प्रेमचंद जी के साथ रेवड़ी बेचने वाले का व्यवहार कैसा था
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bohot bura tha aur kisi ki bhi ni sunta tha
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जब मुंशी प्रेमचंद लखनऊ में थे, हेली उस वक्त लखनऊ के गवर्नर थे। लेखक के रूप में प्रेमचंद की लोकप्रियता से हेली अवगत हो चुके थे इसलिए उनके मन में प्रेमचंद को राजकीय सम्मान देने का विचार आया। इसके लिए उन्होंने अपने एक हिंदुस्तानी मित्र से, जिन्हें इस तरह का खिताब मिल चुका था, प्रेमचंद को पत्र लिखवाया। पत्र में कहा कि गवर्नर साहब आपकी किताबों के बड़े भक्त हैं। उनकी नजर में आप हिंदुस्तान के सबसे बड़े राइटर हैं इसलिए वह आपको राय साहबी का खिताब देना चाहते हैं। पत्र पाने के बाद आप उनसे मिलिए। प्रेमचंद को पत्र मिला। उन्होंने पत्र की चर्चा अपनी पत्नी शिवरानी देवी से की। शिवरानी देवी ने पूछा, ''राय साहबी देंगे या कि और भी कुछ देंगे? ''इशारा तो और भी कुछ के लिए है। प्रेमचंद बोले, ''तब तो ले लीजिए। शिवरानी देवी ने उत्तर दिया।
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प्रेमचंद ने आगे कहा, ''क्यों देना चाहते हैं, बता दूं? तब मैं जनता का आदमी न रह कर एक पिट्टू रह जाऊंगा। शिवरानी देवी ने पूछा, ''कैसा पिट्ठू? ''उसी तरह जैसे और लोग हैं। अभी तक मेरे सारे काम जनता के लिए हुए हैं। पुरस्कार लेने के बाद गवर्नमैंट मुझसे जो लिखवाएगी, लिखना पड़ेगा। प्रेमचंद ने जवाब दिया।
प्रेमचंद के विचारों को सुनने के बाद शिवरानी देवी ने कहा, ''यह तो बड़ा महंगा सौदा है। यह सुनकर प्रेमचंद खुश होकर बोले, ''हां, मैं खुद ऐसा नहीं करूंगा। ''तो उनको जवाब क्यों देंगे? शिवरानी देवी ने पूछा। प्रेमचंद ने कहा, ''उनको धन्यवाद लिख दूंगा कि मैं जनता का तुच्छ सेवक हूं। अगर जनता की राय साहबी मिलेगी तो सिर-आंखों पर। गवर्नमैंट की राय साहबी की इच्छा नहीं। गवर्नर साहब को मेरी तरफ से धन्यवाद दे दीजिएगा और प्रेमचंद ने यह पत्र लिखकर गवर्नर हाऊस भेज दिया। प्रेमचंद आज यूं ही नहीं जनता की कहानियों के राय साहब माने जाते हैंI
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