति को लेकर गहरी चिन्ता व्यक्त की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह नदियों के अस्तित्व पर संकट मँडरा रहा है और अगर वक्त रहते जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले दिनों में दिक्कतें बढ़ेंगी।

रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल की नदियों में प्रदूषण का स्तर सामान्य से काफी अधिक है। कभी पीने के उपयोग में लाया जाने वाला नदियों का जल इतना खराब हो चुका है कि वह स्नान करने के योग्य भी नहीं है। राज्य में नदियों के जल की इस स्थिति की प्रमुख वजह है शहरी नालों और औद्योगिक कचरों का नदियों में निकास। गौरतलब है कि किसी भी नदी के पानी की गुणवत्ता का निर्धारण उसमें मौजूद भौतिक, रासायनिक, बायोलॉजिकल व उसकी सुन्दरता के आधार पर किया जाता है। ये तत्व ही बताते हैं कि कोई नदी कितनी सेहतमन्द है।

पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व नेशनल वाटर मॉनीटरिंग प्रोग्राम (National Water Monitoring Program) के अधीन केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) द्वारा संयुक्त रूप से पश्चिम बंगाल की नदियों पर गहन निगरानी रखी गई ताकि प्रदूषण के बारे में पुख्ता जानकारी मिल सके। निगरानी का उद्देश्य प्रदूषण को नियंत्रण में लाने के लिये जरूरी कदम उठाना भी था। जाँच में दूसरी नदियों के साथ ही गंगा व भागीरथी को भी शामिल किया गया था। रिपोर्ट बताती है कि धार्मिक महत्त्व रखने वाली इन दोनों नदियों का पानी इतना गन्दा हो चुका है कि उससे नहाया भी नहीं जा सकता।

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