Hindi, asked by bhartichandel0709, 4 months ago

प्रेमी को प्रेमी मिले सब अमृत हुई काव्यांश में विष और अमृत किसका प्रतीक है​

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Answered by shishir303
7

“प्रेमी को प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होई”

कबीर द्वारा रचित दोहे की इन पंक्तियों में ‘विष’ मानव के अंदर व्याप्त बुराइयों जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, असत्य, हिंसा आदि का प्रतीक है। जबकि ‘अमृत’ ईश्वर की भक्ति के कारण मिलने वाले आनंद का प्रतीक है।

यानि ‘विष’ मानव के अंदर व्याप्त दुर्गुणों का प्रतीक है, और ईश्वर के भक्ति से जो आनंद प्राप्त होता है, वह ‘अमृत’ है।

कबीर ने मनुष्य के अंदर व्याप्त बुराइयों जैसे झूठ बोलना. लालच करना. मोह-माया रखना. दूसरों का दिल दुखाना आदि को विष का प्रतीक माना है। वह ईश्वर की भक्ति को अमृत के समान मानते हैं, जिसके कारण जो आनंद प्राप्त होता है वह किसी अमृत के समान है।

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स्वान रूप संसार है भूंकन दे झख मारि। भावार्थ बताइये।

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बलिहारी गुर आपणें, द्योहाड़ी कै बार।  

जिनि मानिष तें देवता, करत न लागी बार।।1

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Answered by shailajavyas
4

Answer

              यहाँ कबीरदासजी का विष से तात्पर्य मन की मलिनता और अज्ञान से है | मनुष्य कई योनियों से भटककर इस मानव देह का अधिकारी बनता है पर उसके भीतर कई जन्मों के अनेकानेक विकार और तृष्णाएँ दबी हुई है |

              कब कौनसा विकार उसे साधना मार्ग (ईश्वर प्राप्ति का मार्ग )से भ्रष्ट कर दे या गिरा दे इससे वह स्वयं भी अनभिज्ञ है | ऐसे में कोई अन्य प्रेमी भक्त या दूसरा संत-साधक उसे मिल जाता है तो उसके सारे विकार नष्ट हो जाते है और वह अमृत अर्थात निर्विकारी होकर परम तात्विक ज्ञान में स्थितप्रज्ञ हो जाता है |  

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