प्राचीन भारत में लॉक प्रिंटिंग का इस्तेमाल किस प्रकार किया जाता था? मिस्र की सभ्यता पर उसका क्या असर हुआ?
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प्राचीन भारत में ब्लॉक प्रिंटिंग का प्रयोग काफी समय पहले से किया जाता रहा है। भारत में कपास उगाने से लेकर उसका कपड़ा बुनने और फिर पहनने-ओढ़ने के लिए उस कपड़े को डिजायन आदि द्वारा रंगने-सजाने का रिवाज काफी समय से चला आ रहा था।
सिंधु सभ्यता के मोहनजोदड़ो आदि की खुदाई में पता चला कि आज से 5000 साल पहले भी भारत के लोग कपास का कपड़ा बुनने और उसे मजीठ आदि के पक्के रंग में रंगने की कला से परिचित थे। प्राचीन भारत में भारतीय बुनकर रंगरेज छपाईगर और कसीदागर ब्लॉक प्रिंटिंग से भलीभांति पर्ची थे। कपड़ों पर डिजाइन और आकृतियां बनाने के लिए लकड़ी को काटकर व उकेरकर उसके ठप्पे यानी ब्लॉक बनाए जाते थे और उनसे कपड़े पर छपाई की जाती थी। यह भारत की एक प्राचीन कला थी। लकड़ी के ठप्पों की छपाई वाले भारतीय मूल के कपड़ों के पुरातत्व स्वरूप के अनेक प्राचीन ऐतिहासिक प्रमाण मिस्र के काहिरा शहर के दक्षिणी बाहरी इलाकों में नील नदी पर पास की खुदाई में मिले हैं।
उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में जब इन प्राचीन स्थलों की खुदाई की तो पता चला कि 10वीं से 14 वीं शताब्दी के दौरान काहिरा पूर्व सभ्यता और पश्चिमी सभ्यता के बीच व्यापार का एक प्रमुख केंद्र था और भूमध्य सागर तथा लाल सागर के बीच व्यापारियों का मुख्य बिंदु था। भारत के साथ होने वाला अधिकांश व्यापार भी इसी मार्ग से हुआ करता था। क्योंकि काहिरा मिस्र के बाजारों के लिए भेजे जाने वाले भारतीय माल का प्रमुख केंद्र था।
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पाठ - 7 : “प्रतिलिपि के विकास की अवस्थाएँ”
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