'प्रेम गली अति सांकरी- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
ans
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‘प्रेम गली अति सांकरी’ इस पंक्ति से कबीरदास जी का कहने का तात्पर्य यह है कि प्रेम रूपी गली तथा प्रेम रूपी मन बड़ा ही संकीर्ण होता है, इसमें दो लोग नहीं रह सकते। इसमें ईश्वर और अहंकार दोनों साथ नहीं रह सकते। अगर ईश्वर को अपने हृदय में, अपने मन में बसाना है तो अहंकार का त्याग करना होगा।
जब मैं था तब गुरु नाहिं, अब गुरु हैं, मैं नाही।
प्रेम गली अति सांकरी, तामे दो न स माही।।
अर्थात कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैं था, तब गुरु मैं गुरु को पहचान नहीं पाया अब जब मैंने गुरु को पहचान लिया है तो मेरे मन के भीतर से मैं का भाव मिट गया है। इससे स्पष्ट होता है कि प्रेम की गली बड़ी संकरी होती है, इसमें दो लोग एक साथ नहीं रह सकते।
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Answer:
prem gali bahut patli hoti h usme ya toh ahankaar rah sakta h ya iswar agar iswar ko chahte ho to ahankaar tyaagna padega