प्र
प्र० 3. हँस लो दुष्टो! जितना जी चाहे हँस लो, पर यह न भूलना कि मैं अभी जीवित हैं। यह
भुजाओं का बल अभी नष्ट नहीं हुआ है।
(1) 'दुष्टो' का संबोधन किनके लिए प्रयोग किया गया है और क्यों?
उत्तर-
(II) प्रस्तुत कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
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Answer:
गोपाल सिंह नेपाली जनमुक्ति के योद्धा कवि हैं। उन्होंने प्रेम सौन्दर्य के साथ उमंग और विद्रोह को कविताओं के माध्यम से दिखाया। ये बातें शनिवार को नया टोला स्थित हरितिमा में गोपाल सिंह नेपाली की 107वीं जयंती पर साहित्यकारों ने कही। साहित्यकार नंद किशोर नंदन ने कहा कि वे राष्ट्रकवि थे। प्रेम, प्रकृति और संघर्ष के महान कवि हैं वे। उनकी कविता मनुष्यता का अमर शिलालेख है। प्रकृति का सहज सौन्दर्य उनकी कविताओं में दिखता है। नेपाली आज भी लोककंठ में सुरक्षित हैं। राष्ट्रीय फलक पर लहराने वाले वे ऐसे कवि हैं जिन्होंने वन मैन आर्मी का काम किया। कवि आलोचक डॉ. वीरेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि नेपाली के लिए भाषा शैली से अधिक महत्वपूर्ण कविता की अन्तर्वस्तु है। यही वजह है कि कई बार कविता की शास्त्रीयता का अतिक्रमण कर वे सीधे जनता से जुड़ पाते हैं। कवि डॉ. रमेश ऋतंभर ने कहा कि उनकी कविताएं आज की राजनीति पर सटीक बैठती हैं। डॉ. सुकेश यादव ने उन्हें प्रकृति के महान कवि के रूप में रेखांकित किया। डॉ. कुमार विरल ने नेपाली जी को लोकधर्मी कवि के रूप में स्मरण किया। इस मौके पर तारकेश्वर प्रसाद सिंह, आनंद पटेल, बैजू कुमार, सुनील मिश्र ने भी विचार व्यक्ति किए। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में काव्य पाठ का आयोजन किया गया। इसमें अली अहमद मंजर, नंद किशोर नंदन समेत सभी कवियों ने कविता सुनाई। धन्यवाद ज्ञापन मनोरमा नंदन ने किया।