प्रार्थना वाले लेना लिखो in Punjabi
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प्रार्थना सभा
सामान्यतः अपने जीवन में हर नया काम प्रारंभ करने से पहले लगभग हम सभी मन ही मन उस कार्य की सिद्धी हेतु ईश्वर से प्रार्थना करते हैं उसके बाद ही कार्य प्रारंभ करते हैं। कदाचित यह मनेावृति बचपन में विद्यालय जाने पर प्रार्थना सभा के साथ पठन पाठन आरंभ करने की आदत के चलते उत्पन्न हुयी मानी जा सकती है। परन्तु विद्यालयी शिक्षा से अछूते रहे व्यक्तियों के संबंध में भी यह तथ्य विभिन्न शोधों से प्रमाणित हुआ है कि प्रत्येक व्यक्ति कोई नया कार्य आरंभ करने से पूर्व अपने इष्टदेव का स्मरण अवश्य करता है। ठीक उसी तरह जैसे प्रत्येक विद्यालय में शिक्षण कार्य दैनिक प्रार्थना सभा के आयोजन से ही प्रारंभ होता है।
प्रार्थना सभा किसी भी विद्यालय का एक ऐसा दर्पण है जो उस विद्यालय के भौतिक, शैक्षिक, सामाजिक, मानसिक, सांस्कृतिक और आध्यत्मिक वातावरण का साफ एवं स्पष्ट चित्र दिखलाता है। वैसे तो आजकल के प्रचलित अर्थों में प्रार्थना सभा का तात्पर्य विद्यालय में शिक्षण कार्य शुरू होने से पूर्व छात्रों और शिक्षकों की एक वैसी सामुहिक सभा से है जिसमें औपचारिकतावश कुछ प्रार्थनाओं, प्रतिज्ञाओं और राष्ट्रगान का शुद्ध-अशुध्द रुप से गायन होता है, परन्तु इसके वास्तविक उद्देश्यों को देखने पर हम पाते है कि किसी भी विद्यालय में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के प्रारंभ होने के पूर्व आयोजित होनेवाली प्रार्थना सभा मात्र एक औपचारिक सभा नहीं बल्कि उस पुरे दिन के सम्पूर्ण विद्यालयी क्रिया-कलाप के सुचारू रुप से संचालन हेतु एक सकारात्मक शैक्षिक माहौल की शुरुआत करने वाली सभा है।
सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में यूं तो विद्यालय का हर क्षण अति महत्वपूर्ण होता है परन्तु प्रार्थना सभा-काल इसलिए अधिक महत्व रखता है कि इस समय समस्त विद्यालय को एक नजर में समेटा जा सकता है। शिक्षक-शिक्षार्थी एक साथ यहां उपस्थित होते हैं। ईश-स्तुति द्वारा हृदय पक्ष मजबूत होता है वहीं सृष्टि रचयिता के प्रति निष्ठा, कृतज्ञता, का भाव उत्पन्न होता है। इसके साथ ही स्वर में स्वर मिलाने का अभ्यास भी होता है। जो सामुदायिक सहभागिता की ओर अभिप्रेरित करता है।
विद्यालय के दैनिक जीवन में अनुशासन का पहला पाठ प्रार्थना सभा से ही शुरू होता है। तन साधकर पंक्ति में खड़े होना, सभा आयोजक के निर्देशों का पालन इसके आरम्भिक चरण हैं। इस दौरान गाये जाने वाले राष्ट्रगीत व राष्ट्रगान, देशभक्तिपूर्ण नारे विद्यार्थियों में मातृभूमि के प्रति
प्यार, लगाव तथा समर्पण का जज्बा पैदा करते हैं। दुबले से दुबला विद्यार्थी भी बुलंद आवाज में जब नारे लगाता है तो देशमाता का सीना अवश्य ही गर्व से फूल उठता होगा। विद्यालय संबंधी निर्णय, सूचना, आदेश, निर्देश से सबको अवगत कराने का सर्वोत्तम समय प्रार्थना सभा ही होता है।
विद्यार्थियों की विशेष उपलब्धियों के लिए यदि उनकी पीठ थपथपानी हो या फिर पुरस्कार देना हो तो इसके लिए भी प्रार्थना सभा का समय उचित है। इससे शिक्षार्थी का मनोबल बढ़ता है वहीं अन्य छात्रों को प्रेरणा भी मिलती है।
इस दौरान विद्यार्थी चुनींदा विषयों पर अपने विचार, आज का विचार, दैनिक समाचार, प्रेरक प्रसंग आदि प्रस्तुत करते हैं। इससे उन्हें मंच मिलता है, आत्मविश्वास बढ़ता है, सामान्य ज्ञान में वृद्धि होती है तथा वाक्-निपुणता का भी विकास होता है। प्रार्थना सभा के समय छात्र पारस्परिक परिचय प्राप्त कर, संवाद स्थापित कर सामाजिकता का भी विकास करते हैं। सामूहिक पी. टी., योग क्रियाओं द्वारा विद्यार्थियों का शारीरिक विकास होता है। साथ ही, उनकी व्यक्तिगत सफाई की जांच होने से वे स्वच्छता संबंधी लापरवाही नहीं बरत सकते, क्योंकि कोई भी छात्र सार्वजनिक रूप से ‘गंदा विद्यार्थी’ के रूप में चिह्नित नहीं होना चाहेगा। इस समय ली जाने वाली हाजिरी से विद्यार्थियों में समय की पाबंदी व नियमितता के गुण का समावेश होता है।
विद्यालय में खोई-पाई वस्तुओं के आदान-प्रदान करने हेतु भी प्रार्थना सभा काल उचित माना जाता है। प्रशासनिक व्यस्तता के कारण संस्था के मुखिया का विद्यार्थियों से सम्पर्क कम रहता है, परन्तु प्रार्थना सभा इस क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होती है। प्रार्थना सभा की इन अनेकानेक गतिविधियों में भागीदारी होने से छात्रों को अपनी कमियों और खूबियों का बोध होता रहता है और वे भविष्य में बेहतर प्रस्तुति के लिए प्रयत्न करते हैं। इस बहुमुखी उद्देश्य वाले कालांश के महत्व का जितना बखान किया जाये, कम है। विद्यालय की समय-सारिणी से प्रार्थना सभा का निष्कासन देह से आत्मा के निष्कासन के समान है। इस काल को सार्थक, सदुपयोगी व प्रभावपूर्ण बनाना संस्था के मुखिया, शिक्षक-शिक्षार्थी की सामूहिक जिम्मेवारी है।
विद्यार्थियों के मूल्य विकास में वंशानुक्रम, पारिवारिक वातावरण, सामाजिक पर्यावरण तथा विद्यालय वातावरण और दैनिक प्रार्थना सभा का अपना महत्व है। आगामी जीवन में सम्पन्न किए जाने वाले दायित्वों की मानसिक तैयारी का यह दौर गम्भीरता से लिया जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो एक अधूरापन रह जाएगा और यह रिक्ति सभी के लिए भारी पड़ेगी।
Hope it helps you :)
Answer:
प्रार्थना मनुष्य की श्रेष्ठता की प्रतीक है क्योंकि यह उसके और परमात्मा के घनिष्ठ संबंधों को दर्शाती है । हरएक धर्म में प्रार्थना का बड़ा महत्व है । ... प्रार्थना में परमेश्वर की प्रशंसा, स्तुति, गुणगान, धन्यवाद, सहायता की कामना, मार्गदर्शन की ईच्छा, दूसरों का हित चिंतन आदि होते हैं ।