"प्रेम बोली बोई "में कौन सा अलंकार है नाम लिखते हुए अलंकार को समझाइए
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► रूपक अलंकार
“प्रेम बेलि बोई” में ‘रूपक अलंकार’ है।
मीरा ने कृष्ण के प्रेम में अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने कृष्ण का प्रेम यूं ही नहीं पाया इसके लिए उन्हें कृष्ण के प्रेम रूपी बेल को बोलना पड़ा है और अब यह कृष्ण की प्रेम रूपी बेल फल-फूल रही है, और उन्हें आनंद रूपी फल की प्राप्ति हो रही है।
यहाँ पर मीरा ने ‘प्रेम’ रूपी उपमेय ‘बेल’ रूपी उपमान का आरोप कर दिया है और दोनों अभिन्नता को दर्शाकर दोनों के बीच के भेद को मिटा दिया गया है। जिससे दोनों में अभिन्नता प्रकट हो रही है, इसलिए यहां पर रूपक अलंकार है।
रूपक अलंकार की परिभाषा के अनुसार जब किसी काव्य में उपमेय और उपमान के बीच की भिन्नता को मिटा कर उपमेय पर ही उपमान का आरोप कर दिया जाए और दोनों में अभिन्नता दर्शाई जाए तो वहां पर ‘रूपक अलंकार’ प्रकट होता है। जैसे...
‘पायोजी मैंने राम रतन धन पायो’
यहां पर ‘राम रतन’ रूपी उपमेय पर ‘धन’ रूपी उपमान का आरोप कर दिया गया है, और दोनों में अभिन्नता दर्शा कर दोनों के बीच के भेद को मिटा दिया गया है, इसलिए यहाँ पर रूपक अलंकार प्रकट हो रहा है।
ऊपर दी गई पंक्तियों में भी ऐसी ही अभिन्नता दर्शाई गई है इसलिए ‘प्रेम बेलि बोई’ में रूपक अलंकार है।
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