प्रेस की हालत बहुत खराब थी वह प्रेमचंद का लहू पी-पीकर किसी तरह चलती रही।
धनपत को धनपतियों का सहवास और मुंबई का प्रवास रास नहीं आया।
दीप में कभी पूरा-पूरा तेल नहीं डाला गया। लौ हमेशा बत्ती को ही जलाती रही।
उनका जीवन ऐसा दीप था जिसकी लौ मद्धिम नहीं तेज प्रकाश देने को मजबूर थी।
पाठ से अपेक्षित निष्कर्ष
छात्र, उपन्यास सम्राट प्रेमचंद के जीवन संघर्षों से प्रेरित होंगे एवं उनके साहित्यिक योगदान को समझ सकेंगे।
मेरी माँ के देहान्त के बाद मेरी रुह को खुराक नहीं मिली। यहीं भूख मेरी जिंदगी है।
छात्र, इस बात से प्रभावित होंगे कि दुनिया में ज्यादातर विपरीत परिस्थिति में जीवनयापन करने वाले लोग प्रसिद्धि प्राप्त करते
'हिन्दी (वाचन
आशय स्पष्ट कीजिए
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