Hindi, asked by gouravsharma16648, 5 months ago

प्रेमचंद की कहानियां पढ़िए और किन्हीं पाँच कहानियों का सार एक तिहाई शब्दों में लिखिए ।​

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Answered by anjali13547
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मुंशी प्रेमचंद्र की 139वीं जयंती, कभी 18 रुपए की तनख्वाह पर करते थे टीचर की नौकरी

By: Sarveshwari Mishra

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Published: 31 Jul 2019, 12:50 PM IST

ये थी रचनाएं जो हो गईं पूरी दुनिया में मशहूर

मुंशी प्रेमचंद्र की 139वीं जयंती, कभी 18 रुपए की तनख्वाह पर करते थे टीचर की नौकरी

वाराणसी. प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद्र का कद काफी ऊंचा है और उनका लेखन कार्य एक ऐसी विरासत है। इनके बिना हिंदी का विकास अधूरा माना जाता है। मुंशी प्रेमचंद एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता और बहुत ही सुलझे हुए संपादक थे। प्रेमचंद की लेखनी इतनी समृद्ध थी कि इससे कई पीढ़ियां प्रभावित हुईं और उन्होंने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की भी नींव रखी। इनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही गांव में हुआ था। प्रेंमचंद्र की माता का नाम आनंदी देवी और माता का नाम आनंदी देवी और पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाकमुंशी थे। उर्दू व फारसी में उन्होंने शिक्षा शुरू की और जीवनयापन के लिए अध्यापन के लिए अध्यापन का कार्य भी किया। प्रेमचंद को बचपन से ही पढ़ने का शौक था। नैकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई भी जारी रखी और 1910 में अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास विषयों के साथ इंटर पास किया। साल 1919 में बीए पास करने के बाद मुंशी प्रेमचंद्र शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त हुए। हिन्दी के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद की आज 139 वीं जयंती है। ये महान लेखक 1998 में गांव के एक स्कूल में 18 रुपए तनख्वाह में पढ़ाते थे। आइए उनसे जुड़े कुछ ऐसे और पहलू जानते हैं जो शायद आपको न पता हों।

18 रुपए की सैलरी पर बच्चों को पढ़ाते थे मुंशी प्रेम चंद्र

प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था। उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही नामक गांव में हुआ था। अपने मित्र मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव पर उन्होंने धनपत राय की बजाय प्रेमचंद उपनाम रख लिया. उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, जो डाकघर में मुंशी का पद संभालते थे। वे शुरुआती दिनों में चुनार में शिक्षक थे. तब उन्हें 18 रुपये तनख्वाह मिला करती थी. वे हिंदी के साथ-साथ उर्दू, फारसी और अंग्रेजी पर भी बराबर की पकड़ रखते थे।

ये हैं उनकी चर्चित कहानियां

मंत्र, नशा, शतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, आत्माराम, बूढ़ी काकी, बड़े भाईसाहब, बड़े घर की बेटी, कफन, उधार की घड़ी, नमक का दरोगा, पंच फूल, प्रेम पूर्णिमा, जुर्माना आदि।

प्रेमचंद्र की ये रचनाएं दुनिया भर में हो गई थी मशहूर

मुंशी प्रेमचंद्र ने लगभग 300 कहानियां और 14 बड़े उपन्यास लिखे। सन् 1935 में मुंशी जी बहुत बीमार पड़ गए और 8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके रचे साहित्य का अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में हो चुका है, जिसमें विदेशी भाषाएं भी शामिल है। अपनी रचना 'गबन' के जरिए से एक समाज की ऊंच-नीच, 'निर्मला' से एक स्त्री को लेकर समाज की रूढ़िवादिता और 'बूढ़ी काकी' के जरिए 'समाज की निर्ममता' को जिस अलग और रोचक अंदाज उन्होंने पेश किया। उसकी तुलना नही है। इसी तरह से पूस की रात, बड़े घर की बेटी, बड़े भाईसाहब, आत्माराम, शतरंज के खिलाड़ी जैसी कहानियों से प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य की जो सेवा की है, वो अद्भुत है।

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