India Languages, asked by nonu4075, 1 year ago

प्रारंभिक पुस्तकें कैसे तैयार की गई थी?

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Answered by shishir303
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प्रारंभिक पुस्तकों को किसी पेड़ की छाल टुकड़ों पर या भोजपत्रों पर लिखा जाता था। इन छाल के टुकड़ों या भोजपत्रों को किसी डोरी या धागे से पिरोकर एक पुस्तक का रूप दे दिया जाता था।

भारत में दक्षिण भारत की सभी पांडुलिपियां पत्तों पर लिखी होती थीं। इन पांडुलिपियों पर लिखने के लिए पत्तों को लोहे की पैनी कलम से उत्पीड़ित किया जाता था और उत्कीर्णित किए गए पत्तों पर काजल से बनी हुई स्याही पोती जाती थी। फिर उसे धूल से साफ कर लिया जाता था। इस तरह उत्कीर्णित किये गये अक्षरों पर स्याही लगी रह जाती थी, जिससे उन पर लिखी सामग्री देखी व पढ़ी जा सकती थी।

उत्तर भारत में लिखाई के लिए ताड़पत्र का प्रयोग बहुतायत में किया जाता था। कालांतर में आगे चलकर जब यह महसूस किया जाने लगा कि ताड़पत्र या भोजपत्र ऊपर लिखी सामग्री बहुत लंबे समय तक नहीं टिक सकती, तब लिखने के लिए ऐसे उपाय अपनाए गए जो दीर्घकालीन टिकाऊ रहें। इसके लिए शिलाखंडों और धातुपत्रों का उपयोग करना शुरू किया गया। शिलाखंडों और धातुपत्रों पर लिखी गई लिखाई हमेशा के लिए कायम रह जाने लगी।

शिलाखंडों का उपयोग ईसा पूर्व तीसरी सदी से ही आरंभ होने लगा था। बौद्ध धर्म के अनेक ग्रंथ धातु ग्रंथ को अक्सर धातु की पट्टिकाओं पर ही लिखा जाने लगा था। ये धातु की पट्टिकायें मुख्यतः तांबे से बनी होती थीं। यह ताम्रपत्र व्यवहार में बहुत अधिक प्रचलित थे और राज्य के अधिकारी लोग अक्सर प्रशासनिक तथा अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिये इन ताम्रपत्रों का उपयोग करते थे। कुछ लिखाई कपड़ों या भोजपत्र पर भी नियमित रूप से की जाती थी।

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पाठ - 6 : “लिपि का विकास”

विषय : ग्राफिक डिजायन - एक कहानी [कक्षा - 11]  

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