प्र हमे भी चिड़िया के समान संतोषी होना चाहिए । ऐसा बनने के लिए जीवन में कैसी आदत अपनानी होगी ?
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हँसी भीतरी आनंद का बाहरी चिहन है। जीवन की सबसे प्यारी और उत्तम-से-उत्तम वस्तु एक बार हँस लेना तथा शरीर को अच्छा रखने की अच्छी-से-अच्छी दवा एक बार खिलखिला उठना है। पुराने लोग कह गए हैं कि हँसो और पेट फुलाओ। हँसी न जाने कितने ही कला-कौशलों से भली है। जितना ही अधिक आनंद से हँसोगे उतनी ही आयु बढ़ेगी। एक यूनानी विद्वान कहता है कि सदा अपने कर्मों को झीखने वाला हेरीक्लेस बहुत कम जिया, पर प्रसन्न मन डेमाक्रीटस 109 वर्ष तक जिया। हँसी-खुशी का नाम जीवन है। जो रोते हैं, उनका जीवन व्यर्थ है। कवि कहता है-‘जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दादिल खाक जिया करते हैं।’
मनुष्य के शरीर के वर्णन पर एक विलायती विद्वान ने एक पुस्तक लिखी है। उसमें वह कहता है कि उत्तम सुअवसर की हँसी उदास-से-उदास मनुष्य के चित्त को प्रफुल्लित कर देती है। आनंद एक ऐसा प्रबल इंजन है कि उससे शोक और दुख की दीवारों को ढा सकते हैं। प्राण रक्षा के लिए सदा सब देशों में उत्तम-से-उत्तम उपाय मनुष्य के चित्त को प्रसन्न रखना है। सुयोग्य वैद्य अपने रोगी के कानों में आनंदरूपी मंत्र सुनाता है। एक अंग्रेज डॉक्टर कहता है कि किसी नगर में दवाई लदे हुए बीस गधे ले जाने से एक हँसोड़ आदमी को ले जाना अधिक लाभकारी है। डॉक्टर हस्फलेंड” ने एक पुस्तक में आयु बढ़ाने का उपाय लिखा है। वह लिखता है कि हँसी बहुत उत्तम चीज पाचन के लिए है, इससे अच्छी औषधि और नहीं है। एक रोगी ही नहीं, सबके लिए हँसी बहुत काम की वस्तु है।
हँसी शरीर के स्वास्थ्य का शुभ संवाद देने वाली है। वह एक साथ ही शरीर और मन को प्रसन्न करती है। पाचन-शक्ति बढ़ाती है, रक्त को चलाती और अधिक पसीना लाती है। हँसी एक शक्तिशाली दवा है। एक डॉक्टर कहता है कि वह जीवन की मीठी मदिरा है। डॉ. हयूड कहता है कि आनंद से बढ़कर बहुमूल्य वस्तु मनुष्य के पास और नहीं है। कारलाइल एक राजकुमार था। संसार त्यागी हो गया था। वह कहता है कि जो जी से हँसता है, वह कभी बुरा नहीं होता। जी से हँसी, तुम्हें अच्छा लगेगा। अपने मित्र को हँसाओ, वह अधिक प्रसन्न होगा। शत्रु को हँसाओ, तुमसे कम घृणा करेगा। एक अनजान को हँसाओ, तुम पर भरोसा करेगा। उदास को हँसाओ, उसका दुख घटेगा। निराश को हँसाओ, उसकी आशा बढ़ेगी।
एक बूढ़े को हँसाओ, वह अपने को जवान समझने लगेगा। एक बालक को हँसाओ, उसके स्वास्थ्य में वृद्ध होगी। वह प्रसन्न और प्यारा बालक बनेगा, पर हमारे जीवन का उद्देश्य केवल हँसी ही नहीं है, हमको बहुत काम करने हैं। तथापि उन कामों में, कष्टों में और चिंताओं में एक सुंदर आंतरिक हँसी, बड़ी प्यारी वस्तु भगवान ने दी है। हँसी सबको भली लगती है। मित्र-मंडली में हँसी विशेषकर प्रिय लगती है। जो मनुष्य हँसते नहीं उनसे ईश्वर बचावे। जहाँ तक बने हँसी से आनंद प्राप्त करो। प्रसन्न लोग कोई बुरी बात नहीं करते। हँसी बैर और बदनामी की शत्रु है और भलाई की सखी है। हँसी स्वभाव को अच्छा करती है। जी बहलाती है और बुद्ध को निर्मल करती है।
प्रश्न
(क) पुराने समय में लोगों ने हँसी को महत्व क्यों दिया? 2
(ख) हेरीक्लेस और डेमाक्रीटस के उदाहरण से लेखक क्या स्पष्ट करना चाहता है? 2
(ग) किसी डॉक्टर ने हँसी को जीवन की मीठी मदिरा क्यों कहा है? 2
(घ) इस गदयांश में हँसी का क्या महत्व बताया गया है? 2
(ङ) गदयांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 1
(च) ‘पाचन-शक्ति’ एवं ‘मुर्दादिल’ का समास-विग्रह कीजिए और समास का नाम भी बताइए। 1
उत्तर –
(क) पुराने समय में हँसी को इसलिए महत्व दिया, क्योंकि वे जानते थे और कहते थे कि एक बार हँस लेना शरीर को स्वस्थ रखने की सबसे अच्छी दवा है। हँसी न जाने कितने कला-कौशलों से अच्छी है। जितना अधिक हँसोगे उतनी ही आयु बढ़ेगी। उस समय लोगों का यह भी मानना था कि हँसी-खुशी ही जीवन है। जो रोते हैं, उनका जीवन व्यर्थ है। वे हँसी को सबके लिए बहुत ही काम की वस्तु मानते थे।
(ख) हेरीक्लेस और डेमाक्रीटस का उदाहरण देकर लेखक बताना चाहता है कि सदा अपने कर्मों को खीझने वाला हेरीक्लेस बहुत कम जिया और प्रसन्न रहने वाला डेमाक्रीटस 109 वर्ष जिया। प्रसन्नता और हँसी सुखमय स्वस्थ जीवन के आधार हैं। अत: जो लोग दीर्घायु बनना चाहते हैं, उन्हें सदैव प्रसन्न और हँसमुख रहना चाहिए।
(ग) किसी डॉक्टर ने हँसी को जीवन की मीठी मदिरा इसलिए कहा है क्योंकि जिस प्रकार मदिरा की अल्प मात्रा के सेवन से व्यक्ति स्वयं को तन-मन से प्रसन्न महसूस करने लगता है और अपना दुख भूल जाता है, उसी प्रकार हँसी भी व्यक्ति को शरीर और मन से प्रसन्न बनाती है। वह व्यक्ति की पाचनशक्ति बढ़ाती है, उसका रक्तसंचार बढ़ाती है। इससे व्यक्ति अपना दुख